एसएसपी वाराणसी द्वारा पत्रकारों के उत्पीडन की प्रेस काउन्सिल में शिकायत

लखनऊ आधारित सामाजिक कार्यकर्ता नूतन ठाकुर ने एसएसपी वाराणसी अजय कुमार मिश्रा द्वारा पत्रकारों को विधिविरुद्ध तरीके से प्रताडित किये जाने के सम्बन्ध में भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष मार्कंडेय काटजू को शिकायत भेजी है.

दरअसल मणिकर्णिका घाट पर लाशों की प्रति घंटा आमद पर सट्टेबाजी सम्बंधित एक खबर पर वाराणसी के थाना चौक में 23 मई 2013 को 13 जुआ अधिनियम में मुक़दमा दर्ज किया गया. बाद में इसमें दो अभियुक्तों को पकड़ कर उनके बयान पर उलटे पत्रकार काशीनाथ शुक्ल, आसिफ और दिनेश कुमार को अभियुक्त बनाया गया जिसमे आसिफ गिरफ्तार किये गए.

ठाकुर ने अनुसार धारा 13 जुआ अधिनियम तभी लगता है जब लोग मौके पर पकडे जाते हैं. यहाँ कोई मौके पर पकड़ा ही नहीं गया था. इसके अलावा मात्र पुलिस अभिरक्षा में अभियुक्तों के दिये बयान पर खबर चलाने वाले तीन लोगों को अभियुक्त बना दिया गया.

बाद में लगाई गयी धारायें 419, 420, 467, 468, 177, 295ए आईपीसी भी कानूनी रूप से ही गलत है क्योंकि यहाँ ना तो किसी की धार्मिक भावना से खिलवाड़ हुआ, ना कोई मूल्यवान दस्तावेज़ की कूटरचना हुई और ना ही किसी को ठग कर पैसे लिए गए.

ठाकुर ने अनुसार यह सब मात्र एसएसपी की व्यक्तिगत नाराजगी के कारण हुआ जो इस खबर से जुड़े कुछ लाइव शो में अपने आप को कथित रूप से नीचा दिखाए जाने से क्षुब्ध थे.

