नीरज
कुछ दिन पहले दिल्ली में “आप” पार्टी ने किसानों के समर्थन में सभा की थी ! ये सभा केंद्र सरकार के भूमि-अधिग्रहण बिल का विरोध करने के लिए आयोजित की गयी थी ! इस सभा की चर्चा खूब हुई ! चर्चा होने का कारण ….बिल का विरोध नहीं था …बल्कि…..सभा में, राजस्थान से आये एक किसान का, सभा स्थल पर ही, आत्महत्या कर लेना और उसके बाद भी मिस्टर क्लीन (केजरीवावाल) और उनकी चौकड़ी का भाषण जारी रखना ! बाद में इस किसान की बेटी से , टी.वी. के ज़रिये, मुख़ातिब हुए “आप” के बे-ज़मीन शीर्ष नेता आशुतोष का रोना ! ये वही आशुतोष हैं , जो पत्रकारिता के सफर में ता-उम्र उन पूंजीवादी लोगों के इशारे पर, नाचते और नोट बटोरते रहे जो ज़मीनी सरोकार से ताल्लुक़ रखने वाले पत्रकारों से परहेज़ करते रहे हैं ! इन बनियानुमा मीडिया-मालिकों को मैनेजर्स चाहिए होता है और आशुतोष जैसे लोग इसके लिए एकदम फिट साबित होते हैं ! आशुतोष ने बरसों ऐसे बनियाओं की सेवा की ! एवज़ में आशुतोष ने फ़टाफ़ट 8-10 करोड़ कमा लिए ! अब सवाल था समाज में रुतबे का ! राजनैतिक रूतबे से बड़ा , फिलहाल, कोई रूतबा नहीं ! लिहाज़ा राजनैतिक महत्वाकांक्षा को परवान चढ़ाना ! राजनीति में मुद्दतों गुज़र जाते हैं , छोटा नेता बनने में ! बड़ा नेता बनने के लिए तो किस्मत चाहिए ! किस्मत काम कर गयी ! “आप” पार्टी सामने थी ! ना ज़मीन से जुड़ कर सालों संघर्ष करना पड़ा ना मेहनत ! सैंया भये कोतवाल ! पत्रकारिता में बिना संघर्ष के करियर बनाने वाले , राजनीति के क्षेत्र में भी इसी फॉर्मूले पर सफल हो गए ! केजरीवाल की कृपा से आज, आशुतोष, “आप” के एक बड़े नेता हैं ! छोटे से वक़्त में बड़ा नेता कैसे बना जाता है, ये कोई आशुतोष और उनके राजनीतिक गुरू केजरीवाल से पूछे !
दरअसल यहां गलती आशुतोष जैसों की नहीं है ! गलती है यहां केजरीवाल जैसे लोगों की , जो ज़मीन से जुड़े आदमी को उतना तवज़्ज़ो नहीं देते जितना ज़मीन से चार-फुट ऊपर रहने वाले लोगों को ! आशुतोष जैसों की गलती इसलिए भी नहीं मानी जा सकती क्योंकि आशुतोष जैसे मीडिया में ज़्यादातर ऐसे चेहरे हैं, जिनका एक ही माई-बाप अभियान है…… पैसा बटोरो ! ये वो स्वयंभू पत्रकार भाई लोग हैं, जिन्होंने दिल्ली के बाहर पत्रकारिता कभी की ही नहीं है पर देश के बड़े पत्रकारों में शुमार होते हैं ! कैसे ? इस बात का कोई ठोस प्रमाण इन महानुभावों के पास भी नहीं है ! छोटे शहरों की ज़मीनी हक़ीक़त से रू-ब-रू- सिर्फ स्ट्रिंगर के ज़रिये ही हुए !
