‘अंधविश्वास उन्मूलन : विचार, आचार व सिंद्धांत’ के तीन खण्डों का लोकार्पण उपराष्ट्रपति द्वारा

राजकमल प्रकाशन के उपक्रम ‘सार्थक’ द्वारा प्रकाशित डॉ. नरेन्द्र दाभोलकर की पुस्तक का हिन्दी अनुवाद ‘अंधविश्वास उन्मूलन : विचार, आचार व सिंद्धांत’ के तीन खण्डों का लोकार्पण करते हुए उपराष्ट्रपति माननीय मो. हामिद अंसारी ने कहा कि, जिस तरह महाराष्ट्र में अंधविश्वास उन्मूलन कानून है, उसी तरह राष्ट्रीय स्तर पर इस कानून की जरूरत है। इस किताब की महत्ता को रेखांकित करते हुए उप राष्ट्रपति ने कहा कि, इसका अनुवाद सभी भारतीय भाषाओं में होना चाहिए और इसे स्कूल व कॉलेज के स्तर पर पढाया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इसी तरह के विचार की जरूरत नई पीढी को है। यदि हम आज से ही उन्हें वैज्ञानिक दृष्टिकोण देंगे तो इसका सुफल हमें भविष्य में मिलेगा।

महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति व राजकमल प्रकाशन समूह के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित इस लोकार्पण कार्यक्रम में बोलते हुए पुस्तक के संपादक डॉ. सुशील कुमार लवटे ने कहा कि, महाराष्ट्र में समाजसुधारकों की सुदीर्घ परंपरा रही है। यही कारण है महाराष्ट्र में प्रगतिशील विचार और कृति फलती-फूलती रही है।‘अंधविश्वास उन्मूलन: विचार, आचार व सिंद्धांत’ पुस्तक उसी का फल है। डॉ. नरेद्र दाभोलकर की पुत्री मुक्ता दाभोलकर ने अपनी खुशी जाहिर करते हुए कहा कि, दूसरे राज्यों के लोग भी हमारे पिताजी के कार्यों के बारे में जानने के लिए उत्सुक थे, इस दिशा में राजकमल प्रकाशन के सार्थक उपक्रम से प्रकाशित तीन खंडों में यह ग्रंथ लोगों को उनकी कार्य-संस्कृति को बताने में मददगार होगी।

इस मौके पर राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने बताया कि, उनका प्रकाशन हमेशा से सामाजिक सरोकारों की पुस्तकों का प्रकाशन करता रहा है। हमें खुशी है कि डॉ. दाभोलकर की पुस्तक हम प्रकाशित कर रहे हैं।

धन्यवाद ज्ञापन देते हुए महाराष्ट्र अंधश्रद्धा उन्मूलन समिति के कार्याध्यक्ष अविनाश पाटिल ने कहा कि उनका मकसद है कि वे लोग उपराष्ट्रपति के सुझावों को आगे बढ़ाते हुए इस किताब को ज्यादा से ज्यादा भाषाओं में आम लोगों तक पहुंचाएंगे।

लोकार्पण समारोह में प्रख्यात हिन्दी आलोचक नामवर सिंह, ज्ञानपीठ पुरस्कार से नवाजे गए मराठी के वरिष्ठ लेखक भालचंद्र नेमाड़े, गोरख थोराट व गांधी स्मृति दर्शन समिति की अध्यक्ष मणिमालाविशिष्ट उपस्थिति रही।
कार्यक्रम का संचालन मुक्ता दाभोलकर ने किया।

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