भेजा गया पत्र—

सेवा में,
जस्टिस मार्कंडेय काटजू,
अध्यक्ष,
प्रेस काउन्सिल ऑफ इंडिया,
नयी दिल्ली

विषय- जनपद वाराणसी में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक श्री अजय कुमार मिश्रा द्वारा पत्रकारों को कथित तौर पर विधिविरुद्ध तरीके से प्रताडित किये जाने विषयक
महोदय,
कृपया निवेदन है कि मैं इस पत्र के माध्यम से अपने स्तर पर प्राप्त जानकारी के अनुसार जनपद वाराणसी में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक श्री अजय कुमार मिश्रा द्वारा पत्रकारों को कथित तौर पर विधिविरुद्ध तरीके से प्रताडित किये जाने के सम्बन्ध में विशेष तत्परता के साथ यथाशीघ्र जांच करते हुए नियमानुसार आवश्यक कार्यवाही करने का निवेदन करती हूँ.
शासकीय अभिलेखों के अनुसार इस प्रकरण की शुरुआत थाना चौक, जनपद वाराणसी में दिनांक 23/05/2013 को समय 14.15 पर दर्ज मु०अ०सन० 84/13 अंतर्गत धारा 13 जुआ अधिनियम से हुई. यह मुक़दमा थाना चौक के उप निरीक्षक श्री उदय प्रताप पाण्डेय द्वारा पंजीकृत कराई गयी जिसमे कहा गया कि वे अपने कुछ अन्य पुलिसवालों के साथ भ्रमण पर थे. इसी बीच समय करीब 12.30-13.00 बजे के बीच एक सेठ की दुकान पर उन्हें कुछ टीवी न्यूज़ देखने को मिले. विभिन्न चैनल सहारा समय उत्तर प्रदेश, जी न्यूज़, न्यूज़ नेशन, ई टीवी और समाचार प्लस पर लाशों की सट्टेबाजी सम्बंधित एक खबर चल रही थी. इन समाचारों में आ रहा था कि मणिकर्णिका घाट पर लाशों के प्रति घंटे की आमद पर सट्टा लगाई जाती है. टीवी चैनलों पर दो युवक भी दिख रहे थे. इस आधार पर धारा 13 जुआ अधिनियम में मुक़दमा दर्ज किया है.
आगे चल कर इस मुकदमे में धारा 160 सीआरपीसी के तहत बयान लेने के लिए कई पत्रकारों को नोटिस भी जारी किया था. इस मामले में वाराणसी पुलिस में हुलिया के आधार पर दो लोगों- श्री सगुन उर्फ कंचन मौर्य और श्री सुरेन्द्र चौरसिया को दिनांक 29/05/2013 को गिरफ्तार किया गया. इन दोनों अभियुक्तों ने पुलिस के सामने बयान दिया कि दरअसल यह सट्टेबाजी की खबर/घटना पूर्णतया प्रायोजित थी. यह कार्य इन अभियुक्तों ने न्यूज़ नेशन चैनल के पत्रकार श्री काशी नाथ शुक्ल और कैमरामैन श्री आसिफ के कहने पर किया था. इस बयान के आधार पर मुकदमे को धारा 13 जुआ अधिनियम से धारा 419, 420, 467, 468, 177, 295ए आईपीसी में तरमीम कर दिया गया. साथ ही अभियुक्तों में श्री सगुन और श्री सुरेन्द्र के अलावा श्री काशीनाथ शुक्ल और श्री आसिफ तथा राहत टाइम्स अखबार के श्री दिनेश कुमार को अभियुक्त बनाया गया. इसके बाद श्री आसिफ की दिनांक 29/05/2013 को गिरफ्तारी की गयी. तीनों अभियुक्तों की दिनांक 05/06/2013 को जमानत हुई है.
यह तो सरकारी कहानी है. लेकिन इस प्रकरण में पत्रकारों सहित तमाम जानकार सूत्रों का कहना यह है कि यह पूरा प्रकरण जनपद वाराणसी के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक श्री अजय कुमार मिश्रा द्वारा अपने आधिकारिक पद का दुरुपयोग करने, अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल करने और पत्रकारों को विधिविरुद्ध तरीके से उत्पीडित करने का है. मुझे बताई गयी जानकारी के अनुसार श्री मिश्रा ने अपने अधीन पुलिसकर्मियों द्वारा इस प्रकरण में जानबूझ कर इन पत्रकारों को उत्पीडित किया और यह कार्य अभी भी हो रहा है.
मैं यह जो आरोप लगा रही हूँ उसके लिए मेरे पास पूर्णतया प्रभावी साक्ष्य और तथ्य तो हैं ही, साथ ही विधि के प्रावधान भी हैं.
हम सभी जानते हैं कि पुलिस, जिसमे उत्तर प्रदेश की पुलिस भी शामिल है, टीवी पर चल रही खबरों और अखबारों में आ रहे समाचारों के प्रति कोई विशेष सजग नहीं रहती है. वह अकसर यही प्रयास करती है कि ऐसी खबरों को झूठला दिया जाए या उन्हें किसी भी प्रकार से गलत बता दिया जाए. इसके विपरीत इस मामले में पुलिस ने टीवी पर सट्टेबाजी की चल रही ख़बरों पर ही एफआईआर दर्ज कर किया जो अपने आप में ही एक चौंकाने वाली बात है. इसका कारण यह बताया जा रहा है कि जब कुछ टीवी चैनलों पर लाशों की सट्टेबाजी से जुडी खबरें सुबह से चलने लगीं तो करीब 11- 11.30 बजे कुछ टीवी चैनलों ने एसएसपी श्री मिश्रा से भी लाइव बयान लिए. मुझे बतायी गयी जानकारी के अनुसार इनमे कुछ टीवी चैनलों पर बातचीत के क्रम में श्री मिश्रा से कुछ कठिन प्रश्न पूछ लिए गए और उनकी कुछ खिंचाई सी हो गयी. एसएसपी के रूप में इन टीवी पत्रकारों द्वारा अपनी यह कथित खिंचाई श्री मिश्रा को नागवार लग गयी और इसे अपनी हेठी समझते हुए उसी समय से ऑपरेशन पत्रकार शुरू हो गया.
