हर्ष रंजन
आम यानी आम आदमी पार्टी मे शामिल होने वाले खास टीवी पत्रकार आशुतोष अमेठी की रैली में कुमार विश्वास के डेप्यूटी के तौर पर कोई बड़ी छाप नहीं छोड़ पाये। राजनीतिक पार्टी में शामिल होने होने के बाद किसी भी दूसरे पेशे के प्रोफेशनल को सार्वजनिक मंच पर आने से पहले कूलिंग ऑफ पीरियड रखना चाहिये।
राजनीतिक पार्टी ही क्यों, किसी भी पेशे के वरिष्ठ जब अपना धंधा बदलते हैं तो खुद को न्यूट्रलाईज़ करने के लिये थोड़ा वक्त लेते हैं। टीवी वाले भी जानते हैं कि एक विज़ुअल से दूसरे में जाने के बीच में एक ट्रांजिशन होता है। भारत सरकार के भी सचिव स्तर और बड़े अधिकारी रिटायर होने के तुरंत बाद कोई दूसरी नौकरी नहीं कर सकते। चैनलों में भी वरिष्ठता के हिसाब से नोटिस पीरियड होता है। इसकी सिर्फ एक ही वजह है कि पेशे में आपसे कोई सरोकारी असंतुलन न हो जाय।
बहरहाल -आप- जल्दबाज़ी में है, और इसमें शामिल होने वाले आदमी समय से पहले लक्ष्य को पाने की फिराक में। ऐसे में कहीं लोकसभा चुनावों से पहले आप का आभामंडल न खो जाय, ये डर आम आदमी को सताने लगा है। केजरीवाल को ये देखना होगा कि आम आदमी की जो बयार चली है, उसे लोग दूषित न कर सकें, भले ही उन्होंने पार्टी की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से मदद की हो।
कई बड़े जाने-माने खास लोग -आप- में शामिल हो रहे हैं, लेकिन किसको क्या, कब और कौन सी जगह मिले पार्टी इसे ज़रूर परखे, वरना भारत ही नहीं दुनिया मे कोई भी ऐसा राजनीतिक दल नहीं रहा है, जिसमें टूट न हुई हो।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)