पत्रकार दहशत में है। बागो में बहार है।

RAVISH KUMAR
PRIME TIME में RAVISH KUMAR का ड्रामा !

पढ़ा था दबाव में रहने वाला पत्रकार जनता की कभी भी आवाज़ नहीं बन सकता। बशर्ते उसने पत्रकारिता करने की बजाय किसी सरकारी दफ्तर, कॉरपोरेट कल्चर में नौकरी करनी चाहिए। बॉस और मालिक के आगे पीछे, जी हुजूर तोहफा कबुल है कहना चाहिए। तारीफो में कसीदे पढ़ने चाहिए। आज देश के 95 फीसदी मीडिया हाउसेस को कॉरपोरेट सेक्टर ने दबोच लिया है। कॉरपोरेट सेक्टर सत्ता पक्ष से साथ डंके की चोट पर खड़ा है। कॉरपोरेट सेक्टर के अपने वेस्टेड इंटरेस्ट है और मज़बूरी। पत्रकार खुलकर लिख नहीं पाता। क्योकि पैसा और नौकरी जाने का डर। खुलकर बोल नहीं पाता आलोचना नहीं कर सकता क्योकि आलोचना करना मतलब किसी का पक्षधर होने का संगीन आरोप। कौनसी स्टोरी कवर करनी है। स्टोरी में कंटेंट क्या देने चाहिए। कैप्शन क्या देना है। लीड स्टोरी, एडिटोरियल क्या रहेगा। कौनसी स्टोरी फ़ाइल करनी है। किसके खिलाफ लिखना है। स्टोरी से किसका नाम हटाना है। किसे तर्जी देनी है। अजेंडा सेट है। अब अजेंडा सेट मीडिया हाउसेस के मालिक करते है । एडिटर इन चीफ केवल नामधारी बुद्धिजीवी है। आज पत्रकारों की स्थिति देखकर लगता है। पत्रकार दहशद में है फिर भी बागो में बहार है।

(सुजीत ठमके की एक टिप्पणी)

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