केजरीवाल को छोड़िए और ये बताइए कि चैनल का एक संपादक अपनी कुर्सी बचाने के लिए क्या-क्या करता है?

केजरीवाल बोलते अच्छा है लेकिन काम ?
केजरीवाल बोलते अच्छा है लेकिन काम ?

विनीत कुमार

light camera action kejriwalमुचलका न भरने की वजह से अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी और उसके बाद चैनलों की कवरेज पर मीडिया विशेषज्ञ ‘विनीत कुमार’ की टिप्पणियाँ :

1.केजरीवाल मीडिया में और राजनीति में बने रहने के लिये क्या-क्या करते हैं, ये जानने के लिये आपको कुछ नहीं करना पड़ता. चैनल इसके लिये आपको फ्री ऑफ़ कास्ट क्लास के साथ- साथ टुटोरिअल क्लास तक दे देंगें..लेकिन एक संपादक अपनी कुर्सी पर बने रहने के लिये क्या- क्या करता है, कहीं नहीं मिलेगा..आपको इसके लिये खुद ही पाठ बनाने होंगें और खुद ही क्लास लगवानी होगी

2.आम आदमी पार्टी को लताड़ो और क्रांति पुरुष का खिताब ले जाओ..
परसों से अगर आप लगातार न्यूज़ चैनल देख रहे हों तो आपको लग रहा होगा की इस भीषण गर्मी में संपादकों और एंकर ओ के मनोरंजन हेतु कांटेस्ट चल रहा है. मेरी शिकायत इस बात से रत्तीभर भी नहीं है कि ये आप की आलोचना क्यों कर रहे हैं..हमें दिक्कत इस बात से रही है कि ये हमेशा उगते सूरज की कंठी माला जपने का काम करते आये है. एक समय था जब आप ने एक के बाद एक गलतियाँ कि लेकिन ये सतसई पाठ में लगे रहे जैसे अभी बीजेपी के लिये लगे हैं. सवाल साफ़ है कि आपका काम चैनल चलाना है या सरकार ?

3.आम आदमी पार्टी और केजरीवाल की हरकतों को लेकर टेलीविज़न के दिग्गज चेहरे जिस उत्साह और साहस से विरोध कर रहे हैं, उम्मीद जगती है कि संसद में विपक्ष के बेहद कमज़ोर होने पर भी न्यूज़ रूम विपक्ष की भूमिका निभायेगा और सरकार को किसी भी हालत में तानाशाह बनने नहीं देगा.लेकिन इन दिग्गजों कि हैसियत पर नज़र दौड़ाये तो स्पष्ट है कि ये न्यूज़ चैनलों की सडांध का एक टुकड़ा भी कम करने की क्षमता नहीं रखते बल्कि ऊँगली उठाने पर खुद भी शंट कर दिये जाते है…ये बोलते-झकते रहते हैं और दलाली मामले का दागदार संपादक छाती चौड़ी करके देश की डीएनए टेस्टिंग में लग जाता है..

4.ये सही है कि आप और केजरीवाल इस देश में प्रतिरोध की ताकत और उम्मीद का मोर्चा बनकर उभरे और अब अपने ही कारणों के बीच उलझ गये. मेरी तो केजरीवाल से व्यक्तिगत अपील है कि जेल से आते ही बालिका वधू और बड़े अच्छे लगते हैं टाइप के सीरियल के डायरेक्टर से मिलें ताकि सालों तक एक ही मुद्दे को लेकर कैसे जनता के बीच नॉक पॉइंट पैदा किया जा सके की समझ दुरुस्त हो सके..लेकिन इन सबके बीच देश के महान टीवी संपादकों, एंकर ओ से एक सवाल तो बनता ही है कि प्रभु आपने अपने काम से इस देश के लोगों के बीच प्रतिरोध के स्वर को कितनी जगह दी..मैं अन्ना आन्दोलन रियलिटी शो की बात नहीं कर रहा और न ही प्रतिरोध के स्वर के साथ होने का मतलब आप का कार्यकर्ता हो जाने की अपील करना है..आप इनके धुर विरोधी होकर भी इनके बुनियादी सवालों को बेहतर शक्ल दे सकते हैं. लेकिन नहीं, आपकी तो एक चैनल के आगे ही घिघ्घी बंध जाती है, प्रतिरोध तो बहुत भारी-भरकम चीज है.

(स्रोत-एफबी)

2 COMMENTS

  1. पिछले साल गड़करी ने दिग्विजय सिंह पर भी मानहानि मुकदमा किया था, पर उस मुकदमे में क्या सुनवाई हुई , पर अरविन्द के केस मे तुरंत कार्रवाई की गई. पुर देश में मोदी चुनाव आयोग से लेकर कितने नेताओं को भ्रष्ट कहते रहै, पर कोई केस नहीं हुआ, अरविन्द कोई दो दिन में देश से बाहर नहीं जा रहे थे.
    जब उमाभारती को हुबली कोर्ट ने अगस्त २००४ में द्नगा उकसाने के कारण(छह लोग मरे ) वारंट पर जेल भेजा था , तो भाजपा ने बैंगलोर में आन्दोलन किया था की जब तक उमा की रिहाई नहीं हुई ” सत्याग्रह ” जारी रहा ,तब वाजपेयी और अडवाणी भी शामिल हुए थे ,पर अरविन्द के केस में
    ये ड्रामा हो गया ,उसी भाजपा के लिए !!!!!

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