पुण्य-प्रसून जैसे लोगों ने नागपुर में थोड़ा वक़्त गुज़ारा , पर बाद के समय में सिवाय पैसा बटोरने के कुछ नहीं किया ! किस्मत के धनी रवीश भी कुछ ऐसे ही राह पर हैं ! पत्रकारों का ये तबक़ा, क्रिकेट के मैदान में ताली बजाकर तथाकथित देशभक्ति दिखाने वाले, दर्शकों की तरह है , जो अपने निजी जीवन में जन-सरोकार या राष्ट्र या फिर समाज को कुछ देने जैसी बातों से कत्तई इत्तेफ़ाक़ नहीं रखता ! मैं इन सबकी बात इसलिए कर रहा हूँ, क्योंकि बढ़िया ज़ुबानी सेंट लगाकर चलने इन पत्रकारों की मानसिक बदबू से दिल्ली-नोएडा में, मेरे अलावा, कई लोग ख़ासे परिचित हैं ! ये मौक़ा पाये वो खुशकिस्मत लोग हैं जो “खुदा मेहरबान तो ..धा पहलवान” को बखूबी चरितार्थ कर रहे हैं ! ये ब्रीड टी.वी. पर अपना चेहरा दिखाने और चंद लाइन की लफ़्फ़ाज़ी कर अपना बैंक बैलेंस बना रही है ! ख़तरा यहां पर भी नहीं है ! ये धंधेबाज लोग हैं, बोल-बोल कर पैसा कमा रहे हैं ! इनके पैसा कमाने से किसी को , गर, तक़लीफ़ होती है तो वो गलत है ! यहां मुद्दा या खतरा ये नहीं है ! खतरनाक है “आप” पार्टी और इसके मुखिया अरविन्द केजरीवाल का वो रुझान, जिसमें ऐसे पत्रकारों के लिए (पार्टी में) शीर्ष पायदान पर जगह खाली छोड़ी गयी है ! केजरीवाल हमेशा अपने बारे में यही राग अलापते हैं कि उन्होंने अपनी क्लास-1 सर्विस और कमाऊ ज़रिये को लात मार दिया और राष्ट्र-निर्माण के उद्देश्य से राजनीति में आये हैं ! लेकिन केजरीवाल से कोई ये पूछे कि अपना बैंक बैलेंस गले तक भरने वाले पत्रकारों को पार्टी में शीर्ष पायदान पर बैठाने वाले केजरीवाल जी का मक़सद क्या है, तो, “आप” का ये घाघ नेता संतोषजनक जवाब नहीं दे पायेगा ! बड़े पत्रकारों को किसी भी पार्टी में ग़र शामिल किया जाता है तो एक सवाल लाज़िमी होता है, कि, करोड़ों के बैंक बैलेंस बनाने के बाद राजनैतिक रसूख की तलाश करने वाले इन पत्रकारों को ज़मीन सूंघने की सलाह देने से केजरीवाल जैसे स्वयंभू ज़मीनी नेता कतराते क्यों हैं ? काम की बजाय नाम का रूझान खतरनाक है ! समाज और राष्ट्र दोनों के लिए ! ये एक ऐसा बवंडर रूझान है जो “आप” को दूसरी कांग्रेस बना सकता है ! कांग्रेस के बारे में ये साफ़ बहुमत है कि ये पार्टी परिवार-वाद पर चलने और काम की बजाय नाम पर ज़्यादा यकीं रखने वाली पार्टी है ! “आप” की चौकड़ी में कुमार विश्वास की कविता का धंधा कई गुना बढ़ चुका है ! पिछले कुछ दिनों से लगातार बेहद गलत फैसले लेते जा रहे केजरीवाल, अगर, ऐसे लोगों को लेकर राष्ट्र निर्माण का सपना बुनते हैं तो यकीन मानिए , कि, आम आदमी को तरीके से धोखा देने वाली मिसाल इससे बेहतर नहीं हो सकती !
आशुतोषों-प्रसूनों-रवीशों और चौरसियाओं को टी.वी. पर लफ़्फ़ाज़ी कर करोड़ों रुपया बैंक बैलेंस बनाने के लिए छोड़ दिया जाए ! इससे ज़्यादा इनसे उम्मीद करना बे-ईमानी होगी ! आज ज़रुरत है उन लोगों की है, जो निजी जीवन में भी ज़मीनी सरोकार की तासीर से वाक़िफ़ हैं और लफ़्फ़ाज़ी के साथ-साथ राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रिया में व्यक्तिगत तौर पर भी ईमानदारी से शामिल हैं ! आशुतोष-प्रसून और रवीश जैसों के भरोसे राष्ट्र निर्माण कत्तई नहीं हो सकता श्रीमान केजरीवाल ! इसका प्रमाण देखना है तो सोशल मीडिया में चले जाइए, जहां आम आदमी इन लफ़्फाज़ीबाज़ों के पूरे विरोध में खड़ा है ! आम आदमी के नेता की नुमाइंदगी का दम्भ वाले श्री श्री केजरीवाल साहब , अब, आप ख़ास आदमियों के नेता हैं ! “आप” निर्माण को राष्ट्र निर्माण का चोला पहनाने से बाज आएं हुज़ूर ! माना कि जड़ जमाने और खोदने में ,आप पर, ख़ुदा की इनायात है , मगर, ख़ुदा की मेहरबानी का इस क़दर नाजायज़ इस्तेमाल ठीक नहीं ! घोड़ों की शक्ल वाले गधे आप का बोझा ढो सकते हैं, इस देश के बोझ को उठाने में उनकी क़ूबत व् दिलचस्पी ना के बराबर ! आज देश को इन जैसों की ज़रुरत कत्तई नहीं है ! इस मुल्क़ को समझिए “आप” ! इंशाअल्लाह ! गुज़ारिश क़ुबूल हो !
(नीरज ……लीक से हटकर)