टाइम्स नाउ पर कई दिनों तक अरनब गोस्वामी कालेधन के मामले में चीख-चीख के चिल्ला रहे थे कि सरकार लोगों के नाम न बता कर फंस गई है. वह इस गलतफहमी की वजह से चिल्ला रहा था क्योंकि उसे लगा कि उसके चिल्लाने से सरकार दबाव में आ जाएगी और वो लिस्ट सबसे पहले टाइम्स नाउ को दे दिया जाएगा. कल भी ऐसा ही हुआ. लेकिन आज सबेरे जब कोर्ट को कालेधन के कुबेरों की लिस्ट दे दी गईं, तब खेल बदल गया. टीवी वाले सुबह ये कह रहे थे कि कोर्ट ने बड़ा क्रांतिकारी फैसला लिया. लेकिन शाम तक ये मामला जब उन्हें समझ में आया तो 9 बजे वाले बड़े बड़े संपादकों के बड़े बड़े प्राइम टाइम शो से कालेधन का मामला ही गायब हो गया. पता नहीं सबेरे सवेरे इनलोगों ने क्या पी रखी थी कि ये मामूली सी बात नहीं समझ सके. कोर्ट ने बस इतना किया कि लिस्स का सील बंद लिफाफा एसआईटी को दे दिया. अब पता नहीं कोर्ट ने क्यों किया. लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि एसआईटी के पास तीन महीने पहले से ही वो लिस्ट है. जो दलील सरकार दे रही थी वही दलील कोर्ट ने भी दी. सरकार भी लिस्ट में शामिल नामों को उजागर नहीं किया तो कोर्ट ने भी नाम उजागर करने से मना कर दिया. केजरीवाल को भी सदमा लगा और अरनब भी मुरझा गया. अच्छा होता दोनों मिल कर सुप्रीम कोर्ट के सामने धरने पर बैठ जाते कि नामो की लिस्ट दो.
मुद्दा हाथ से निकल गया. सुप्रीम कोर्ट से आज मशाला नहीं मिल पाया तो अरनब ने फिर से एक घिसे पिटे टापिक को उठाकर अपनी मूर्खता का परिचय दिया. बात का बतंगर बनाने में अरनब गोस्वामी कई हिंदी चैनलों के छुटभैये संपादकों से कही आगे निकल गया है. अरनब ने कल भी इस मुद्दे पर बहस की और आज भी हंगामा खड़ा किया. बात बस इतनी सी है कि हरियाणा के किसी व्यक्ति ने इतना कहा कि स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियों को टाइट जींस और सेलफोन इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. ये बात भी सही है कि आज के जमाने में इस तरह के बयान पर बवाल मच जाता है. हर किसी को इस तरह के बयान देने से बचना चाहिए और न ही इस तरह के बयान देने का किसी को अधिकार है. लेकिन अरनब ने इसे ट्विस्ट कर दिया. जो बात स्कूली बच्चियों के लिए कहा गया उसे उसने महिलाओं पर होने वाले अत्याचार के मामले से जोड़ दिया. मानवाधिकार से जोड दिया. इस तरह के मुद्दे पर बोलने के लिए उन्ही पुराने चेहरों को स्टू़डियो में बिठाया जिनका चेहरा देखते ही समझ में आ जाता है कि उनके मुंह से क्या निकलने वाला है.
राई का पहाड़ बन गया. इस तरह के बयान देने को हिंदू महासभा से जोडा गया. टीवी पर दिखने के भूखे व आसाराम के समर्थक एक भगवाधारी पंडित चक्रपाणि को बिठा दिया जो खुद को हिंदू महासभा का अध्यक्ष बता रहे थे. साथ में एक और खाप नेता को बिठाया और अरनब ने जलील करना शुरु कर दिया. उन्हें बेइज्जत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. कल भी हुआ था लेकिन जब आज कालेधन के मामले में निराशा हाथ लगी तो फिर से अपना दरबार लगाया.. वही पुराने चेहरे अवतरित हुए और वही पुरानी बाते और पुराना राग जो हम बचपन से सुन रहे हैं दोहराया जाने लगा. अब पता नहीं पंडित चक्रपाणि की बात कितने लोग देश में सिरियसली लेते हैं लेकिन अरनब गोस्वामी आज देश को यह बता रहा था कि भारत में तालीबान आ गए हैं. इससे भी बड़ी मूर्खता तो यह है कि वो देश भर के लोगों से अपील कर रहा था कि ये मामला सिर्फ हरियाणा का नहीं है.. ये इंडियन तालीबान असम तमिलनाडू महाराष्ट्र और देश के दूसरे राज्यों में भी पहुंच सकता है.. क्योंकि हिंदू महासभा पूरे देश में फैला है और कई राज्यो में इसकी सत्ता और पावर में हिस्सेदारी है..अब इसे अरनब की समझारी समझिए या मूर्खता लेकिन सच्चाई तो यह है कि हिंदू महासभा का न तो कोई राष्ट्रीय स्तर का संगठन है और न ही इसके पास कोई शक्ति है.. बात कहां से कहां निकल गई.. स्कूल की बच्चियों की बात खत्म हो गई.. मामला इंडियन तालीबान पर पहुंच गया.
दरअसल चैनलों के पास खबर न हो तो कुछ एवरग्रीन मुददे है जिसे बड़े बड़े उस्ताद टाइप के एडीटर बाजार में परोस देते हैं.. बहस के नाम पर विचारधारा विशेष और संगठन विशेष को गालियां पड़ती है.. खासकर बीजेपी-आरएसएस या कुछ भी भगवा या हिंदू टाइप का दिखते ही ये टूट पड़ते हैं.. इनका खाना पच जाता है.. टीआरपी आ जाती है.. और एक दिन गुजर जाता है.. वैसे अरनब की वजह से देश के कई अभिभावकों को लगा होगा कि वो खाप हैं. वो तालीबान में शामिल हो गए है.. क्योंकि वो अपनी बेटियों को सेलफोन नहीं देते.. उनके मनमुताबिक कपडे़ न देकर अपने हिसाब से शालीन ड्रेस देते हैं. बस यही बात हरियाणा के एक नेता ने कही थी.. लेकिन उनके अस्तित्व से खाप का नाम जुड़ा था.. हिंदू महासभा जुड़ा था तो अरनब ने उसकी क्लास लगा दी.. इस शो में एक और अशोभनीय बात यह थी कि बृंदा ग्रोवर और रंजना कुमार ने जिस तरह से आचार्य चक्रपाणि को उनके नाम से पुकारा और तुम-ताम किया गया. टीवी पर इस तरह की बेइज्जती किसी दूसरे धर्म के धर्मगुरुओं के साथ होते कभी नहीं देखा. चाहे वो कितना भी कपटी क्यों न हो..
अरनब गोस्वामी तो महाज्ञानी है उसे कौन समझा सकता है.. उसके सामने कौन बोल सकता है.. लेकिन आपसे यह कह सकता हूं कि एक पत्रकार होने और प्रतिक्रियावादी पत्रकार होने में फर्क होता है..
(स्रोत-एफबी)
मनीष कुमार