मेरी यह बात उस दिन के उत्तर प्रदेश के उपरोक्त पांच क्षेत्रीय न्यूज़ चैनलों- सहारा समय उत्तर प्रदेश, जी न्यूज़, न्यूज़ नेशन, ई टीवी और समाचार प्लस, के समय 10.30- 12.30 बजे बजे के आसपास के न्यूज़ फूटेज से आसानी से समझी और जानी जा सकती है.
बताया जाता है कि श्री मिश्रा ने तत्काल अपने अधीनस्थ पुलिसवालों को इस मामले में सम्बंधित पत्रकारों को सबक सीखने को कहा और पुलिस की आगे की रणनीति शुरू हो गयी दिखती है. यह बात कि यह सारा कार्य एसएसपी श्री मिश्रा के आदेश पर हुआ थाना चौक, जनपद वाराणसी में दिनांक 23/05/2013 को उप निरीक्षक श्री उदय प्रताप पाण्डेय द्वारा दर्ज मु०अ०सन० 84/13 के अवलोकन से स्पष्ट हो जाती है जिसमे लिखा है- “एसएसपी के आदेश पर पुलिस जांच में जुटी.” एफआईआर के यह शब्द स्पष्ट कर देते हैं कि यह सारा मामला एसएसपी के आदेशों पर संचालित किया जा रहा था.
यह अलग बात रही कि पुलिस एफआईआर दर्ज करने और एसएसपी के आदेशों का पालन करने की तत्परता मे क़ानून की बुनियादी बात भी भूल गयी. धारा 13 सार्वजनिक जुआ अधिनियम 1867, जिसके अंतर्फत यह मुक़दमा दर्ज किया गया, कहता है कि कोई भी पुलिस अधिकारी बिना वारंट किसी को भी गिरफ्तार कर सकता है यदि वह किसी सार्वजनिक सड़क, स्थान, मार्ग पर जुआ खेलते हुए पकड़ा जाए या किसी व्यक्ति के कब्जे से ऐसे स्थान पर जुआ खेलने के उपकरण पाए जाएँ या वहाँ चिड़ियों और जानवरों की लड़ाई हो रही ही या चिड़ियों और जानवरों की लड़ाई की तैयारी करते पाए जाएँ. गौरतलब है कि स्वयं श्री पाण्डेय की तहरीर के अनुसार ना तो कोई व्यक्ति जुआ खेलते हुए पकड़ा गया था और ना ही मौके पर जुआ खेलने के उपकरण पाए गए थे. उपनिरीक्षक श्री पाण्डेय को ना तो कोई आदमी मिला था और ना ही कोई उपकरण. यदि यह मान भी लिया जाए कि उन्होंने टीवी पर यह खबर देखी भी हो तब भी आदमी के नहीं पकडे जाने या उपकरण नहीं मिलने के कारण धारा 13 सार्वजनिक जुआ अधिनियम का अपराध बन ही नहीं सकता था क्योंकि इसमें अभियुक्त की गिरफ़्तारी या अभियुक्तों का मिलना अनिवार्य है. मात्र टीवी पर ऐसे कृत्य के देखे जाने से धारा 13 सार्वजनिक जुआ अधिनियम नहीं लगाया जा सकता है. इस प्रकार प्रथमद्रष्टया ही यह एफआईआर विधिविरुद्ध और क़ानून के प्रावधानों के खिलाफ था.
अगली बात यह कि जब दिनांक 23/05/2013 को मुक़दमा दर्ज हुआ और कुछ दिनों बाद अभियुक्तों की गिरफ्तारी हुई तो मात्र उन अभियुक्तों के बयान पर ही तीन नए अभियुक्त बना दिये गए. मेरी जानकारी के अनुसार जिन तीन पत्रकारों को इस मुकदमे में नया अभियुक्त बनाया गया उनके खिलाफ पूर्व में पकडे गए अभियुक्तों के अलावा कोई भी अन्य गवाही नहीं थी. हम सभी जानते हैं कि पुलिस के सामने पुलिस अभिरक्षा में दी गयी गवाही की कोई विधिक मान्यता नहीं होती. फिर भी पुलिस ने मात्र अपने सामने अपनी अभिरक्षा में दी गवाही के आधार पर ही इस पत्रकारों को नए मुज्लिम बना दिये. दूसरी बात यह कि यह गवाही भी किसी निष्पक्ष गवाह की नहीं थी बल्कि स्वयं दो अभियुक्तो की थी. इस प्रकार दो अभियुक्तों की पुलिस अभिरक्षा में दी गवाही के आधार पर न्यूज़ चलाने वालों को अभियुक्त बना देना अपने आप में सिर्फ गलत ही नहीं है, बहुत खतरनाक भी है क्योंकि यह सीधे-सीधे मीडिया पर हमला है और उन्हें यह सन्देश है कि यदि तुमने कोई भी गलती या कमजोरी या अपराध उजागर किया तो तुम भी उन अभियुक्तों की गवाही पर उनके साथ लाद दिये जाओगे.
इसके विपरीत यदि एक पल के लिए यह मान भी लिया जाए कि अभियुक्तों ने सही में ऐसा बयान दिया था और यह घटना वास्तव में न्यूज़ नेशन चैनल के पत्रकारों द्वारा प्रायोजित एक झूठी घटना थी तब भी धारा 419, 420, 467, 468, 177, 295ए आईपीसी में से कोई भी धारा विधिक रूप से सही नहीं बनती जो इन पत्रकारों पर लगाई गयी. हम एक-एक कर सभी धाराओं को देखें.
धारा 177 आईपीसी तब कारित होता है जब कोई व्यक्ति किसी लोक सेवक को किसी विषय पर कोई सूचना देने को वैध रूप से आबद्ध होते हुए भी विधि द्वारा अपेक्षित प्रकार से और समय पर ऐसी सूचना का साशय लोप करता है. जाहिर है कि यह धारा तभी लग सकती है कि सम्बंधित अभियुक्त कोई सूचना देने को विधिक रूप से बाध्य हो. इस प्रकरण में पत्रकारगण इस जुए या सट्टा की सूचना एसएसपी या पुलिस को देने को विधिक रूप से कत्तई आबद्ध नहीं थे. इसके विपरीत वे अपनी न्यूज़ के जरिये इस सूचना को सभी आम-ओ-खास तक स्वयं ही पहुंचा रहे थे जिनमे पुलिस भी शामिल है. इस प्रकार धारा 177 आईपीसी इन पत्रकारों पर नहीं लगती है.
