एक वीडियो एडिटर की कलम से …..
इस मुल्क में बेटियाँ क्यों सुरक्षित नहीं है ,संसद की सियासत में इस बार जया की रुलाइयां है।।वो फूट फूट कर रोई ..जो इस बार भी जाया जायेंगी ,सब चीज़े कुछ वक्त बाद फ़ना हो जायेंगी ,लेकिन इसी बीच कुछ पीछे छूट गया ,इस मुल्क की बेटी आज फिर बेबस है और मैं बेचेंन हूँ …
एक वीडियो एडिटर होने के नाते मैं इस मुल्क की बेटियों को जानता भी और पहचानता भी हूँ ,ख़बरों की बेबसी में बस यह बेटियां हर बार चेहरा बदल लेती है ,लेकिन अंत वही होता है ,कभी किसी के चेहरे पर उस वक्त तक तेज़ाब डाला जाता है ,जब तक उसकी कोमलताए ख़त्म ना हो जाए तो कभी किसी घर में जब तक जलाया जाता जब तक उसकी आत्मा न जल जाए ,मन के आँगन में यह 24 घंटे का अश्लील तमाशा है जो हर रोज कभी किसी चोराहे पर लगाया जाता है ,कभी दिल्ली के दिल में ..कभी मुंबई ..कभी कही और …
एक गहरी खामोशी के बाद जब कुछ लिखने की कोशिश कर रहा हूँ तो शब्दों ने इतराना शुरू कर दिया है …शायद यह मेरे लिए आम बात है ..वही शब्द ..वही बातें ..बस आज तारीखे बदल रही है …लेकिन हम नहीं बदले ..वही न्यूज़ फ़्लैश …ब्रैकिंग न्यूज़ की वो लाल पट्टी ..
सब तो वही है ..जैसे सब कुछ स्क्रिप्टड हो !!.
सदियों की चुप्पी तोड़ कर सब इंडिया गेट फिर जायेंगे ..इस बार मोमबत्तियां के सामने वाले बैनर की तस्वीर बदल रही है ..वही शाम ..वही चन्दा मामा ..वही लोग ..बस तस्वीर बदल रही है ..मातम वही है ..आंसू वही है ..बेबसी ..बैचेनी ..और वो रुलाइयां .. इसी बीच ऑफिस का टाइम हो गया है ..
अलविदा
आपका आशीष
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