कुछ साल पहले चेहरे ज्यादा थे और न्यूज़ चैनल कम. लेकिन इंडस्ट्री के विस्तार और न्यूज़ चैनलों की बाढ़ के बीच चेहरे कम और न्यूज़ चैनल ज्यादा हो गए हैं. इसलिए इन चेहरों को लेकर न्यूज़ चैनलों के बीच छीना – झपटी भी तेज हो गयी है. ये छीना – झपटी ए ग्रेड और बी से ए ग्रेड में आने की चाहत रखने वाले चैनलों के बीच ज्यादा है.
हरेक चैनल अपने यहाँ आशुतोष, दीपक चौरसिया, पुण्य प्रसून, रवीश कुमार आदि को रखकर अपने चैनल की ब्रांडिंग को चमकाना चाहता है. लेकिन मुश्किल ये है कि इंडस्ट्री में एक ही आशुतोष, पुण्य प्रसून , दीपक या रवीश हैं. सो एक बार में ये एक ही चैनल में जा सकते हैं.
फिर न्यूज़ इंडस्ट्री में पिछले कई सालों में नए चेहरे ब्रांड की शक्ल नहीं ले पाए. उनकी ऐसी पहचान नहीं बनी या फिर जानबूझकर नहीं बनने दी गयी. वर्तमान परिदृश्य में जो भी चेहरे हैं वे पहले दौर के ही हैं जब टेलीविजन पत्रकारिता का प्रादुर्भाव हुआ था और इसके साथ पत्रकारों की एक टोली मैदान में उतरी थी.
बहुतेरे तो टेलीविजन पत्रकारिता में पितामह का दर्जा हासिल कर चुके एस.पी.सिंह के उसी टीम का हिस्सा थे जिसने आज तक को जन्म दिया. लेकिन उसके बाद न कोई दूसरे एस.पी हुए और न नए लोगों को उस तरीके से मौका मिला कि वे संजय पुगलिया, दिबांग, दीपक या आशुतोष बन सके. इसके अलावा दिबांग जैसे कई ब्रांडेड चेहरों के स्क्रीन से गायब होने की वजह से भी चैनलों में चेहरों की कमी और बढ़ गयी और छीना – झपटी शुरू हो गयी.
यदि न्यूज़ चैनलों पर गौर करेंगे तो पायेंगे कि हरेक चैनल का एक चेहरा है और उसी चेहरे को आगे करके चैनल चलता है. हाँ आजतक को इसका अपवाद माना जा सकता है क्योंकि इसकी आंतरिक संरचना इतनी मजबूत है कि चेहरों के आने – जाने से उसकी सेहत पर कोई खास फर्क नहीं पड़ता है और पड़ता है तो वह चेहरे के बदले चेहरे को बखूबी रिप्लेस कर इसकी भरपाई कर देता है.
अब देखिए आजतक से कई साल पहले दीपक चौरसिया स्टार न्यूज़ चले गए तो भी आजतक की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा. जबकि एक ज़माने में लोग दीपक और आजतक को अलग करके नहीं देखते थे और समझते थे कि दोनों एक दूसरे से अलग नहीं हो सकते.
हाल के दिनों में आजतक से अभिसार शर्मा और अजय कुमार चले गए तो आजतक ने पुण्य प्रसून बाजपेयी जैसे कद्दावर एंकर को लाकर न केवल कमी पूरी की बल्कि अपनी स्थिति और मजबूत कर ली.
ख़ैर अब एक नज़र चैनलों के चेहरों पर डाल लें. आजतक के पुण्य प्रसून हैं तो एनडीटीवी इंडिया के रवीश कुमार, आईबीएन-7 के आशुतोष हैं तो ज़ी न्यूज़ की अल्का सक्सेना, इंडिया टीवी के रजत शर्मा तो इंडिया न्यूज़ के दीपक चौरसिया. ऐसे में बाकी चैनलों के पास बहुत कम विकल्प बच जाते हैं और बचे हुए विकल्पों में ही काम चलाना पड़ता है.
सबसे बड़ी मुश्किल उन नए चैनलों के लिए है जो ए ग्रेड के चैनलों की श्रेणी में अपनी जगह बनाने के लिए गंभीर है लेकिन उन्हें कोई पुण्य प्रसून, आशुतोष, दिबांग या रवीश नसीब नहीं.
पुण्य प्रसून वाजपेयी जिन्हें आप ब्रांड कह रहे हैं उनके बारे एक बात और जान लें। पुण्य प्रसून वाजपेयी जी के पिता जी दूरदर्शन में काम करते थे और आजतक के बुलेटिन की प्रिव्यू का काम उन्हीं के पास था। प्रसून जी कुछ समय की पत्रकारिता के बाद उस वक़्त या तो बेकार थे या बेकार स्वरूप। एस पी सिंह ने पिता जी के कहने पर ही इन्हें रखा था. दोनों में से किसी ने इनसे कहा था या नहीं, पता नहीं। मगर शुरू में लंबे समय तक न्यूज एजेंसी से आनेवाले टिकर की मॉनिटरिंग ड्यूटी पर लगाए गए थे। तो क्रांति और बदलाव की लफ्फाज़ी बहुत है मगर जुगाड़ के सिद्धांत में पक्के हैं। पिता जी संघ परिवार से भी रिश्ता रखते हैं इसलिए परिवार वाले भी इन्हें घर का बिगड़ा बच्चा मानते हैं। यूं ही ज़ी न्यूज़ भी किसी को रखता नहीं है ये तो आपको भी पता ही होगा। और सहारा जाना और बाहर आना भी अनायास तो नहीं था।