धारा 295ए आईपीसी का अर्थ है किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के लिए उस वर्ग के धर्म या धार्मिक भावनाओं का अपमान करना. स्वयं एफआईआर के अनुसार यहाँ मात्र इस बात पर जुआ खेला जा रहा था कि एक घंटे में कितनी लाशें आएँगी. जाहिर है कि इसमें किसी की भी धार्मिक भावनाएं किसी भी प्रकार से आहत नहीं हो रही हैं. पत्रकारों ने किसी लाश को क्षत-विक्षत नहीं प्रस्तुत किया था, किसी धार्मिक रीति-रिवाज पर टिप्पणी नहीं की थी, किसी धार्मिक संस्कार को निशाना नहीं बनाया था. मात्र यह चर्चा हो रही यही कि प्रति घंटे कितनी लाशें आएँगी. यह शास्वत सत्य है कि मनुष्य की मृत्यु होती रहेगी. यह भी सही है कि वाराणसी में बहुतायत लाशें मणिकर्णिका घाट पर ही आएँगी. अतः इस प्रकार की सूचना सनसनीखेज और हैरतअंगेज तो हो सकती है, इसे किसी प्रकार से भी किसी के भी धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ दूर-दूर तक नहीं माना जा सकता.
धारा 419 आईपीसी प्रतिरूपण द्वरा छल के विषय में है. छल की परिभाषा धारा 415 में दी गयी है. छल से अर्थ है किसी व्यक्ति से प्रवंचना कर उस व्यक्ति को कपटपूर्वक या बेईमानी से इस प्रकार उत्प्रेरित करना कि वह अपनी संपत्ति छल करने वाले व्यक्ति को परिदत्त कर दे अथवा उस व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक, ख्याति सम्बंधित या साम्पत्तिक नुकसान या अपहानि कारित होना या कारित होना संभाव्य होना. धारा 416 प्रतिरूपण द्वारा छल की परिभाषा है जिसमे आवाश्यक है कि वह व्यक्ति यह अपदेश करके कि वह कोई अन्य व्यक्ति है या एक व्यक्ति को जानते बूझते अन्य व्यक्ति के रूप में प्रतिस्थापित करे. इस मामले में यदि मान भी लिया जाए कि पत्रकार सनसनी पैदा करने को यह खबर प्रायोजित कर रहे थे तब भी यह किसी प्रकार से प्रतिरूपण द्वारा छल नहीं है क्योंकि यहाँ वे किसी से कपटपूर्वक अपनी संपत्ति देने को उद्धत नहीं कर रहे हैं. वे मात्र अपनी चैनल की रेटिंग बढ़ा रहे हैं अथवा सनसनी फैला रहे हैं. वे इस प्रक्रिया में किसी से ना तो पैसे मांग रहे थे और ना ही पैसा देने को कह रहे थे. पैसा पाने की दिशा में कोई भी प्रयास नहीं हो रहा था. यदि कोई आदमी इस खबर से उद्धत हो कर आपस में सट्टा भी खेलता है तो भी वह कपटपूर्वक उत्प्रेरित नहीं हो रहा है और ना ही कोई प्रतिरूपण हो रहा है क्योंकि ऐसा व्यक्ति जानबूझ कर शौकिया सट्टेबाजी करता है जिसमे छल का कोई अंश बिलकुल नहीं है. अतः यहाँ किसी प्रकार से धारा 419 आईपीसी नहीं बनता है.
धारा 420 आईपीसी छल करना और प्रवंचित किये जा रहे व्यक्ति को अपनों संपत्ति परिदत्त करने अथवा किसी मूल्यवान प्रतिभूति को अंशतः या पूर्णतः परिवर्तित करने, नष्ट करने के लिए उत्प्रेरित करना है. ऊपर बताए कारणों से इस मामले में छल जैसी कोई बात नहीं है क्योंकि यह भी मान लिया जाए कि यह सब प्रायोजित था तब भी इसमें छल नहीं है, सनसनी फैलाने का प्रयास मात्र है.
धारा 467 आईपीसी किसी मूल्यवान प्रतिभूति, बिल, जंगम संपत्ति, धन आदि से जुड़े दस्तावेज़ आदि को कूटरचित करना है और धारा 468 छल के प्रयोजन से कूटरचना करना है. इस प्रकरण में जब कोई मूल्यवान प्रतिभूति, बिल, जंगम संपत्ति, धन आदि से जुड़े दस्तावेज़ हैं ही नहीं तो कूटरचित किसे किया जा रहा है. स्वाभाविक है कि बिना मूल्यवान प्रतिभूति, बिल, जंगम संपत्ति, धन आदि से जुड़े दस्तावेज के हुए ये दो धाराएं लग ही नहीं सकती थीं.
निष्कर्ष यह कि पुलिस ने सबसे पहले जो जुआ एक्ट की धारा लगा कर मुक़दमा दर्ज किया वह प्रथमद्रष्टया ही विधिक रूप से पूर्णतया गलत था क्योंकि इस धारा में मुक़दमा के लिए आवश्यक है कि मौके पर व्यक्ति गिरफ्तार हों या मौके पर कोई जुआ सम्बंधित उपकरण मिलें. अतः मात्र न्यूज़ चैनेलों पर चल रही खबरों पर धारा 13 जुआ एक्ट का गलत ढंग से लगाया जाना यह साबित कर देता है कि पुलिस की भूमिका शुरू से ही गलत थी. एफआईआर में एसएसपी का जिक्र यह सिद्ध करता दिखता है कि यह सब एसएसपी के इशारों पर किया गया. मात्र अभियुक्तों के पुलिस अभिरक्षा में दिये बयान पर उन पत्रकारों को, जो इस पूरे घटनाक्रम को दिखने वाले थे, उलटे अभियुक्त बना देना इस बात की और अधिक पुष्टि करता है. अंत में यह तथ्य कि यदि मान भी लिया जाए कि यह प्रायोजित खबर थी, तब भी जो-जो गंभीर धाराएं इन पत्रकारों पर लगाई गयीं वह प्रथमद्रष्टया ही गलत और विधि के परे हैं, इस बात को पूरी तरह सिद्ध कर देती हैं कि यह सब पूरी तरह पुलिस द्वारा पत्रकारों पर सीधे तौर पर किया जा रहा अत्याचार और उत्पीडन है.

