न्यूज़ चैनलों के क्राइम शो की दुनिया से निकलकर कई बार क्राइम और क्रिमिनल अपने सबसे घिनौने रूप में कुछ यूँ सामने आकर खड़े हो जाते हैं कि सहसा विश्वास नहीं होता कि ऐसा भी हो सकता है. हकीकत के हकीकत होने का यकीन नहीं होता और यह सब अपराध कार्यक्रमों के नाटकीय रूपांतरण जैसा लगता है. दिल्ली में बीते दिन एक महिला के साथ चलती बस में गैंगरेप हुआ तो सत्ता के गलियारे से लेकर सड़क तक और फेसबुक – ट्वीटर से लेकर न्यूज़ चैनलों के स्क्रीन तक शोर – ही – शोर सुनायी दिया.
आम जनता में ऐसी घटनाओं को लेकर व्याकुलता है और वह पत्थर मार – मार कर बलात्कारियों का फैसला तुरत – फुरत कर देना चाहती है ताकि उसके घर की माँ – बहन सुरक्षित रह सके. दूसरी तरफ विपक्षी दलों के लिए सत्ता पर काबिज पार्टी को घेरने का एक सुनहरा अवसर. ऐसे में समाचार चैनलों के लिए भी बड़ी गुंजाइश बनती है. जी – जिंदल के उगाही वाली संस्कृति के ज़माने में खबरों के कारोबार के बीच थोडा सरोकार दिखाने का मौका खबरिया चैनलों को भी ऐसी घटनाओं के घटित होने के बाद मिल जाता है. इसलिए आजतक से लेकर एबीपी न्यूज़ और तमाम बड़े – छोटे चैनल एक मुहिम की तरह खबर चलाते हैं.
सो इस बार भी समाचार चैनल गुस्से में हैं दिल्ली के बलात्कारी को टेलीविजन पर ही फांसी पर चढ़ा देना चाहते हैं. एबीपी न्यूज़ पर दीपक चौरसिया के शो में बहस छिड़ी हुई थी कि क्या बलात्कारियों को फांसी की सजा होनी चाहिए? चैनल पुलिस, प्रशासन और सरकार की फजीहत कर रहे हैं, सवाल उठा रहे हैं और उठाना भी चाहिए. लेकिन एकाध सवाल चैनलों को अपने आप से भी करनी चाहिए. सवाल कि ऐसी मुहिम किसी ऐसी घटना के घटने के बाद ही क्यों की जाती है? चैनलों का यह गुस्सा पहले क्यों नहीं दिखता और जब दिखता भी तो घटना घटने के बाद जो कुछ दिनों में ठंढा पड़ जाता है और सबकुछ पहले जैसा चलने लगता है. फिर अगली बहस के लिए अगले बलात्कार का इंतजार किया जाता है. उम्मीद करते हैं इस दफे चैनलों का यह गुस्सा आगे उसकी खबरों में भी दिखता रहे.
ख़ैर चैनलों का यह गुस्सा और मुहिम काम आया. खबर के असर से मामला संसद में भी गूंजा. पीड़ित लड़की से मिलने सोनिया गांधी अस्पताल में पहुंची.. गृहमंत्री का बयान आया और 48 घंटे के अंदर बस और बस के अंदर कुकृत्य करने वाले वहशी पकड़े गए.. यह बात और है कि बलात्कार के सभी मामलों में पुलिस और प्रशासन की तरह समाचार चैनल भी इतनी चुस्ती नहीं दिखाते और न ही ऐसी व्यापक कवरेज करते हैं.
कवरेज के नाम पर चैनलों की तफ्तीश अलग – अलग तरीके से शुरू हुई. लेकिन देश के नंबर एक चैनल आजतक ने अपने चैनल की 10 महिला एंकर – रिपोर्टर को ही मैदान में उतार दिया. ये 10 महिला रिपोर्टर दिल्ली के अलग – अलग इलाके में फैल कर सुरक्षा व्यवस्था और उसमें खामियों का जायजा लेने लग गयी. इन दस महिला रिपोर्टर में से एक अंजना कश्यप भी थी. अंजना एम्स के पास रिंग रोड पर खड़ी होकर जब पीटूसी कर रही थी तभी कार में सवार होकर कुछ मनचले आये और छेड़खानी की मुद्रा में अंजना कश्यप से बातचीत की .
मनचले ने पूछा –चलें.
अंजना कश्यप ने कहा – कहाँ चलना है?
फिर मनचले की नज़र कैमरे पर पड़ी और कैमरा … कैमरा कहते सब वहां से चलते बने.
लेकिन तबतक सबकुछ आजतक के कैमरे में कैद हो चुका था. आजतक ने खबर की शक्ल में इसे चैनल पर बार – बार दिखाया और खुद यह स्वीकार भी किया कि यदि अंजना कश्यप के साथ कैमरा नहीं होता तो वो मनचले न जाने क्या करते? यानी यह कैमरे का खौफ था जिसने मनचलों को शैतान बनने से पहले ही भागने पर मजबूर कर दिया. लेकिन पूरी खबर देखने के बाद यही ख्याल बार – बार आया कि काश ऐसा ही कोई कैमरा उस बस में या उसके आस – पास भी होता तो एक महिला की इज्जत ऐसे तार – तार नहीं होती. लेकिन न वहां वारदात की टीम थी और न सनसनी की और न उनका किसी तरह का खौफ.
दरअसल पुलिस, प्रशासन और नेताओं की तरह रेप के खिलाफ मीडिया की मुहिम भी क्षणिक है. घटनाक्रम के बाद जैसे दूसरे विषयों पर बहस होती है. उसका विश्लेषण होता है और बात खत्म हो जाती है. ठीक वैसे ही चैनलों के लिए बलात्कार भी महज एक विषय है जो उसके लिए चर्चा का विषय तब – तब ही बनता है जब – जब ऐसे बलात्कार होते हैं. आजतक ने कैम्पेन शुरू किया है कि, ‘पूछता है आजतक – आखिर कबतक’. लेकिन आजतक कबतक इस मुद्दे को पूछता रहेगा. यह भी एक सवाल है. कैमरे का डर वाकई में कायम रहता तो न पुलिस – प्रशासन ऐसी निकम्मी होती और न अपराधियों के हौसले ऐसे बुलंद होते. यह पुलिस, प्रशासन और सरकार की ही विफलता नहीं बल्कि समाचार चैनलों और पूरे मीडिया की भी विफलता है.
पुष्कर पुष्प ,
संपादक ,
मीडिया खबर डॉट कॉम
thish news is damn true why media take stand when a crime does the time to do every time