राज्यसभा टीवी में ‘वाक इन इंटरव्यू’ के नाम पर हुई नौटंकी की आँखोंदेखी

राज्यसभा टीवी में इंटरव्यू के नाम पर नौटंकी
राज्यसभा टीवी में इंटरव्यू के नाम पर नौटंकी

सुमीत ठाकुर

राज्यसभा टीवी में इंटरव्यू के नाम पर नौटंकी
राज्यसभा टीवी में इंटरव्यू के नाम पर नौटंकी

नौकरी पाने की ख्वाहिश थी, राज्यसभा टीवी में काम करने की सपना था, और इन्टरव्यू में खुद को साबित करने की चुनौती थी. हिन्दी और अंग्रेजी के लिए कुल जमा 4 पोस्ट थी, और नौकरी हसरत में लंबाई हर घंटे लंबी होती जा रही थी. कॉफी की चुस्कियों के बीच कुछ पुराने दोस्तों का भरत-मिलाप हुआ…और इसके साथ मीडिया का वर्ग विभेद भी मिटता दिख रहा था, किसी चैनल के इनपुट एडिटर भी प्रोड्यूसर बनने के लिए सूट पहनकर आए थे,तो भला सीनियर प्रोड्यूसर के प्रोड्यूसर बनने पर सवाल उठाना गलत होगा. कुल मिलाकर बात ये थी कि सबको मौका मिला था, और सब एक बार किस्मत को आजमाना चाह रहे थे, कुछ ऐसे भी थे, जो सीनियर प्रोड्यूर और प्रोड्यूसर दोनों के वाक इन में शामिल हुए थे, शायद इस उम्मीद में कि कुछ भला हो जाए।

लेकिन वॉक इन की ये पूरी कवादय सवालों के घेरे में है, प्रोड्यूसर और सीनियर प्रोड्यूसर जैसी पोस्ट पर सिर्फ साक्षात्कार से नौकरी दिए जाने का ड्रामा किया गया, सवाल ये है कि क्यों इस चयन प्रक्रिया में कॉपी लिखवाने की जहमत नहीं उठाई गई, क्या राज्यसभा टीवी का पैनल सिर्फ साक्षात्कार के आधार पर ही कॉपी लिखने की क्षमता का भी पता कर सकता था.

वहीं दूसरा सवाल ये है कि जब पचास या साठ लोगों के ही इन्टरव्यू का इंतजाम था, तो क्यों लोगों को बुलाया,और जब बुला लिया गया तो उनका इन्टरव्यू क्यों नहीं लिया गया? हैरत की बात ये भी रही कि इन्टरव्यू देने आए मीडिया कर्मियों ने भी इस बात को लेकर कोई एतराज नहीं जताया!मीडिया कर्मियों के कवच में छिपा मजदूर शायद ये करने का साहस नहीं कर पाया होगा।

वाक इन के नियत जगह के ठीक सामने डॉ. भीवराव आंबेडकर के प्रेरणा स्थल था. संविधान निर्माता के प्रेरणा स्थल और मीडिया के बेरोजगारों को देखकर कई भावनाएं आ जा रही थी.संविधान के जरिए सिस्टम बनाने वाले डॉ.भीवराव आंबेडकर की प्रेरणा भी काम नहीं आई, वाक इन के दौरान अगर कुछ नहीं था, तो बस सिस्टम नहीं था,ये बात खुद सिद्ध हो गई कि सरकारी टीवी भी सरकारी होता है, और सरकारी काम भी सरकारी काम की तरह होता रहेगा।

शाम करीब पांच बजे लोगों की पहले टूट रही उम्मीदों को आखिरी झटका मिलता है, दिन भर से इंतजार कर रहे लोगों को बताया जाता है कि बाकी सभी लोगों को अब रुकने की जरुरत नहीं है, फार्म जमा करिए और निकल जाइये, कहा गया कि आने वाले वक्त में उनके आवेदन पर विचार होगा। बहुत नाइंसाफी हुई…राज्यसभा में नौकरी की ख्वाहिश रखने को बहुत लोगों को मायूस होना पड़ा….क्या आप भी उनमें से एक थे….

(राज्यसभा टीवी में ‘वाक इन इंटरव्यू’ के नाम पर हुई नौटंकी की आँखोंदेखी)

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