राजदीप-आशुतोष से लेकर राघव बहल तक को नेटवर्क18 से बाहर होते देख बहुत कुछ याद आ रहा है

अभिषेक उपाध्याय

राजदीप और आशुतोष  : सवाल पूछने का अधिकार, आखिरकार  खो दिया
राजदीप और आशुतोष
: सवाल पूछने का अधिकार, आखिरकार खो दिया

राजदीप से लेकर राघव बहल तक को network18 से बाहर होते देख बहुत कुछ याद आ रहा है। वो दिन याद आ रहा है जब एक ही झटके में, पलक झपके बगैर ही, सैकड़ों कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। और जिन्हें बाहर किया गया था, उनमें से अधिकतर कम सैलरी पाने वाले, दिन-रात मेहनत कर खटने वाले कर्मी ही थे। ibn7 में काम कर चूका हूं सो इन्हें जानता हूँ। उस वक़्त सत्यवीर सिंह से बात हुई थी। ibn7 के lucknow correspondent। बेहद ही प्यारी शख्सियत। एक बेहद ही सच्चे और ईमानदार पत्रकार। सत्यवीर भी उन्हीं मेहनतकश लोगों में एक थे। सत्यवीर सिंह ने तब एक बात कही थी, कि गुरु, अभी देखते जाओ, सच की आह की ताकत क्या होती है! बड़ा जीवट सा रिश्ता है, अपना और सत्यवीर सिंह का। दोनों ही एक दूसरे के गुरु हैं।

सत्यवीर सिंह को मैं सम्मान और श्रद्धावश “गुरु” कहता हूँ और वो मुझे बेहद ही दुलार से “गुरु” कहते हैं। तो गुरु, आज वाकई मैंने देख लिया। बड़ी बदली बदली फिजा है आज की। आशुतोष जिनकी अगुवाई में निर्दोष पत्रकारों के पेट पे लात मारी गयी थी, लोकसभा का चुनाव हार चुके हैं। वे उसी अंबानी के चैनल में, उसी अंबानी की तनख्वाह पर और उसी अंबानी के इशारे पर उस वक़्त इन पत्रकारों को गेट का रास्ता दिखा रहे थे। और हैरानी ये कि बाद में चुनाव जीतने की खातिर वे उसी अंबानी को पानी पी पीकर गालियाँ देने लगे। ये अलग बात है कि अब जब से चुनाव हारे हैं, उनके होठों पर अंबानी का “अ” भी नही आया है। अब उसकी जरूरत भी नही है। अगले चुनाव में अभी खासा वक़्त है। उस वक़्त भी सत्यवीर सिंह ने कहा था कि गुरु देखो, आशुतोष ने अंबानी का बूट पहनकर हमारे पेट पे लात मार दी। आशुतोष के लिए सीने में बहुत इज्ज़त होती थी। उनके जूनून का कायल हुआ करता था। उनका पसंदीदा रिपोर्टर था मैं, और अजित साही के बाद की जो रेखा मैंने खींची थी, उसमे आशुतोष का बहुत सम्मानित दर्ज़ा था। पर वक़्त कब कहाँ और कितना बदल देता है, पता ही नही चलता। सो वक़्त ने आज बदल ही दिया। आशुतोष से लेकर राजदीप और उसके आगे भी। आज भी मानता हूँ कि आशुतोष और राजदीप बहुत मायनों में बहुतों से बहुत बेहतर हैं। सच कभी भी पक्षपाती और पूर्वाग्रही नही हो सकता पर सच तो ये भी है कि वक़्त उसूलो की खातिर फैसले लेने वालों का मुरीद होता है।

मौका देखकर और सुविधानुसार फैसले लेकर आप इतिहास के चमकते आइने से आँख नही मिला सकते क्योंकि आँखे चौधियाँ जाती हैं जब इतिहास हिसाब मांगता है। तो इतिहास और वक़्त दोनों ही आज हिसाब मांग रहे हैं। ये दोनों ही आज बात कर रहे हैं। उज्ज्वल गांगुली से लेकर जुलकर खान और रम्मी से लेकर सत्यवीर सिंह तक वक़्त अलग अलग जुबानो में पर एक सी आहों में बात कर रहा है। network 18 की इमारत की एक एक ईट इन आहों से अटी पड़ी है। ये ऐतिहासिक सबक है। ये poetic justice है। सत्यवीर सिंह, मेरे गुरु, ये तुम्हारी जीत का दिन है। ये उन बेसहारा आहों के विजय पर्व का दिन है। धर्मवीर भारती ने “अँधा युग” में विदुर के हवाले से जो लिखा है, वो आज बहुत याद आ रहा है। विदुर धृतराष्ट्र को चेताते हुए कहते हैं–“मर्यादा मत तोड़ो/ तोड़ी हुई मर्यादा/ कुचले हुए अजगर-सी/ गुंजलिका में कौरव-वंश को लपेट कर/ सूखी लकड़ी-सा तोड़ डालेगी।” धृतराष्ट्र ने विदुर की सलाह नही मानी थी और इतिहास साक्षी है कि तोड़ी हुई मर्यादा ने पूरे कौरव वंश को सूखी लकड़ी की तरह तोड़ दिया……सूखी लकड़ी की तरह…..!

(स्रोत-एफबी)

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