वेद उनियाल
सुबह फेसबुक पर आदरणीय मंगलेशजी का एक पोस्ट था। मेडिसिन चौक पर मोदी समर्थकों के जरिए राजदीप सरदेसाई पर हुए हमले के संदर्भ में। मंगलेशजी ने इस प्रसंग को लोकतंत्र और व्यक्ति की आजादी से जोड़कर देखा था। किसी पत्रकार के साथ दुव्यर्वहार हो, हमला हो तो यह बिल्कुल ठीक नहीं। ऐसा अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है।
लेकिन शायद मंगलेशजी तक गलत सूचना पहुंची। जो विडियो उपलब्ध हुआ है वह कुछ और बता रहा है। उसकी ज्यादा व्याख्या करना ठीक नहीं। पर इतना जरूर है कि पत्रकारों को भी अपनी मर्यादा का ख्याल रखना चाहिए। खासकर उन पत्रकारों को जिन पर पहले से किसी खास पार्टी को मदद करने का आरोप लगता रहा हो।
कोई पत्रकारिता का सिद्धांत किसी पत्रकार को यह अधिकार नहीं देता कि वह किसी नेता की सभा में जाकर लोगों से पूछे कि क्या उन्हें पैसा लेकर बुलाया गया है। खासकर प्रसंग भी देखा जाना चाहिए। यहां भाजपा का नेता नहीं, देश का प्रधानमंत्री अप्रवासी भारतीयों को संबोधित करने आ रहा था। क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार राजदीप सरदेसाईजी को ही है। उन लोगों को नहीं जो प्रधानमंत्री को सुनने मेडिसिन स्कायर में आए थे। अगर राजदीपजी उनसे सवाल कर सकते हैं तो लोग उनसे जुड़े एक मामले में सवाल नहीं कर सकते हैं। लोगों ने पूछा तो वह क्यों बौखलाए।
पत्रकार महोदय से यह भी पूछा जाना चाहिए कि क्या राहुल गांधी की सभा के बीच में जाकर उन्होंने कभी उनके समर्थकों से इस तरह के सवाल पूछे हैं।
क्या किसी नेता के समथर्कों से ( चाहे वो किसी भी पार्टी के हों ) किसी पत्रकार को ऐसा सुलूक करना चाहिए, जैसा राजदीपजी विडियों में करते हुए देखे जा रहे हैं।
आखिर उनकी भूमिका क्या थी । वह पत्रकार के बजाय एक पार्टी क्यों बने। अमेरिका में यह विडियों जगह जगह देखा गया है। ऐसे में क्या पत्रकारिता पर सवाल नहीं उठेंगे। वैसे नकली वीडियों का भी जमाना है। क्या पता राजदीप बहुत मासूम व्यक्ति हों। उन पर किसी तरह का सवाल करना ही गलत हो। क्या कह सकते हैं।
(स्रोत-एफबी)