आर.एल.फ्रांसिस
मदर टैरेसा पर उठा विवाद अभी थमा भी नही है कि एक ईसाई संगठन से जुड़े कैथोलिक विश्वासी पी.बी.लोमियों की हालही में आई पुस्तक ‘‘ ऊँटेश्वरी माता का महंत” ने ईसाई समाज के अंदर चर्च की कार्यशैली पर कई गंभीर सवाल उठा दिये है।
“ऊँटेश्वरी माता का महंत” र्शीषक से लिखी गई यह पुस्तक एक येसु समाजी (सोसाइटी ऑफ जीजस) कैथोलिक पादरी (फादर एंथोनी फर्नांडेज) जिन्होंने अपने जीवन के 38 वर्ष कैथोलिक चर्च की भेड़शलाओं का विस्तार करने में लगा दिए, चर्च की धर्मांतरण संबधी नीतियों का परत दर परत खुलासा करती है और साथ ही चर्च नेतृत्व का फरमान न मानने वाले पादरियों और ननों की दुर्दशा को बड़ी ही बेबाकी से उजागर करती है।
“ऊँटेश्वरी माता का महंत” र्शीषक से लिखी गई यह पुस्तक कैथोलिक चर्च व्यवस्था, रोमन कूरिया, जेसुइट कूरिया पर कई स्वाल खड़े करते हुए ‘‘उतरी गुजरात” के कुछ हिस्सों में चर्च द्वारा अपनी भेड़शलाओं को बढ़ाने का चौंकाने वाला खुलासा करती है – कि, विदेशी मिश्नरियों की धर्म प्रचार क्षमता का लोहा मानना पड़ेगा। स्पेनिश फादर गैर्रिज ने यह देखा कि ‘ऊँट इस क्षेत्र का प्रधान पशु है’-(रेगिस्तान का जहाज) यह इस बंजर जमीन पर रहने वालों का परिवारिक अभिन्न अंग है व्यापार का साधन भी है। अतः ऊँट से संबधित रक्षक देवी के रुप में उन्होंने मदर मेरी को एक ‘नया अवतार’ प्रदान किया, ‘‘ऊँटेश्वरी माता” -ईशूपंथियों, ऊँट-पालकों की कुल माता!
विदेशो से आर्थिक सहायता प्राप्त कर उन्होंने मेहसाना क्षेत्र के बुदासान गांव में 107 एकड़ का विशाल भूखण्ड खरीद कर पहाड़ी नुमा जमीन पर एक विशाल वृक्ष के नीचे एक ‘डेहरी’ (चबूतरा) का निमार्ण करवाया और घोषणा की, कि यह डेहरी ऊँटेश्वरी माता की ‘डेहरी’ है। यह देवी जगमाता है। जो ऊँटों की रक्षा करती है।
फादर एंथोनी फर्नांडेज को आदिवासियो व मूल निवासियों को ईशुपंथी बनाने के काम पर लगाया गया था। उन्होंने जब वस्तु स्थिति का सामना किया तो उन्हें मिशनरियों की कुटिलता और धोखेबाजी का आभास होता गया। फादर एंथोनी इस तथ्य से बहुत आहत थे कि विदेशी मिशनरियों का मुख्य उदे्श्य, उत्तरी गुजरात के आदिवासियों और अनुसूचितजातियों का धर्मांतरण करवाना ही था, चाहे इसके लिए कोई भी नीति क्यों न अपनानी पड़े। वास्तव में उनके विकास से उनका कोई लेना देना नहीं था। सभी योजनाएं चाहे वह समाज सेवा, शिक्षा एवं स्वस्थ्य सेवाएं हो, वे केवल उन्हें लालच वश ही प्रस्तुत की जा रही थी।
इस हकीकत को सामने लाने का प्रयास करने वाला अब नहीं हैं – उनका देहान्त पिछले साल 11 मई 2014 को बनारस में हो चुका हैं – वह व्यक्ति थे फादर एन्थनी फर्नांडेज – येसु समाजी – एक कैथोलिक प्रीस्ट – एक सच्चा सन्यासी, एक सच्चा संत और एक राष्ट्रभक्त हिन्दुस्तानी।
महात्मा गांधी की भूमि – गुजरात में जन्मा – पला – बढ़ा, यह कैथोलिक प्रीस्ट गुजरातियों की धार्मिक आस्था का पर्याय था। गुजरात के महान संत नरसिंह मेहता के गीत और भजनों में रमा हुआ था – ’’वैष्णव जन तेने कहिए, जो पीर पराई जाने रे” – पराई पीर को दूर करने, पीड़ितों का कल्याण करने की साफ नीयत लिये हुए फादर एन्थनी फर्नांडेज, जेसुइट समाज (कैथोलिक चर्च) का अंग बन गया। उत्तरी गुजरात, जो अक्सर कम वर्षा का शिकार रहता हैं – के गरीब किसानों और आदिवासियों के लिए कैथौलिक जेसुइट मिशनरियों द्वारा चालयें जा रहे राहत कार्यों में अपने सुपीरियरों और प्रोविंशियलों द्वारा लगा दिया गया। लेकिन जब उसे इन देशी विदेशी मिशनरियों की धूर्ता और देश के प्रति षड्यंत्रों से साक्षात्कार हुआ तो उसने उनका पुरजोर विरोध करने के उपाय तलाशना शुरू कर दिया। लेकिन क्या यह ’’अकेला चना” भाड़ फोड़ सका?