इसके अलावा कुछ अन्य तथ्य भी हैं जिन पर ध्यान देना आवश्यक होगा. पकडे गए पत्रकार श्री आसिफ के अनुसार उन्हें दिनांक 27/05/2013 को थाने पर बैठा लिया गया और दो दिन अवैधानिक बैठाया गया. अंत में दिनांक 29/05/2013 को उनका चालान किया गया. दूसरे अभियुक्त श्री काशीनाथ शुक्ल की पत्नी की ओर से पत्रकार श्री राम सुंदर मिश्र ने राष्ट्रीय महिला आयोग और अन्य को भेजे अपने प्रत्यावेदन में यह आरोप लगाया है कि श्री शुक्ल को कथित रूप से गिरफ्तार करने की प्रक्रिया में गर्भवती होने के बाद उनकी पत्नी के साथ अभद्रता की गयी. मैं इस पत्र की भी एक प्रति यहाँ संलग्न कर रही हूँ.
तीसरी बात यह कि पत्रकारों का यह कहना है कि उन्हें धारा 160 सीआरपीसी में नोटिस दे कर जब थाने में बुलाया गया तो उस दौरान उनसे निरंतर अभद्रता की गयी और उन्हें मानसिक रूप से उत्पीडित किया गया.
विस्तार में उपरोक्त सभी तथ्य प्रस्तुत करने के बाद मैं मानवाधिकार और प्रशासनिक पारदर्शिता के क्षेत्र में कार्य करने वाली डॉ नूतन ठाकुर, कन्वेनर, नेशनल आरटीआई फोरम, लखनऊ यह शिकायती पत्र प्रेषित करते हुए आपसे निम्न निवेदन करती हूँ-

