(मुकेश कुमार,वरिष्ठ पत्रकार) –
तो अब एनडीटीवी को भी घुटने टेकने पड़ गए हैं। सर्जिकल स्ट्राइक से जुड़े कवरेज को सेंसर करने के जो तर्क उसने दिए हैं वे न पत्रकारिता की कसौटी पर खरे उतरते हैं और न ही लोकतंत्र की। सर्जिकल स्ट्राइक पर राजनीति करने या सेना पर संदेह करने वाली सामग्री नहीं दिखाने का ऐलान उसकी संपादकीय समझदारी के बजाय उसके भय को ज्यादा प्रतिध्वनित कर रहा है।
प्रश्न और संदेह करना पत्रकारिता का बुनियादी काम है, मगर वह उसी से खुद को अलग कर रहा है। ये और कुछ नहीं राष्ट्रभक्ति का पाखंड है, जो दूसरे चैनल पहले से उससे बेहतर ढंग से कर रहे हैं। सरकार या सेना दोनों सही या ग़लत काम कर सकते हैं और मीडिया का ये दायित्व है कि वह दोनों ही को वस्तुपरक ढंग से रिपोर्ट करे।
और हाँ, राजनीति को परे धकेलने का ये प्रयास भी राजनीति से ही प्रेरित लगता है।
ये शर्मनाक है कि उसने पी. चिदंबरम का इंटरव्यू और राहुल गाँधी का बयान नहीं दिखाया, जबकि इसी मसले पर अमित शाह की प्रेस कांफ्रेंस को लाइव किया। ये उसके डर जाने का सबूत तो है ही, उसके दोहरे रवैये का भी परिचायक है।
उसे अपने फ़ैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए। हो सकता है कि उसे तनकर खड़े होने की सज़ा भुगतना पड़े और अंधराष्ट्रवादी उसे देशद्रोही घोषित कर दें (जो कि वे कर भी चुके हैं) मगर देश के प्रति वह अपनी जवाबदेही साबित तो कर सकेगा।अघोषित इमर्जेंसी अब अपने पैर पसारती जा रही है। मीडिया झुकते-झुकते अब रेंगने की मुद्रा में आ गया है। @fb