अब्दुल सलाम
दर्शक की नज़र से
जिस प्रकार देश का मीडिया (खासकर कुकुरमुत्तों से फैले सैकड़ों टीवी चैनल), ‘’ढोली (मोदी) तारो ढोल बाजे……….. ढोल’’ की थाप पर दे दना दन दे दना दन मुरब्बा परोसे जा रहा है। जनाब अपून को तो सर में दर्द हो गया है, सर दर्द तो क्या कभी-कभी तो उबकाई आने लगती है। पर आप तो जानते ही हैं सरकार – कि मेरे देशवासियों को मीठा बहुत पसंद है, इतना अधिक की सत्तर प्रतिशत आबादी कमोबेश ‘डायबीटिक’ हो चुकी है। अब बेचारे मोदी जी तो भाषणों में कड़वा-मीठा-खट्टा और तीखा सभी स्वाद परोसते हैं पर मीडिया को इससे घोटकर चाशनी मिलाकर मुरब्बा बनाना पड़ता है। ताकि लोग मिठास का स्वाद ले सके। इसलिए हर पार्टी का शेफ बुलाया जाता है। साथ-साथ कुछ पत्रकार व बुद्धिजीवी भी अपनी-अपनी ‘रेसिपी’ भी लेकर आते हैं। इनमें कोई कोई तो (मसलन कांग्रेसी) नीम जैसा खारा तड़का भी लगाता है, पर हमारा महान मीडिया इन सब को छोड़कर मीठा मुरब्बा बना डालता है। आप तो जानते ही हैं कि इस देश में आँवलें का मुरब्बा बहुत मुफीद, गुणकारी और लोकप्रिय है। गोया बाबा रामदेव के चेले बालकृष्ण जी से आँवलें के फायदे पुछोगे तो वे इस पर लगातार एक हफ्ते तक बोलकर ‘गिनीज’ रिकार्ड स्थापित कर सकते हैं। जनाबेआली, आँवलें की एक और खासियत है कि इसे चूसनें-चबानें के बाद आप अगर पानी पियें तो वह मिश्री जैसा मीठा लगता है।
परंतु मोदी जी का भाषण ठीक उससे उल्टा है। यानि उपभोग करते (सुनते समय) तो मीठा लगे मगर बाद में जब पिया जाए तो किसी को उसका स्वाद खारा, किसी को तीखा या खट्टा लगता है। बहरहाल जब देश को ‘’मोदी-मेनिया’’ का रोग लग ही गया तो मीडिया वाले भी अपने-अपने ढंग से इस मुरब्बे की वैरायटी परोस रहे हैं जैसेकी इस बिमारी की दवाई हो। परंतु हाजरात और ख्वातिन, यह दवा ऐसी है कि जिससे लोगों का मर्ज उल्टे बढ़ता जा रहा है। रात-दिन यानि 24 X 7 अगर आप इतना मुरब्बा सेवन करेंगें तो जाहिर है कि आपको अपच, अफारा या कब्जियत कुछ तो होना ही है और अगर मेरी पूछिए तो मुझे तो खुद ‘डायरिया’ हो गया है। पर पता नहीं क्यों बार-बार टीवी ऑन करके मोदी का मुरब्बा सेवन करने लगता हूँ। आजकल हर सॉस, जूस, मिठाई और मुरब्बे के पैक पर इसके ‘इन्ग्रिडेंटस’ लिखना जरूरी होता है। किंतु मोदी का मुरब्बे का यह पैक इस नियम का अपवाद है। क्योंकि वैसे तो जनता इसके सारे तत्वों से अवगत हो चुकी है। परंतु कभी-कभी मोदी जी इसमें कोई ऐसा तीखा गरम मसाला डाल देते हैं कि बेचारे कांग्रेस वालों को बेहद बदहजमी यहां तक की उल्टियां तक होने लगती है और वे मीडिया के माध्यम से ऐसे लोगों को ‘एंटीडोट’ इंजेक्शन लगानें दौड़ पड़ते हैं। इस काम के लिए कांग्रेस पार्टी में दो एक्सपर्टस नीम हकीम नियुक्त कर रखे है जो हरदम हाथ में इंजेक्शन लिए तैयार रहते हैं। जनाब ये दोनो है – एक तो एमपी के दिग्गी राजा और कुटिल वकील मनीष तिवारी। ये नीम हकीम खुद को कामयाब मानते हैं। क्योंकि उन्हें इसकी तो कोई फिक्र नहीं है कि उनके इन इंजेक्शन रूपी बयानों के बारे में देश की जनता क्या सोचती होगी?
बहरहाल ऊँ नमो (NaMo) मंत्र का मीडिया ने जो इंद्रजाल फैलाया है इसका कोई ठीक सा तोड़ ना तो कांग्रेस के पास है और ना ही इसके तथाकथित महान नेता ‘रागा’ (बकौल मोदी ‘शहजादे’) के पास है। तो अब ये सारे कांग्रेसी किसी नामी-गिरामी झाड़-फूँक वाले ओझा की तलाश में हैं जो देश की भोली भाली जनता के सिर से इस नमों मंत्र का भूत उतार सके। इधर मीडिया भी निरंतर यह मुरब्बा परोसे जा रहा है। साथ-साथ खुद भी खा रहा है और डकार भी नहीं ले रहा है। एक नामी अंग्रेजी के भारतीय टीवी चैनल के एंकर रोज इतना मुरब्बा तैयार करते हैं कि स्टूडियों में आए हुए शैफों की रेसिपी बिना जाने ही जबरन उनके नाम से बताते जाते हैं। हालात यहां तक है कि वे रेसिपी पूछते है और खुद ही बताते भी हैं। शैफ तो बस मैं..मैं करते रह जाते हैं। लगता है गोया प्रश्न पूछने वाला पूछने से पहले ही प्रश्न का खुद उत्तर दे रहा हो। कभी-कभी तो उन पर ऐसा जुनून सवार होता है कि मुझे लगता है यह आदमी कहीं पागल न हो जाए। पर जनाब इस बंदे का भी जिगरा है कि घंटो चीखनें के बाद भी गले में खराश तक नहीं आती। जबकि मुझ जैसे नाशुक्रे बंदे को तो सुन-सुन कर ही बेहोशी आने लगती है। मुझे लगता है इन्होनें इतना सारा मोदी मुरब्बा सेवन किया है कि ये भी अब मोदी की तरह दहाड़नें लगा है। खैर अब यदि आपके मुँह में इस मुरब्बे का स्वाद चखनें के लिए पानी आ रहा है तो दिमाग को कुछ समय के लिए लॉकर में डाल दीजिए और फिर मीडिया के बाजार में अपने रिमोट रूपी घोड़े पर सवार हो कर निकल लीजिए। मेरा दावा है कि इस चूँ चूँ में मोदी का मुरब्बा आपका जायका बढ़ाएगा ही। बस शर्त यह है कि बीच-बीच में विराम जरूर लीजिएगा। यह 24 X 7 का तमाशा है। जयहिंद।
(लेखक के एफबी वॉल से साभार)