फटीचर पत्रकार की चिट्ठी, केजरीवाल के नाम

अखिलेश शर्मा,पत्रकार,एनडीटीवी इंडिया

प्रिय श्री अरविंद केजरीवाल

मैं आपको ये पत्र तिहाड़ जेल की बैरक नंबर पाँच के कमरा नंबर 420 से लिख रहा हूं। ये पत्र आपको तिहाड़ जेल की शोचनीय स्थिति से अवगत कराने के लिए लिखा जा रहा है। उम्मीद है कि बतौर प्रधानमंत्री आप इस जेल की समस्याओं को दुरुस्त करने के लिए संबंधित अधिकारियों को निर्देश देंगे।

जैसा कि आप जानते हैं कि आपके शपथ लेने के तुरंत बाद देश भर के अखबारों-टीवी चैनलों में काम करने वाले तमाम पत्रकारों को देश की अलग-अलग जेलों में डाल दिया गया। यहां तक कि आपके शपथ ग्रहण समारोह का लाइव टेलीकास्ट करने वाले रिपोर्टरों और कैमरामैनों को भी रामलीला मैदान में आपके शपथ ग्रहण कार्यक्रम के समाप्त होते ही धर-दबोचा गया। जैसा कि आप जानते ही हैं कि आपके आदेशानुसार दिल्ली के कानून-व्यवस्था भ्रष्ट दिल्ली पुलिस के हाथों से लेकर आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं को दे दी गई है। लेकिन समस्या तब आई जब गिरफ्तार किए गए पत्रकारों को हाथ में झाडू लेकर और सिर पर ‘मैं भी आम पत्रकार’ की टोपी पहना कर राम लीला मैदान से तिहाड़ जेल तक पहले वैगन आर, फिर मैट्रो और बाद में आटो से ले जाया गया। इस जुलुस को रास्ते में आईटीओ पर रोक कर वहां से भी सारे पत्रकारों के साथ यही सलूक किया गया। चूंकि ज्यादातर टीवी चैनल नोएडा में हैं इसलिए वहां के पत्रकारों को घसीटने के लिए आपने उत्तर प्रदेश सरकार से विशेष अनुरोध किया और उसे न माने जाने पर आपने वहां की सरकार को बर्खास्त कर वहां की कानून-व्यवस्था गुलाबी गैंग के हवाले की। तब जाकर नोएडा के पत्रकार आपको मिल पाए।

महोदय, अब स्थिति ये है कि तिहाड़ में पैर रखने की भी जगह नहीं है। यहां पहले से ही बंद नेता, नौकरशाह और जज इस बात से खासे नाराज हैं कि उनके साथ पत्रकारों को भी तिहाड़ में ठूंस दिया गया है। आप जानते हैं कि चाहे आप पत्रकारों को बिका हुआ समझें, लेकिन आप जिन्हें इनका खरीददार समझते हैं, वो नेता हमें फूंटी आँख भी नहीं देखना चाहते हैं। उन्हें इस बात से दिक्कत है कि उनके नीचे काम करने वाले नौकरशाह पहले ही उनके साथ बंद हैं। पर वो ये नहीं समझ पा रहे कि जब लोकतंत्र का पहला, दूसरा और तीसरा खंभा अंदर है तो चौथा बाहर रह कर क्या करेगा। बाहर बहुत अकेलापन महसूस हो रहा था। अच्छा किया आपने हमें भी अंदर कर दिया। पर यहाँ जगह नहीं है। आपसे अनुरोध है कि सोमनाथ भारतीजी को बोल कर नौकरशाहों को नाइजेरिया की जेलों में भिजवा दें। अदाणी और अंबानी की फैक्ट्रियां तोड़ कर जो जगह मिली है वहां जेल बना कर नेताओं को शिफ्ट कर दें। और हम पत्रकारों को तिहाड़ में ही रहने दें।

आखिर आप कहते भी तो हैं न कि हमारी जगह यही है।

आपका

एक फटीचर मगर आम पत्रकार

(लेखक के ब्लॉग से साभार)

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