न्यूज़24 के मैनेजिंग एडिटर अजीत अंजुम अक्सर आलोचकों और मीडिया वेबसाईट के निशाने पर रहते हैं. वजह उनका बेबाकपन है. उनकी खासियत है कि वे खुलकर टेलीविजन का पक्ष लेते हैं. घूमा – फिराकर बात करते नहीं. सीधे – सीधे खरी – खरी बात करते हैं. इसलिए टीवी आलोचकों के निशाने पर भी सबसे ज्यादा रहते है.
यूँ अजीत अंजुम सभा – संगोष्ठी में वक्ता के रूप में चुनिंदा जगह ही जाते हैं. मीडिया खबर डॉट कॉम के आग्रह पर वे मीडिया खबर के मीडिया कॉनक्लेव में 27जून को वक्ता के रूप में आए और टीवी संसद : कितनी खबर, कितनी राजनीति विषय पर अपनी बात संजीदगी से रखी. उन्होंने रेवेन्यू का मुद्दा उठाते हुए कहा कि जबतक हम इसपर बहस नहीं करेंगे तबतक बहस से कुछ हासिल नहीं होने वाला है. पांच साल पहले भी हम यही बहस कर रहे थे और पांच साल बाद भी यही बहस करेंगे और शायद अगले बीस साल बाद भी यही बहस करेंगे और कहीं नहीं पहुंचेंगे. इस बात को समझना होगा कि अखबार और टेलीविजन के कवरेज के खर्चे में 100% का अंतर होता है. हम मालिक की बात करें और आप जनता की तो रास्ता नहीं निकलेगा. सवाल ये है कि चैनल कैसे चले और उसका रास्ता क्या होना चाहिए? ये जवाब आपलोगों से भी आना चाहिए. सिर्फ टेलीविजन की आलोचना से कोई रास्ता नहीं निकलेगा और न कुछ बदलेगा.
बहरहाल बातचीत के अंत में जब सवाल – जवाब का सत्र शुरू हुआ तो फेम इंडिया के एसोसिएट संपादक ‘धीरज’ ने एक सवाल इंडिया टीवी के मैनेजिंग एडिटर विनोद कापड़ी को संबोधित करते हुए पूछा कि इंडिया टीवी पर निर्मल बाबा वापस आ गए हैं, कुछ बताना चाहेंगे. न्यूज़24 पर तो पहले ही आ चुके हैं.
सवाल सुनते ही अजीत अंजुम ने पूछा कि क्या आपका नाम जान सकता हूँ ?
उनका जवाब आया – धीरज ……
अजीत अंजुम ने कहा कि क्या इस सवाल का जवाब मैं दे सकता हूँ? क्योंकि मामला रेवेन्यू से जुड़ा हुआ……
उसके बाद उन्होंने फेम इंडिया का वह अंक दिखाकर बखिया उधेड़ना शुरू किया कि धीरज जी आप इस पत्रिका से जुड़े हुए और हमें बताएं कि इस पत्रिका के माध्यम से आप क्या कर रहे हैं. फिर एक – एक पन्ने को पलटकर पत्रिका में प्रकाशित स्टोरीज को उन्होंने ‘पी आर स्टोरीज’ करार देते हुए धीरज से सवाल दागा कि पूरी पत्रिका में एक भी आलोचना नहीं है.
स्पष्ट है कि आपका भी एक बिजनेस मॉडल है सो आप अपने बिज़नेस मॉडल के हिसाब से पत्रिका का कंटेंट तैयार करते हैं. आपका यह बिज़नेस मॉडल है . यह पत्रकारिता नहीं है. माफ करिये धीरज जी , हम सबको अपने गिरेबान में झांकना चाहिए. सवाल उठाने वालों को भी अपने गिरेबान में झाँक कर देखना चाहिए. पहला पत्थर वो मारे जिसने कभी कोई पाप न किया हो.
अजीत अंजुम के इस त्वरित सवाल – जवाब पर पूरे हॉल में जबरदस्त तालियाँ बजी. यहाँ तक कि उनके पास बैठे कमर वहीद नकवी और उर्मिलेश जैसे वरिष्ठ पत्रकार भी अपनी हँसी नहीं छुपा सके और तालियाँ बजाने लगे.
यूँ मीडिया खबर, मीडिया कॉनक्लेव के अंतिम सत्र के आखिरी कुछ क्षण अजीत अंजुम के नाम रहा. वैसे उनकी बात पूरी तरह से गलत भी नहीं थी. चैनलों को समझना है तो उनके रेवेन्यू मॉडल को भी समझना होगा और जब भी ऐसे विमर्श हो तो उसमें उसे शामिल भी करना चाहिए. लेकिन उधर धीरज भी अपने सवाल पर डंटे रहे. लेकिन अच्छी बात ये रही कि निर्मल बाबा के बहाने रेवेन्यू मॉडल तक पहुंची गर्मागर्म बहस के बावजूद आपस में कोई तल्खी नहीं आयी. उधर मंच पर बैठे सभी वक्ता मुस्कुरा रहे थे तो दूसरी तरफ दर्शकदीर्घा में बैठे धीरज समेत बाकी लोग भी…