आज तक की टीआरपी कठपुतलियों की एक अनदेखी तस्वीर
मीडिया खबर डॉट कॉम पर जब कहा गया कि समाचार चैनल बलात्कार का रियल्टी शो बनाने पर आमदा हैं तो कुछ लोगों को ये गैरवाजिब लगा. तर्क ये कि न्यूज़ चैनल बढ़िया काम कर रहे हैं और उनकी तारीफ़ होनी चाहिए. लेकिन मीडिया खबर आलोचना करने के लिए आलोचना कर रहा हैं जो तर्कसंगत नहीं है. इसलिए इस बार हम प्रमाण के साथ आये हैं. प्रमाण पत्रकारों की संजीदगी और गैर संजीदगी की.
तस्वीरें झूठ नहीं बोलती. यहाँ जो तस्वीर लगी है कि उसमें नज़र आ रही महिलायें आजतक की वही जाबांज एंकर और रिपोर्टर हैं जो सड़कों पर उतरकर भीड़ के बीच से ‘पूछता है आजतक’ कर रही हैं. वहां से पीटूसी देती या एंकरिंग करती हुई ये महिला पत्रकार सामूहिक दुष्कर्म के मामले को लेकर कितनी संवेदनशील दिखती हैं. लेकिन वास्तविकता में ऐसा नहीं है. उनकी संवेदनशीलता की सारी पोल पट्टी ये तस्वीर खोल रही है जो मीडिया खबर के एक पाठक ने भेजी है.
दरअसल ये तस्वीर बताती है कि आज तक के लिए ये पूरा कवरेज किसी तमाशे से कम नहीं था. खुद ये रिपोर्टर कितनी संवेदनशील थी? देखिए जरा कैसे वारदात के अगले दिन कवरेज के बाद जेएनयू कैंटीन में मौज मस्ती कर रही थीं और हँसी – खुशी फोटो खिंचवा रही थीं. इनके लिए खबरें सिर्फ तमाशा हैं. क्या इसके बाद भी कोई शक रहा जाता है. तभी किसी ने ठीक ही कहा है कि ये न्यूज़ एंकर नहीं बल्कि न्यूज़ मॉडल हैं. लेकिन इन न्यूज़ मॉडलों के बीच में रितुल जोशी क्या कर रहीं हैं? गनीमत है कि इस ‘स्माइल कम्पीटिशन’ में अंजना कश्यप शामिल नहीं दिख रही.
हँसी –मजाक करना और मौज मस्ती करना तो बुरा नहीं. काम के बाद हर जगह ऐसा चलता ही है. लेकिन जब मामला ऐसा गंभीर और ह्रदयविदारक हो और आप उसकी कवरेज कर रहे हैं तब उसके ठीक बाद आप कैसे हँसी ठठा कर सकते हैं जबकि इस खबर के प्रभाव से देखने वाले के मुंह से निवाला नहीं घोंटा जा रहा.पीड़िता के दर्द को महसूस करके खुद आजतक के स्क्रीन पर आंसू छलक रहे हैं. खुद आजतक ने दर्जनों बार दिखाया कि कैसे जया बच्चन संसद में फफक पड़ी.
लेकिन यहाँ फफकना तो दूर चेहरे पर मायूसी तक नहीं दिख रही. सारी संवेदना सिर्फ स्क्रीन तक. यही अंतर होता है एक जेनुइन रिपोर्टर और न्यूज़ मॉडलों में. न्यूज़रूम के बंद स्टूडियो में गुड़िया बनकर रहना इनके लिए ज्यादा मुनासिब है. संपादक ने फील्ड में जाकर अपनी अलग पहचान बनाने का इन्हें मौका दिया , लेकिन वहां भी जाकर ये ‘स्माइल’ ही दे रही हैं.
यह बताता है कि इस खबर को लेकर आजतक की ये महिला टीम कितनी संवेदनशील है? कैमरा हटते ही सारी संवेदना गायब. ऐसे में हम इन्हें टीआरपी की कठपुतलियां न कहे तो और क्या कहें? आजतक से ‘पूछता है मीडिया खबर डॉट कॉम’.
भाई तो आप चाहते हो कि ये लोग रोती रहें तभी ये लोग सरोकार से पत्रकारिता कर सकती हैं… भाई थोड़ा अपने सोच को बड़ा करो.. इन लोगों के हंस देने से इनके काम की गंभीरता खतम नहीं हो जाती.. यहां नाटक नहीं करना है कि हम जनाजे में जा रहे हैं तो रोना मुंह बना लें..अगर बारात में जा रहे हैं तो हंसना नाचना शुरू कर दें… वैसे भी कोई काम हो जहां दस लोग मिलते हैं तो हंसी मजाक शुरू हो जाता है.. और ये लोग मातमपुर्सी करने नहीं गए हैं अपना काम करने गए हैं … भाई सुना काम.. रिपोर्टिंग इनका काम है.. मातम मनाना काम नहीं है… अपनी सोच को बड़ा करो भाई..
अगर इतने ही संजीदा खुद हैं तो फिर ये न्यूज चैनल गुवाहाटी गयी महिला आयोग की सदस्यों के हंसते हुए फोटो खिंचवाने पर क्यों रो रहे थे..? सबको याद होगा कि जब जुलाई में महिला आयोग की टीम गुवाहाटी में छेड़छाड़ की शिकार लड़की के पास जांच के लिये गयी थी तो उन्होंने एयरपोर्ट पर स्वागत के समय पारंपरिक टोपी पहन कर फोटो खिंचवा लिया था। उस मौके पर इन्हीं ऐंकरों ने ऐसा विधवा विलाप किया था मानों आसमान सर पर उतर आया हो.. अब अपने चेहरों को देख कर ये क्या कहेंगी..?
जिस खबर से पूरा देश हिला हुआ है, उसे कवर करने वाले ये तथाकथित जांबांज आज तक की टीम हंसी ठिठोली कैसे कर सकती है? दूसरों को लेक्चर देनी वाली समाज की इन ठेकेदारनियों की असंवेदनशीलता तो देखिए..मेकअप थोपकर नैतिकता की ड्रामेबाजी very shameful
its o.k.
its ok
सबसे बड़ी ड्रामेबाज तो इनमें है ही नहीं। खैर जैसा ऊपर बैठे संपादक सिखाएंगे वैसा ही तो ये करेंगी। इनकी क्या गलती? जब चिकना मुंह और आकर्षक देह देख कर एंकरों की भर्ती की जाएगी और दिमाग के स्तर को नजरअंदाज किया जाएगा तो ऐसा ही होगा। अब झेलो इन्ही मोमबत्तियों को।