अटल बिहारी वाजपेयी की हिंदी से कौन प्रभावित नहीं होगा. उनकी प्रभावशाली हिंदी उन्हें ओजस्वी वक्ता बनाती थी और जब वे बोलते थे तब लोग थम कर बस उन्हें सुनना चाहते थे.उनके बेहद करीबी और पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी भी उनकी हिंदी के मुरीद हैं.
आडवाणी जी की खुद की हिंदी भी बड़ी अच्छी है और अच्छे वक्ताओं की सूची में उनका भी स्थान भी है. लेकिन किसी ज़माने में लालकृष्ण आडवाणी को हिंदी नहीं आती थी.अटल बिहारी वाजपेयी की किताब ‘हमारे अटलजी’ के विमोचन के मौके पर खुद आडवाणी ने ये बात स्वीकार की.
लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि 1947 तक उन्हें हिंदी नहीं आती थी.उनकी भाषाएँ सिंधी और अंग्रेजी थी. यहाँ तक कि उन्होंने सिंधी में ही रामायण, महाभारत और गीता पढ़ी. बाद में अंग्रेजी में पढ़ी. तबतक हिंदी से कोई सरोकार नहीं था.
लेकिन जब संघ के सम्पर्क से उनका सामना अटल बिहारी वाजपेयी से हुआ तो तब वे उनकी हिंदी और भाषण देने की कला से चमत्कृत हो गए. उन्हें लगा वे टिक नहीं पायेंगे,क्योंकि वे न ऐसी हिंदी बोल पायेंगे और न ऐसा भाषण दे पायेंगे.
हालाँकि उन्होंने कहा कि वे अटल जी तरह बनना चाहते थे.लेकिन साथ में ये विचार हमेशा चला कि अटलजी मैं कभी नहीं बन सकता.
बहरहाल हिंदी सिनेमा देखकर पहले उन्होंने टूटी-फूटी हिंदी सीखी. पहले असहज रहे. लेकिन गुजरते वक्त के साथ उन्हें हिंदी ही सबसे सहज लगने लगी और अटल जी के प्रभाव में आकर लालकृष्ण आडवाणी सिंधी से हिंदी बन गए.