वेद विलास उनियाल
1- अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम एक साल से दिल्ली के एक एक मतदाता तक पहुंचने की कोशिश कर रही थी। वह सफल भी हुई। भाजपा वाले केवल नरेंद्र मोदी के करिश्मे और अमित शाह की रणनीति तक सीमित रहे। संघठन पर ध्यान नहीं दिया।
2- भाजपा का दिल्ली संगठन कमजोर होता गया। दिल्ली में नेताओं ने लोगों से अपने संपर्क कमजोर कर दिए। हर्षवर्धन जैसे गिनती के नेता थे जिनका लोगों से मिलना जुलना था। बाकि सब नेता दिल्ली के नरेंद्र मोदी हो गए थे। जिस आधार को मदन लाल खुराना औरसाहिब सिंह ने जतन से खड़ा किया उसे संभाल न सके।
3- कथित साधू सन्यासियों के गंदे प्रलापो , ओछी टिप्पणियों और समाज को बांटने वाले वकतव्यों से पार्टी कीी प्रतिष्ठा पर आंच आई। ये भूल गए कि नरेंद्र मोदी की सरकार को केवल विकास के नाम पर वोट मिला है। ये अपने गंदे खेलों पर उतर आए। आज की तकनीक और कंप्यूटर वाली नौजवानों की पीढ़ी ने सबक सिखा दिया। एक तरफ मोदी कहते रहे कि भारत में युवा असली ताकत है। पर ये साधू संन्यासी भूल गए कि यह पीढ़ी गंदे संवाद पसंद नहीं करती।
4 – साधू सन्यासियों की इस वाणी ने मुस्लिमों को आप के पक्ष में जाने का अवसर दिया। आखिर जिस मुस्लिम को सहज बनाने की बात थी , उसे उप्र से आए दिन उग्र भाषणों ने डरा दिया।
5 ऐन वक्त पर किरण बेदी आईँ। पर वह भी न समझ पाईं कि मतदाताओं से किस तरह संवाद करना है। अपनी पार्टी के संगठन को साथ लेकर चलना है। वह लगभग अकेली ही चलती रहीं।
6- ऐसा नहीं कि लोग आप पार्टी के हर काम पर बाग बाग हों। इस पार्टी को एक मौका दिया गया है। लोग यह भी चाहते हैं कि काम का संतुलन हों। भाजपा को कई अवसर मिल गए हैं, दिल्ली में एक बार आप को भी परख लिया जाए।
7- भाजपा जैसी पार्टी ने टिकट बांटने में पूर्वांचलियों और उत्तराखंडियों को महत्व नहीं दिया। किस तरह उनसे कहते कि हमें वोट दो। आप का कुछ नहीं बिगडा पर भाजपा के परंपरागत वोट खिसक गए।
8- एक विधानसभा चुनाव ही तो था। पर इतनी हाइप। प्रधानमंत्री की रैलियां और सौ सांसद चुनाव प्रचार में। यह शायदलोगों को ठीक नहीं लगा। विधानसभा चुनाव को उतना ही आकार देना चाहिए। मरने जीने की सवाल नहीं बनाना चाहिए। आप ने ऐसा किया तो समझ में आता था, वह एक नई खड़ी हो रही पार्टी हैं लेकिन भाजपा जैसी बड़ी पार्टी के लिए यह आतुरता ठीक नहीं थी।
9 केंद्र के नारों पर कब तक जीतते। ओबामा आए भारत को क्या दे के गए। इससे दिल्ली की विधानसभा में वोट करने वाली जनता नहीं सुनना चाहती थी। उन्हें अपने बिजली पानी झुग्गी झोपड़पट्टी के सवाल ज्यादा जरूरी थे। अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया ने उनसे बेहतर संवाद किया।
10 – इस अवधि में भाजपा नेताओं में वही सब दिखने लगा जो कांग्रेस के लिए दिक्कत बना था। बेशक भ्र्ष्टाचार की खबर नहीं आई। मगर ऐरोगेंसी दिखी। राहुल गांधी का सवाल वाजिब था। आखिर इतना महंगा सूट क्यों। नया भारत ने अगर कांग्रेस के मनीष तिवारी और सलमान खुर्शीद के नकचढेपन को इतिहास बना दिया, तो दिल्ली के जरिए भाजपा को संभलने की एक चेतावनी दी। भारत का नसीब जगेगा कि अगर आप दिल्ली में बेहतर काम काज करे और आज के इन साधू संन्यासियों को सद्बबुद्दि आए।