थू-थू तो हो गई है. और आगे भी होगी. दरअसल मीडिया, खासकर हिन्दी मीडिया (अब तो अंग्रेजी वाले भी बौराने लगे हैं, जैसे क्विंट) ऐसी घटनाओं के बाद ज्यादा अंधराष्ट्रवादी हो जाता है. इसका सीधा सा कारण ये है कि पूरी मीडिया में एक खास वर्ग के लोगों के पास ही कमान होती है, जो पाकिस्तान से व्यक्तिगत खुन्नस खाए रहते हैं और ऐसी घटनाओं के बाद इस व्यक्तिगत घृणा को खबर-पैकेज के रूप में चलाकर पूरे मीडिया को बदनाम करते हैं.
दूसरी बात ये है कि भारतीय मीडिया का कोई भी संस्थान ऐसी घटनाओं के बाद होने वाली रिपोर्टिग और सम्पादन की कोई ट्रेनिंग नहीं देता. और ना ही वहां इस तरह लिखी गई खबरों को फिल्टर करके चलाने की कोई व्यवस्था ही होती है.
तीसरी बात ये है कि कई मीडिया संस्थान के मालिक खुद निजी फायदों के लिए किसी पार्टी या विचारधारा विशेष से नजदीकी बना लेते हैं, जिसका असर उनके संस्थान की खबरों में साफ-साफ दिखता है. फिलहाल तो मुझे इस परिस्थिति में परिवर्तन की कोई गुंजाइश दूर-दूर तक नहीं दिखती.
कह सकते हैं कि भारत का मीडिया जगत पूरी तरह अराजक और बेकाबू हो चुका है. सबने अपने-अपने माई-बाप चुन लिए हैं. जब मामला गरमाता है तो कहने लगते हैं कि देखो- मेरी कमीज उसकी शर्ट से ज्यादा सफेद है. फिर पत्रकारीय नैतिकता का रोना-धोना गान होता है और नतीजा वही ढाक के तीन पात. पुनर्मूषिको भव.
“पाकिस्तानी पत्रकार मुर्तजा अली शाह ने पाकिस्तानी सेना के जनरल आसिम बाजवा के ट्वीट को रिट्वीट किया. ट्वीट कहता है, “भारतीय मीडिया ने कहा कि #उड़ीअटैक के बाद रूस ने पाक के साथ संयुक्त सैन्याभ्यास रद्द कर दिया. यह दिखाता है कि भारतीय मीडिया अपनी जनता से कैसे झूठ बोलता है.”
यह पहला मौका नहीं है जब भारतीय मीडिया ने अपनी आलोचना का मौका दिया है. मुंबई हमले, नेपाल के भूकंप और उड़ी हमले के बाद हुई कवरेज से बता दिया है कि भारतीय लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कितना कमजोर है.”
(पत्रकार नदीम एस अख्तर के एफबी से )