ईसाइयत में शुरु से ही पूरी दुनियां को जितने का एक जानून रहा है और इसके इस कार्य में जिसने भी बाधा खड़ी करने की कौशिश की वह इस साम्राज्यवादी व्यवस्था से सामने ढेर हो गया। भारत में भी पोप का साम्राज्यवाद उसी नीति का अनुसरण कर रहा है। अगर कोई पादरी या नन व्यवस्था के विरुद्व कोई टिप्पणी करते है तो उनका हाल भी फादर एंथोनी फर्नाडिज जैसा ही होता है क्योंकि चर्च व्यवस्था में मतभिन्नता के लिए कोई स्थान नहीं है। इसी कारण भारत में कैथोलिक चर्च को छोड़ चुके सैकड़ों पादरी ओर नन चर्च व्यवस्था के उत्पीड़न से बचने के लिए ‘‘कैथोलिक चर्च रिफॉर्मेशन मूवमेंट (केसीआरएम) का गठन कर रहे है।
“ऊँटेश्वरी माता का महंत” के नायक फादर एंथोनी फर्नांडेज को भी ‘ईसा की तरह कू्रसित’ (सलीबी मौत) करने का लम्बा षड्यंत्र चल पड़ा। इस संघर्ष में वह अकेला था – उसके साथ कोई कारवां नहीं था। ईसा भी तो अकेले ही रह गये थे – उनके शिष्य उन्हें शत्रुओं के हाथ सौंप कर भाग गये थे और जिस यहूदी जाति के उद्धार के लिए वे सक्रिय थे वही जनता रोमन राज्यपाल पिलातुस से ईसा को सलीब पर चढ़ाये जाने के लिए प्रचण्ड आन्दोलन कर रही थी। यही हुआ था – ऊंटेश्वरी माता के इस महंत – फादर टोनी फर्नांडेज़ के साथ।
प्रसिद्ध गांधीवादी विचारक श्री कुमारप्पा (जो कि स्वयं कैथोलिक ईसाई थे) का विचार था: – पश्चिमी देशों की सेना के चार अंग हैं – ’”थल सेना, वायु सेना और नौसेना तथा चर्च (मिशनरी) ।“ इन्हीं चार अंगीय सेना के बलबूते पर पश्चिमी देश पूरे विश्व पर राज्य करने की योजना रचने में माहिर हैं।“ आज की परिस्थतियों में एक और सेना भी जोड़ी जा सकती हैं – वह पांचवी सेना हैं ’’मीडिया”
वर्तमान समय में अविकसित या अर्द्धविकसित देशों की प्राकृतिक सम्पदाओं – तेल – वनों – खनिजों की जितनी समझ पाश्चात्य देशों की हैं, उतनी समझ या जानकारी स्वयं इन देशों की सरकारों को नहीं हैं।
इस पुस्तक में स्पेनिश मिशनरियों द्वारा अपनाई गई ’’ऊँट की चोरी” करने की नायाब तरकीब बताई गई हैं – इस चोरी की विधि में केवल ऊँट ही नहीं चुराया जा सकता हैं अपितु ऊँट पालकों की जर जमीन, मान मर्यादा, धर्म-संस्कृति आदि सभी पर हाथ साफ किया जा सकता हैं। यहाँ तक की आदिकाल से चली आई सामाजिक एकता और समरसता को भी आसानी से विभाजित किया जा सकता है।
इन विदेशी मिशनरियों की सोच है किः – ’’यदि कोई ’’ईसाई युवती” अपनी पूर्व जाति के, ’’गैर-ईसाई” युवक से विवाह करना चाहती है, तो उसे मना मत करो – कालान्तर में वह अपने पति व सास-ससुर तक को ईसाई बना लेगी और उसके बच्चे तो पैदायशी ईसाई होंगे ही।’’
