केजरीवाल ‬ और पुण्य प्रसून की आफ दि रिकार्ड बातचीत का सच बनाम पत्रकारिता के पेशे से छल

सयदन जैदी

arvind-kejriwal-punya-prasuअरविंद केजरीवाल ‬ और पुण्य प्रसून वाजपेयी की आफ दि रिकार्ड बातचीत पर लीक किए गए विडियो का सच बनाम पत्रकारिता के पेशे से छल ।  शुरुआत करते हैं बातचीत के अंश से ।

केजरीवाल :- वो वाला थोड़ा थ्योरिटिकल है …जो कारपोरेट वाला है वो काफ़ी थ्योरिटिकल है इस लिए मैं उसमें नहीं जाना चाह रहा था… उसमें ये जितना मिडिलक्लास वो एंटी हो जाएगा की हम प्रावेटाइज़ेशन के ख़िलाफ़ हैं कंपनियों के ख़िलाफ़ हैं । इस लिए उस डिबेट में मैं पड़ नहीं रहा था जान बूझ कर । बाक़ी कुछ भी पूछिये…..

पुण्य -: और ये हाशिए पर जो अस्सी फ़ीसदी समाज है ।

केजरीवाल -: हां वो बोलेंगे

पुण्य -: इसमें आप आ जाइये ना…वोट बैंक तो वही है ना देशभर में

केजरीवाल -: बिलकुल … मैं ये बोलना भूल गया ।

पुण्य -: अगर हम उनके लिए कर रहे हैं तो…..

केजरीवाल -: मैं ये नहीं कहना चाह रहा कि ये सब प्राइवेट वाले कर रहे हैं और कोई भी सरकार आ जाए प्राइवेट वालों से कमीशन लेगें । वरना हम पूरे प्राइवेट सेक्टर को नकार देंगे which is not right

वो मिडिल क्लास वाला ठीक था….

पुण्य – बहुत क्रांतिकारी … बहुत क्रांतिकारी

सबसे पहले तो विडियो के सेटअप को समझने की कोशिश करें तो पता चलता है कि ये बात चीत के अँश केजरीवाल के इंटरव्यू के तुरंत पहले के भी हैं और कुछ बाद के भी हैं , जो पुण्य प्रसून ले रहे थे । इंटरव्यू से पहले या बाद की ये बातचीत मेरे पत्रकार मित्रों को चौंका रही है । इससे मुझे हिचकी आ रही है ओर मैं अपनी नब्ज़ टटोल रहा हूँ शायद मैं अब तक की पत्रकारिता का अंतिम पत्रकार हूँ और मेरी आत्मा प्रवास के दौरान पत्रकारिता की नई दशा और दिशा देख रही । दरअसल इंटरव्यू के समय पहले या बाद में इस तरह की अनौपचारिक बातचीत मेरे समय की पत्रकारिता का अभिन्न हिस्सा है । जहाँ इंटरव्यू के बाद पत्रकार व्यक्तिगत विचारधारा के साथ या उससे परे इंटरव्यू देने वाले की रस्मन और एख़लाक़न तारीफ़ करता है । इस दौरान इंटरव्यू देने वाला भी पत्रकार के कुछ सवालों से बचने पर सफ़ाई देकर कोआर्डियल रिलेशन को आगे बढ़ाने का प्रयास करता है । इस वीडियो की पड़ताल करें तो आगे पता चलता है कि इसमें कुछ इंटरव्यू के पहले के भी अंश हैं जहाँ पत्रकार और इंटरव्यू देने वाले को कुछ लीड भी दे रहा है

अब ज़रा इस विडियो में हो रही बात चीत के अंशों की चीरफाड़ करते हैं ।

केजरीवाल की सबसे पहली बात को लेते हैं । …. ” वो वाला थोड़ा थ्योरिटिकल है……बाक़ी कुछ भी पूछिए ”

अंश को समझने की कोशिश करें तो पता चलता है कि केजरीवाल प्राइवेटाइज़ेशन के मुद्दे पर सवालों सो बचे होगें जिसकी वो सफ़ाई दे रहे थे सफ़ाई को समझें तो मालूम होता है कि केजरीवाल का मानना है कि ये सबजेक्ट बड़ा है और कम समय में अपनी बात को समझाया नहीं जा सकता और अगर जल्दीबाज़ी में बात की गई तो ग़लत संदेश जा सकता है । मध्यमवर्ग को लग सकता है कि हम प्रावेटाइज़ेशन के सिरे से ख़िलाफ़ हैं़ । और इस अंश के अंत में केजरीवाल ये भी कह रहैं है कि प्राइवेट सेक्टर को लगेगा की हम सबको नकार देंगे जबकी एेसा नहीं है ।
यानी केजरीवाल इस अंश के अंत में जो कह रहे हैं कि ” which is not right” उससे साफ़ होता है कि केजरीवाल मुद्दे अपना नज़रिया एंकर के सामने साफ़ कर रहे हैं । जो अनौपचारिक बातचीत में भी बदला नही है ।

बातचीत के इस अंश में केजरीवाल ने कहां जनता की भैंस पुण्य प्रसून को दान कर दी ? ये है मेरा पहला सवाल

अब आ जाइए पुन्य प्रसून की हाशिए पर 80% जनता और वोट बैंक वाली बात पर

जैसा मैंने पहले कहा कि एंकर इंटरव्यू देने वाले को सलाह देता है कभी अपने इंटरव्यू को दिलचस्प बनाने के लिए या फिर कई बार अपनी व्यक्तिगत विचारधारा को शामिल करने के लिए भी लीड देते हैं एंकर । पुन्य प्रसून का ये कहना की ‘हम’ उनके लिए ही तो कर रहें हैं । इसमें “हम” को पकड़ा जा सकता हैं इस दलील के लिए की दोनों मिले हुए हैं । पर यहाँ हम से ज़्यादा बड़ा सवाल ये उठता है कि इस बात चीत में लीड क्या और इसका सरोकार किससे है और इस लीड में नैतिकता के लेहाज से ग़लत क्या है ।

सवाल और भी हैं ।
क्या देश की अस्सी फ़ीसद जनता हाशिए पर नहीं है ?
क्या एंकर को 80% जनता से सरोकार नहीं होना चाहिए ?
और क्या राजनीति करने वाला इस बड़े तबक़े की बात कह कर उनसे वोट नहीं माँग सकता ?
राजनीति और चुनाव के संदर्भ में इस तबक़े को वेट बैंक कहने में बुराई क्या है?
और क्या राजनीतिज्ञ अपने मु्ख्य मुद्दे को चैनेल से ठीक से या अधिक चलाने का निवेदन नहीं कर सकता ।
और फिर केजरीवाल वोट पाने के नियत से गए थे या अनुलोम विलोम कराने गए थे स्टूडियो ?

चेतावनी:- मैंने तो इस बातचीत का केवल व्यवसायिक आकलन किया है । हो सकता है केजरीवाल इस बातचीत पर सौ दलील और दे सकतें हों क्योंकि भाग्यवश या फिर सचेत रहने के कारण कोई ऐसी बात निकल कर नहीं आई जिसपर उन्हें फाँसी चढ़ाया जा सके…पर हो सकता है किसी और नेता या पार्टी कि क़िस्मत ऐसी ना हो

मेरे इन सब सवालों पर सहमति या बहस हो सकती है ।

लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि किसी न्यूज़ चैनल की आफ दी रिकार्ड बातचीत को सार्वजनिक करना अपने प्रोफ़ेशन के साथ छल नही है ?????????

(स्रोत-एफबी)

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