एक समय था जब ‘आजतक’ में नौकरी पाना ज्यादातर पत्रकारों का सपना हुआ करता था ( ज्यादातर का पोस्टमार्टम न करें , मैं टीवी की दुनिया में आने को आतुर या फिर आजतक के आकर्षण से अभिभूत पत्रकारों की बात कर रहा हूं ) . चाहे 95 के बाद का वो दौर हो , जब आजतक दूरदर्शन पर प्रसारित होता था , या 2000 के बाद का वो दौर जब ‘आजतक’ 24 घंटे का चैनल बनकर लांच हुआ . मैंने भी 2002 से 2003 के बीच ‘आजतक’ के आउटपुट में सीनियर प्रोडयूसर के तौर पर एक साल के लिए काम किया था . हम पांच लोग तब ‘आजतक’ के आउटपुट में थे , जिसे हम सबने ही नाम दे दिया था – पी 5.
आजतक’ के किस्से और तजुर्बे : अजीत अंजुम,मैनेजिंग एडिटर,न्यूज24 के यादों के झरोखे से(भाग-9)
पी -5 के सदस्य थे – सुप्रिय प्रसाद , आशुतोष , संजीव पालीवाल , अमिताभ और मैं . आशुतोष उन दिनों आउटपुट में एसोसिएट एडिटर थे और हम चारो सीनियर प्रोडयूसर . जब मैंने ‘आजतक’ ज्वाइन किया था , तब अजय दा के नाम से मशहूर अजय चौधरी आउटपुट के एक्जीक्यूटिव प्रोडयूसर हुआ करते थे और उदय शंकर चैनल हेड . दोनों के बीच छत्तीस के रिश्ते जगजाहिर थे . उन्हीं दिनों एक सड़क हादसे में अजमेर के पास अजय चौधरी का निधन हो गया . उसके बाद शाजी जमां ( आज एबीपी के संपादक ) हमारे नए बॉस बने . उन दिनों के बहुत सारे किस्से हैं . तजुर्बे हैं . छोटी – मोटी साजिशें हैं , चालाकियां हैं , बेईमानियां हैं …अपनी – अपनी जगह पर बने और टिके रहने की सफल कोशिशें हैं .
वही दौर था , जब एनडीटीवी स्टार ग्रुप से तलाक लेकर अपने दम पर दिल्ली से हिन्दी और अंग्रेजी में अपना चैनल लांच कर रहा था और उधर मुंबई में रवीना राज कोहली और संजय पुगलिया के नेतृत्व में स्टार न्यूज के लांचिंग की तैयारी शुरू हुई थी . इन दिनों चैनलों के हेड दिबांग और संजय पुगलिया ‘आजतक’ की शुरुआती टीम के हिस्सा थे और मजबूत स्तंभ भी . सो दोनों के निशाने पर था ‘आजतक’ और ‘आजतक’ की टीम . एक –एक करके कई लोग आजतक छोड़ रहे थे और एक – एक करके कई लोग आजतक ज्वाइन कर रहे थे . आजतक में काम करते हुए मैने बहुत कुछ सीखा , बहुत कुछ देखा , बहुत कुछ झेला …
जमी जमायी नौकरी छोड़कर आजतक पहुंचने के बाद खुद को पहले अपनी नजरों में और फिर दूसरों की नजरों में साबित करने का संघर्ष , काम जानने का तमगा पाने की जद्दोजहद , अबूझ टेक्नालॉजी के भूत से मुलाकातें , नाइट शिफ्ट में 12-14 घंटे काम करना , मार्निंग शिफ्ट के लिए जाड़े के मौसम में कोहरे को चीरते हुए सुबह चार बजे दफ्तर पहुंचना , अखिल भल्ला ( आउटपुट हेड – जी न्यूज ) और हृद्येश जोशी ( अब एनडीटीवी इंडिया ) से रनडाउन सीखना , सुप्रिय प्रसाद का जलवा, उदय शंकर की लीडरशिप , उनका खौफ , आउटपुट और असाइनमेंट के बीच की राजनीति , पूरी टीम पर नंबर बने रहना का दबाव , हर शुक्रवार को अरुण पुरी और जीके कृष्णन के साथ टीआरपी