मीडिया का मुंह काला हुआ, तो सफेद किसका बचेगा?

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की व्यक्ति के रूप में मीडिया सदैव प्रशंसा करता रहा है, उनकी सरकार द्वारा संचालित की जा रही विकास योजनाओं और कार्यक्रमों को प्रमुखता से जनता के बीच पहुंचाता रहा है। समाजवादी पेंशन योजना, लोहिया ग्रामीण आवास योजना, डेयरी योजना, कृषक दुर्घटना बीमा योजना, एम्बुलेंस सर्विस, स्वास्थ्य/जननी सुरक्षा योजना, निराश्रित महिला, किसान, वृद्धावस्था और विकलांग पेंशन, महिला हेल्पलाइन, कृषि विभाग से संबंधित तमाम योजनाओं के साथ कौशल विकास मिशन और मुफ्त चिकित्सा योजनाओं को मीडिया सफल बताता रहा है, इसके अलावा आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे, मेट्रो रेल परियोजना, चकगंजरिया फार्म को सीजी सिटी के रूप में विकसित करने पर मीडिया द्वारा उनकी विशेष सराहना की जाती रही है।

उत्तर प्रदेश में बिगड़ी कानून व्यवस्था और भ्रष्टाचार लगातार प्रमुख मुददा बने हुए हैं, लेकिन मीडिया लगातार अखिलेश यादव को निर्दोष साबित करता रहा है, इस सबके लिए मीडिया समाजवादी पार्टी की परंपरागत राजनीति को जिम्मेदार बताता रहा है। मीडिया परोक्ष, या अपरोक्ष रूप से संकेत करता रहा है कि प्रदेश में जो भी अच्छा हो रहा है, उसके पीछे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की सोच है और जो भी गलत हो रहा है, उसके पीछे सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव और शिवपाल सिंह यादव की दखल है। कुल मिला कर मीडिया ने अखिलेश यादव की एक आदर्श युवा नेता के रूप में छवि स्थापित की है, जिसे प्रदेश के ही नहीं, बल्कि प्रदेश के बाहर के लोग भी स्वीकार करते हैं।

मीडिया अखिलेश यादव के व्यवहार और भाषणों की खुल कर प्रशंसा करता रहा है। अखिलेश यादव विपक्षी दलों और विरोधी नेताओं पर कभी अभद्र टिप्पणी नहीं करते, इस पर मीडिया अखिलेश यादव की विशेष रूप से सराहना करता रहा है, लेकिन अखिलेश यादव की सोच मीडिया के प्रति नकारात्मक नजर आती है, क्योंकि हमेशा शालीन रहने वाले अखिलेश यादव सार्वजनिक रूप से मीडियाकर्मियों को अपमानित कर रहे हैं। सैफई महोत्सव पर हुए बवाल को लेकर अखिलेश यादव ने प्रेस कांफ्रेंस कर जनवरी 2014 में मीडिया पर हमला बोला था। उन्होंने महोत्सव की आलोचना करने वाले एक अखबार और एक अंग्रेजी चैनल के रिपोर्टर को लताड़ा था, जिससे अधिकांश मीडियाकर्मी स्तब्ध रह गये थे, पर उस घटना को मीडियाकर्मी यह सोच कर भूल गये कि अखिलेश यादव में अभी गंभीरता और धैर्य की कमी है, जो उम्र और अनुभव के साथ बढ़ जायेगी। उत्तर प्रदेश के हालात उस समय तो भयावह ही थे। दंगा पीड़ित शरणार्थी शिविरों में ठहरे हुए थे, ऐसे में सत्तासीन परिवार द्वारा सरकार की मदद से महोत्सव आयोजित कराने पर सवाल उठना स्वाभाविक ही था।