प्रार्थना

कृपया इस पूरे प्रकरण की अपने स्तर से तत्काल वृहत जांच करने की कृपा करें ताकि इससे मेरे द्वारा प्रस्तुत तथ्यों और विधिक सन्दर्भों के सम्बन्ध में स्थिति स्पष्ट हो जाये और तदनुसार यदि मेरी बात तथ्यात्मक और विधिक रूप से सत्य पायी जाए और यह पाया जाए कि सबसे पहले जुआ एक्ट का मुक़दमा ही कानूनी रूप से गलत था, कथित सट्टेबाज अभियुक्तों ने पत्रकारों द्वारा प्रायोजित खबर चलाने के लिए उत्प्रेरित करने जैसा कोई बयान नहीं दिया था, मात्र अभियुक्तों द्वारा कथित रूप से पुलिस अभिरक्षा में दिये बयान पर पत्रकारों की गिरफ़्तारी विधिसम्मत नहीं थी, एफआईआर में बाद में जो धाराएँ लगाई गयीं वे भी प्रथमद्रष्टया विधिक रूप से त्रुटिपूर्ण थीं, पत्रकारों को बयान लेने के बहाने उनका उत्पीडन हुआ, श्री आसिफ को दो दिन अवैधानिक रूप से थाने में बैठाया गया और श्री काशीनाथ शुक्ल की गर्भवती पत्नी के साथ अत्याचार किया गया तो इनमे से जितने भी आरोप सही पाए जाते हैं उनके लिए वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक वाराणसी श्री अजय कुमार शुक्ल सहित सभी सम्बंधित पुलिसकर्मियों के खिलाफ कठोर कार्यवाही कराया जाना सुनिश्चित करें.

मैं पुनः निवेदन करुँगी कि ये गंभीर प्रकरण हैं और सीधे-सीधे पत्रकारों को अपने पेशेगत कार्य के एवज में उत्पीडित करने सम्बंधित है, अतः इनमे आपके व्यक्तिगत रूप से ध्यान देने और तत्काल जांच किये जाने की नितांत जरूरत है क्योंकि यह मीडिया की गरिमा और उसकी स्वतंत्रता को अक्षुण्ण रखे जाने हेतु नितांत आवश्यक है .

पत्र संख्या- NRF/Var/SSP/01 भवदीय,
दिनांक-08/06/2013
(डॉ नूतन ठाकुर )
कन्वेनर,
नेशनल आरटीआई फोरम,
5/426, विराम खंड,
गोमती नगर, लखनऊ
# 94155-34525
nutanthakurlko@gmail.com

प्रतिलिपि-
१. प्रमुख सचिव, गृह, उत्तर प्रदेश शासन को जांच कर आवश्यक कार्यवाही हेतु
२. पुलिस महानिदेशक, उत्तर प्रदेश को जांच कर आवश्यक कार्यवाही हेतु

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