आजतक चैनल की एंकर/संवाददाता अंजना ओम कश्यप के साथ छेड़खानी की घटना के पन्द्रह दिन से ज्यादा होने को है. ज्ञात हो कि 16 दिसंबर की रात जब दिल्ली में रात के करीब साढ़े नौ बजे दामिनी के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना हुई, उसके कुछ घंटे बाद टीवी टुडे नेटवर्क ने अपने दस महिला रिपोर्टरों को दिल्ली के अलग-अलग हिस्से में ये जानने के लिए कि दिल्ली में स्त्रियां कितनी सुरक्षित है और सुरक्षा के किस स्तर के इंतजाम हैं,भेजा. इसी कड़ी में रात के करीब साढ़े ग्यारह बजे एम्स फ्लाईओवर के पास से अंजना ओम कश्यप रिपोर्टिंग कर रही थी कि कार में सवार कुछ मनचले आए और उनसे पूछा- चलना है ? अंजना ओम कश्यप ने पलटकर पूछा- कहां और तभी मनचलों ने देखा कि पास ही कैमरा है तो कैमरा,कैमरा चिल्लाते हुए भाग खड़े हुए.
चैनल ने गाड़ी की नंबर प्लेट जूम इन करके बार-बार दिखाया और कहा कि क्या इनके मालिक पर कार्रवाई होगी और इन मनचलों को पकड़ा जाएगा ? आपलोग प्लीज मेरी जानकारी बढ़ाएं कि क्या इस घटना के 15 दिनों बाद इश मामले पर किसी तरह की कार्रवाई हुई ? ये जानते हुए कि ये देश के सबसे तेज चैनल की संवाददाता के साथ घटना हुई है इसलिए अलग से नहीं पूछ रहा हूं कि उन्होंने एफआइआर दर्ज कराया भी था या नहीं ? अगर जल्दीबाजी में और दामिनी पर लगातार स्टोरी करने के दवाब के कारण ऐसा नहीं कर पाई हो तो क्या टीवी टुडे नेटवर्क ने थाने में किसी तरह की शिकायत दर्ज करायी है और थाने पर लगातार दवाब बनाए हुए है कि इस पर तत्काल कार्रवाई हो ?
ये सवाल इसलिए भी जरुरी है कि दामिनी सामूहिक बलात्कार हत्या मामले पर हो रही लगातार बहसों के बीच वाया हन्नी सिंह के गाने खासकर क्योंकि मैं बलात्कारी हूं को लेकर सिनेमा,उसके गाने, विज्ञापन और मीडिया में स्त्री छवि को उपभोग की वस्तु के रुप में प्रोजेक्ट किए जाने पर बहस का दौर शुरु हो गया है. ऐसे में फिल्म समीक्षक मयंक शेखर से लेकर फिल्म निर्देशक अनुराग कश्यप जैसे लोग उनके बचाव में सामने आए हैं और ये तर्क प्रस्तावित कर रहे हैं कि इस तरह के किसी भी गाने पर पाबंदी लगाना दरअसल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंटना है जबकि हम जैसे लोगों का तर्क है कि जिसे वो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता करार दे रहे हैं वो दरअसल बाजार और मार्केटिंग के पक्ष में दिया जानेवाला तर्क है. सच्चाई तो यही है कि स्त्री छवि और उनके साथ होनेवाले भेदभाव,हिंसा और उत्पीड़न को एक सांस्कृतिक उत्पाद के रुप में न केवल पेश किया जा रहा है बल्कि बाकायदा इसका वर्कशॉप चला रहे हैं. ये स्त्रियों के प्रति संवेदनशील बनाने के बजाए शराब,देह व्यापार, रेव और स्ट्रिपटीज पार्टी के लिए मैनिफेस्टो तैयार कर रहे हैं. ऐसे में जब टीवी टुडे नेटवर्क इश घटना की प्रेस रिलीज जारी करते हुए ये कसम खाता है कि वो दामिनी के लिए न्याय और उसकी लड़ाई से पीछे नहीं हटेगा तो सवाल और भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं कि दामिनी के लिए न्याय तो ठीक है, अफनी संवाददाता के साथ हुई छेड़छाड़ के लिए क्या कर रहा है ? 16-17 दिसंबर के बाद उसने अंजना ओम कश्यप की इस घटना पर क्या हुआ, कोई अपडेट दिया क्या ? अगर वो इस घटना को ज्यादा तूल नहीं देना चाहता तो फिर एफ एम चैनल पर इसे बाकायदा प्रोमोशन एलीमेंट के रुप में क्यों लांच किया ? क्या समझना मुश्किल है कि जो घटना समाज की एक गंभीर समस्या है वो चैनल औऱ मेनस्ट्रीम मीडिया के लिए प्रोमोशन औऱ मार्केटिंग का हिस्सा है ? यहीं पर आकर जो लोग लपंट उत्पादों को संस्कृति का नाम दे रहे हैं और इसके बचाव में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की चादरें चढ़ा रहे हैं वो खुलकर सामने आ जाता है.
दामिनी के लिए आजतक सहित देश के सैकड़ों चैनल लड़ रहे हैं औऱ लड़ना भी चाहिए लेकिन संवाददाता अंजना ओम कश्यप के साथ जो कुछ भी हुआ, उसके लिए आवाज कितनी बुलंद है, इस पर सोचने की जरुरत है और इसमें अलग से जोड़ने की जरुरत नहीं है कि स्वयं अंजना ओम कश्यप जैसी संवाददाता कितनी कॉन्शस है और इसे अपने स्तर पर आगे ले जाने की कोशिश में है ? नहीं तो देश की बाकी समस्याओं के सांस्कृतिक उत्पाद में तब्दील होने की कवायद की तरह इसे भी इससे अलग नहीं समझा जाएगा.
(विनीत कुमार- युवा मीडिया समीक्षक, टीवी कॉलमनिस्ट( तहलका हिन्दी) और मंडी में मीडिया किताब के लेखक.)
kya jaruri hai kisi ko badnama karne ke maksad se is tarah ek sting opretion karna ye sab media koa fuhad pan darsata hai kya apa garnti de sakte ho ki delhi ki sadkon par call girl nahi khadi rahti hen jesa samaaj me ho raha hia wahi saty hia yahi saty hia delhi call girl khuleaam ghumti hen or dhanda karti hen