आपने कई बार ’’समानान्तर सरकार” शब्द भी सुना होगा या पढ़ा होगा। लेकिन समानान्तर सरकार या पैरलल गवन्रमेंट का असली स्वरूप क्या होता है? कैसा होता हैं? इस तथ्य से शायद रू-ब-रू नहीं हुए होंगे – ‘‘ऊँटेश्वरी माता का महंत” में आप को यह तथ्य भी समझ में आ जायेगा। कुल 107 एकड़ तिकोनी जमीन पर स्थापित ’’वेटिकन नगर राज्य” किस प्रकार से विश्व के तमाम देशों में किस तरह अपनी समानान्तर सरकार चला रहा है यह तथ्य फादर टोनी की कहानी पढ़कर ही जाना जा सकता है।
“ऊँटेश्वरी माता का महंत” पुस्तक में चर्च के साम्राज्यवाद का जिक्र जिस तरीके से किया गया है उसे पढ़कर देशभक्त भारतवासियों की आँखें खोल देने वाला है। पुस्तक का लेखक बताता है कि भारत में वेटिकन की ’’समानान्तर सरकार” स्वतंत्रता से पूर्व 1945 में ही स्थापित हो गई थी (जब यहाँ कैथोलिक बिशप्स कान्फ्रेंस ऑफ इण्डिया ;ब्ठब्प्द्ध का गठन हो गया था तथा वेटिकन का राजदूत (इंटरनुनसियों) नियुक्त हो गया था। भारत सरकार और राज्य सरकारों तथा उच्चधिकारियों पर इसकी कितनी मजबूत पकड़ हैं – को भी आप स्पष्ट रूप से देख-समझ सकेंगे – समाज सेवा, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा के खेल द्वारा यह समानान्तर सरकार जनता द्वारा चुनी गई सरकारों को अपने पॉकिट में किस तरह और किस ठसक से रखती हैं, आप कल्पना ही नहीं कर सकते! इस कार्य में पांचवी सेना ’’मीडिया” भी अपना अहम रोल अदा करती हैं।
“ऊंटेश्वरी माता का महंत” पुस्तक उन लोगों को अवश्य ही पढ़ना चाहिए जो राष्ट्रीयता, स्वाभिमान और सार्वभौमिकता के मायने समझते हैं और उन्हें भी पढ़ना चाहिए जो धर्मों की चारदीवारी में कैदी जीवन बिता कर कूपमण्डूक स्थिति में जीवित रहकर, स्वयं को सार्वभौम समझे हुए है। इस पुस्तक में अप्रत्यक्ष रूप से उन लोगों के लिए भी संदेश उपस्थित हैं, जो धर्मान्तरितों की ’’घर वापसी” चाहते हैं।
यह पुस्तक धर्मांतरित ईसाइयों की दयनीय स्थिति और चर्च नेतृत्व एवं विदेशी मिशनरियों द्वारा भारत में धर्मांतरण के लिए अपनाई जाने वाली घातक नीतियों और चर्च के राष्ट्रीय – अतंरराष्ट्रीय नेटवर्क का भी खुलासा करती है। पुस्तक में आज की परिस्थितियों का सही आंकलन हैं और इसके घातक परिणामों को रोकने के कुछ उपाय भी ढूंढने के प्रयास किये गए हैं।
“ऊंटेश्वरी माता का महंत” पुस्तक बताती है कि धर्मों की स्थापना, मानव समाज को विस्फोटक स्थिति से बचाए रखने के लिए, ’’सेफ्टी वाल्व” के रूप में हुई है। लेकिन जब यह ’’सेफ्टी डिवाइस” (रक्षा उपकरण) गलत और अहंकारी लोगों की निजी संपत्ति बन जाते हैं, तो मानवता के लिए खतरा बढ़ जाता है। वर्तमान समय में, ऐसे ही स्व्यंभू धर्म माफियाओं की जकड़ में प्रायः प्रत्येक धर्म आ गया है। अतः अब समय आ गया है, कि ऐसे तत्वों को सिरे से नकारा जाये ताकि मानवता सुरक्षित रहे।“