हालात आज भी कोई बहुत अच्छे नहीं हैं, लेकिन मीडिया अखिलेश यादव को फिर भी दोषी नहीं मान रहा। अन्य राज्यों की तुलना में यहाँ पेट्रोल-डीजल और अधिक महंगा बिक रहा है। बिजली, प्राथमिक शिक्षा और प्राथमिक चिकित्सा तक के लिए आम जनता तरस रही है। राज्य पर बैंकों का कर्ज बकाया है, ऐसे में राजस्व बढ़ाने की जगह सरकार फिल्मों को कर मुक्त करने का रिकॉर्ड कायम कर चुकी है। राज्य किसी भी क्षेत्र में संत्रप्त नहीं हुआ है। हर क्षेत्र में पात्र मुंह फैलाये सरकार की ओर निहार रहे हैं, लेकिन मीडिया सवाल नहीं उठा रहा, जबकि मीडिया को अखिलेश यादव की कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिन्ह लगा देना चाहिए था, पर मीडिया व्यक्तिगत रूप से अखिलेश यादव के विरुद्ध लिखने से बचता रहा है, ऐसे में किसी बड़ी घटना पर मुख्यमंत्री होने के कारण मीडिया कभी अखिलेश यादव से सवाल कर दे और जवाब मांग ले, तो शालीनता की मिसाल कायम करने वाले अखिलेश यादव को यह बिल्कुल नहीं बोलना चाहिए कि तुम्हारा मुंह काला हो। आवेश में वे यह भूल गये होंगे कि सवाल मीडिया ने नहीं उठाया, बल्कि सांसद हुकुम सिंह ने उठाया है और अगर, सांसद का सवाल तथ्यहीन था, तो उस पर जाँच क्यों कराई?, साथ ही अखिलेश यादव को अब यह भी बता देना चाहिए कि मीडिया का मुंह काला हो गया, तो वो सिद्धांतवादी और आदर्श कौन लोग हैं, जिनका मुंह सफेद रह जायेगा?

सवाल यह भी उठता है कि अखिलेश यादव किसी संस्थान को विपरीत विचारधारा का मान चुके हैं और उसे पत्रकारीय संस्कारों से हीन कह चुके हैं, तो उसे बाद में सही क्यों मानने लगते हैं। विपरीत खबरों को लेकर वे जिस संस्थान की आलोचना कर चुके हैं, उसी संस्थान की अन्य खबरों का उदाहरण देकर वे सरकार की प्रशंसा भी करते रहे हैं, जिससे सिद्ध होता है कि उन्हें आलोचना और सवाल पसंद नहीं है, उन्हें सिर्फ प्रशंसा ही भाती है, ऐसी सोच को राजनीति में बहुत अच्छा नहीं कहा जाता।

नेता हो, या अफसर, मीडिया का स्वभाव नायक बनाने का होता है। अगर, कोई नेता, या अफसर बेहतर कार्य कर रहा है, तो रिपोर्टर कई बार उसकी प्रशंसा करने में अपनी छवि तक ही परवाह नहीं करता। रिपोर्टर सीमा से बाहर निकल कर आदर्श नेता और आदर्श अफसर को नायक बनाता है, इस पर उसे कई बार कठघड़े में खड़ा कर दिया जाता है। लखनऊ की एसएसपी मंजिल सैनी समाजवादी पार्टी की विरोधी नहीं हैं, जो मीडिया उनको लेडी सिंघम कहने लगा। वे आम जनता के हित में काम करती चली गईं और मीडिया लिखता चला गया। अभी तीन दिन पहले ही फोन पर एक महिला को बस में आधी रात में तत्काल राहत दिलाने वाले रामपुर के एसपी सुनील त्यागी को मीडिया ने नायक बना दिया। 23 मई को बरेली दौरे पर एंबुलेंस को पहले रास्ता देने पर मीडिया ने अखिलेश यादव की खुल कर प्रशंसा की थी, यह सब दिनचर्या का हिस्सा होना चाहिए। कभी तर्क से, तो कभी व्यंग्य से उन्हें हालात को अपने पक्ष में करने की कला सीखनी चाहिए। मीडिया पर हमला करने से अखिलेश यादव की शालीन व्यक्ति के रूप में स्थापित छवि स्वयं ही तार-तार हो रही है, जिस पर अखिलेश यादव को संयम का लेप शीघ्र चढ़ा लेना चाहिए, क्योंकि उन्हें राजनीति में बहुत लंबी यात्रा तय करनी है, जिसमें ऐसी घटनायें अवरोध का बड़ा कारण बन सकती हैं। समाजवादी आसमान पर उभरते हुए वे इकलौते सितारे हैं, उनके आसपास भी कोई नहीं है। समाजवादी नेता के रूप में युवा नेतृत्व दूर तक दिखाई नहीं दे रहा, ऐसे में उनका संयम खो देना बड़ी घटना है। धैर्य और गंभीरता की पटरी पर संयम के इंजन के सहारे उन्हें समाजवादी विचारधारा को देश भर में स्थापित करना है, जो आसान लक्ष्य नहीं है।

(बी.पी. गौतम,स्वतंत्र पत्रकार)

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