तहलका का मतलब सिर्फ तरुण तेजपाल नहीं

विनीत कुमार, मीडिया विश्लेषक

आपके लिए तहलका का मतलब सिर्फ तरुण तेजपाल है या रहा है इसलिए आप तरुण तेजपाल और तहलका को एक-दूसरे का पर्यायवाची मान रहे हैं. इसकी दो वजह हो सकती है..या तो आपने इधर कुछ सालों से इसे पढ़ना बंद कर दिया है या फिर आप इस पत्रिका को सिर्फ उनका लिखा पढ़ने के लिए खरीदते रहे हैं. हमारी पढ़ने की ट्रेनिंग कभी इतनी एक्सक्लूसिव नहीं रही. हम पत्रिका में लेख क्या शर्तिया इलाज और शर्माएं नहीं इलाज कराए..लिकोरिया,श्वेत प्रदर, धातु कमी के निदान के विज्ञापन भी पाठ सामग्री का हिस्सा मानकर पढ़ते हैं.

मेरे लिए तहलका का मतलब रेउती लाल, आशीष खेतान, अतुल चौरसिया, विकास बहुगुणा और बृजेश सिंह, विकास कुमार,प्रियंका दुबे और पूजा सिंह जैसे नए लोगों के लिए भी उतना ही है..और ये नाम मेरे लिए व्यक्ति भर नहीं है, पत्रकारिता के बुनियादी स्वर हैं. जिस दिन ये दीपक चौरसिया, दिलीप मंडल,प्रभु चावला हो जाएंगे..इन्हें भी पढ़ना छोड़ दूंगा..ये गर्व करनेवाले लोग नहीं, सोचने की दुनिया में हमारी जरुरत के लोग हैं. तरुण तेजपाल के विरोध और महिला पत्रकार के साथ होने की आड़ में “मुख्यधारा मीडिया के के जरुरी विकल्प” को लेकर इस तरह की गंध मत मचाइए. हमने आपको बहुत छोटे-छोटे मतलब के लिए मैनेज होते देखा है. आपको और समाज को इस तरुण तेजपाल की जरुरत नहीं है लेकिन तहलका की जरुरत फिर भी बनी रहेगी और कुछ नहीं तो उसने इतना काम तो जरुर किया है कि आप इसके न होने को एक कमी के रुप में महसूस कर सकेंगे. आप हमसे इस पूरे मामले में जितनी खुलकर बात रखने की उम्मीद रखते हैं, उतना ही खुलकर आप कह सकते हैं कि आपका काम सिर्फ इंडिया टुडे, बिंदिया, सरस सलिल से चल जाएगा..अगर चल जाएगा तब तो कोई बात नहीं लेकिन नहीं चलेगा तो पर्यायवाची शब्द गढ़ने बंद कीजिए और अपनी ठोस पहचान न बना पाने, मालिक के हाथों मजबूर होने और चाहकर भी जमीनी स्तर की पत्रकारिता न कर पाने की फ्रस्ट्रेशन को हम पर मत लादिए.. हम आपकी तरह चटखदार लेआउट नहीं बना सकते, फोटोशॉप की गहरी समझ नहीं है, कट पेस्ट और सेक्स सर्वे में पिछड़ जाएंगे लेकिन कम से कम सरोकार शब्द को परिभाषित करने के लिए आपकी एफबी दीवार झांकने की जरुरत कभी नहीं होगी.

देख रहा हूं टीवी स्क्रीन पर कि आप महिला पत्रकार के साथ होने के नाम पर अपनी कुंठा की पैकेज कैसे बना रहे हैं..इसी को टेलीविजन का सर्वेश्रेष्ठ रुप कहते हैं तो आपको कार्पोरेट के सारे अवार्ड मुबारक हों जिसके लिए आप लोलिआते फिरते हैं और अगर ऑनलाइन वोटिंग के जरिए पुरस्कार का प्रावधान हो तो हम जैसों को फोन कर-करके लाइक-कमेंट करने के लिए नाक में दम कर देते हैं…कुछ नहीं भी होगा तो हम मीडिया की किताब लिखकर छोटे-बड़े, छुटभैय्ये नेताओं के पास जाकर हाजिरी नहीं लगाएंगे कि अब तो हम इंटल हो गए कुछ राज्यसभा,थिंक टैंक, मीडिया सलाहकार की जुगाड़ लगा दें..और न लग पाए तो फिर उसी अन्डरवर्ल्ड के चाकर बन जाएं और कलेजा ठोककर कहें कि पैसा मालिक देता है तो उसकी सुनें या फिर आपकी सुनें. मुबारक को आपको ये सब. लेकिन भाई साहब, जब नेटवर्क 18 में सैंकड़ों मीडियाकर्मियों को रातोंरात सड़क पर ला दिया गया और उसी नोएडा फिल्म सिटी की आलीशान बिल्डिंग में आप अपने मीडियाकर्मियों को नौकरी का हवाला देकर विरोध में शामिल न होने के लिए हड़का रहे थे, तहलका के यही नए चेहरे सामने थे..आपने तो प्रतिरोध का स्वाभाविक स्वर भी मार दिया.. बात करते हैं.

आज आप तरुण तेजपाल से अपने चरित्र की तुलना करके जितनी मर्जी हो जश्न मनाएं लेकिन अपने संस्थान की पत्रिका, चैनल और अखबार को तहलका की बराबरी में रखकर खड़ी करने से पहले खुद के साथ-साथ इन्हें आइने के सामने जरुर रखना पड़ेगा..रही बात मेरी तो मैला आंचल के सारे पात्र वामनदास नहीं होते…और हां अगर थोड़ी भी सेंस बची हो और यादाश्त शक्ति दुरुस्त है तो समझिए कि ये महिला उसी तहलका की पत्रकार है जिसके लिखे की आप फोटोकॉपी कराकर पढ़ते आए हें, टेबल पर कटिंग काटकर रखते आए हैं..आपको अतिरिक्त और गैरजरुरी ढंग से उसका पिता,भाई बनकर सहानुभूति और घुटने में सिर गड़ाकर फुटेज चलाने की कोई जरुरत नहीं है.

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