मीटिंग , हर शाम एक कोने में बैठकर आशुतोष ( आईबीएन -7 के संपादक ) का कॉपी चेक करना और अपनी एंकरिंग से ठीक पहले हेडलाइंस से लेकर एंकर स्क्रिप्ट खुद लिखना , चमकते हुए कई चेहरों का एंकरिंग से ठीक पहले ब्लैंक होकर स्टूडियो फ्लोर पर पहुंचना , न्यूज फ्लोर पर मेरी और असाइनमेंट के साथियों से कई बार झक –झक , नाइट शिफ्ट में दो तीन घंटा पहले पहुचने पर पैकेजिंग डिपार्टमेंट के बच्चों का मुझे देखकर भागना , सुबह की न्यूज मीटिंग में उदय शंकर का सब पर हावी होना , बिना तैयारी के मीटिंग में आए लोगों का मुंह छिपाना , कभी सुप्रिय ,कभी अमिताभ , कभी संजीव पालीवाल तो कभी मेरे घर पर पी – 5 ( हम पांच ) की बैठकी , पूरी रात दफ्तर और उदय शंकर के किस्से , दफ्तर में उखाड़ – पछाड़ की राजनीति , 60 फीसदी चैनल शेयर होने पर आगे बढ़ने का दबाव , स्टार न्यूज और एनडीटीवी इंडिया के लांच होने के बाद आजतक में बढ़ता प्रेशर , शिफ्ट खत्म होने के बाद घर आना और अपनी लिखी हुई स्क्रिप्ट के बदल जाने पर परेशान होना फिर फोन करके पता करना कि किसने बदली है ये स्क्रिप्ट , आशुतोष के डाननेमिज्म से भयाक्रांत होना , पढ़ाकू अमिताभ ( दिल्ली आजतक के संपादक ) की जानकारियों से जलना ,आउटपुट के एक्जीक्यूटिव प्रोडयूसर शाजी जमां से रात बारह बजे फोन पर न्यूज मीटिंग करना और फिर सुबह पांच बजे हेडलाइंस और खबरें डिस्कस करना , किसी पहुंचे हुए रिपोर्टर की स्टोरी न चलने पर हंगामा मचना और डांट – फटकार या मेलबाजी से बचने की कोशिशें करना , उदय शंकर के फ्लोर पर आते ही माहौल का बदल जाना , दीपक चौरसिया की भाग –दौड़ , असाइनमेंट डेस्क पर बैठकर मृत्युंजय कुमार झा का कई रिपोर्टर्स के लिए कॉपी लिखना , लिखने में पैदल रिपोर्टर का आउटपुट में किसी से कॉपी लिखवाने के लिए मंडराना , चैनल पर कोई गलती जाने के बाद छिपाने की कोशिशें करना , खबरों का असर और दबाव का सामना करना …
ऐसे बहुत से तजुर्बे और किस्से हैं ‘आजतक’ के दिनों के …फिलहाल तीन- चार दिनों की व्यस्तता के बाद फुर्सत मिलते ही इसे लिखने और साझा करने की कोशिश करुंगा …जल्द ही …अगर आपमें से कई उस दौर में ‘ आजतक’ का हिस्सा रहा हो तो मेरा ज्ञान वर्धन कर सकते हैं …
इस पोस्ट के साथ आप जो तस्वीर देख रहे हैं ये 2002 के आखिरी महीनों की होगी . इसमें दिख रहे सुशील बहुगुणा और हृद्येश जोशी इन दिनों एनडीटीवी इंडिया में हैं . हृद्येश जोशी को हाल में ही बेहतरीन रिपोर्टिंग के लिए गोयनका अवार्ड मिला है . उन दिनों हृद्येश जोशी डेस्क पर थे . ये तस्वीर तब की है जब ये दोनों इस्तीफा दे चुके थे और एनडीटीवी इंडिया जाने की तैयारी कर रहे थे …मैं आजतक में पांव जमाने की कोशिश कर रहा था . सुबह की शिफ्ट की ये तस्वीर है किसी बुलेटिन के पहले या बाद की …
(न्यूज़24 के मैनेजिंग एडिटर अजीत अंजुम के फेसबुक वॉल से साभार)