नैतिकता की बात होने पर निशाने पर टीवी – एन.के.सिंह

भारतीय मीडिया और नैतिकता का संकट पर गोष्ठी

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नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट (इंडिया) और गांधी शांति प्रतिष्ठान की ओर से गांधी शांति प्रतिष्ठान में “भारतीय मीडिया और नैतिकता का संकट”, पर विचार गोष्ठी आयोजित की गई, जिसमें अनेक गण्यमान्य पत्रकार एवं राजनीति, समाजसेवी और चिंतक उपस्थित रहे। एनयूजे (आई) के अध्यक्ष विजय क्रांति के स्वागत भाषण के साथ परिचर्चा की शुरूआत हुई। विजय क्रांति ने वर्तमान समय में मीडिया की नैतिकता के बारे में विस्तार से बताया। कार्यक्रम की शुरूआत पूर्व आईपीएस और सोशल एक्टिविस्ट किरण बेदी ने की। अपने संबोधन में किरण बेदी ने कहा कि आज के दौर में पत्रकारिता पर व्यावसायिकता थोड़ी हावी हो रही है। भारतीय मीडिया इस समय नैतिकता के संकट का सामना कर रहा है। जिस तरह समाचार मीडिया, मनोरंजन और दूरसंचार के क्षेत्र में तेज विकास हो रहा है, उसके कारण व्यावसायिक पत्रकारिता, जनसंपर्क, विज्ञापन और मनोरंजन की सीमाएं आपस में घुल-मिल गई हैं। उन्होंने कहा कि सवाल यह है क्या नए पत्रकार इन सीमाओं को जानते हैं और क्या वे कारोबारी फायदे व मौलिक नफे-नुकसान के लिए इसे कुर्बान करने के लिए तैयार हैं ? जानदार पत्रकारिता लोकतंत्र की धुरी होती है जो हमेशा नैतिकता के पालने से ही पनपती है। आज यह आम धारणा हो गई है कि व्यावसायिक पत्रकारिता पर नैतिकता की पकड़ ढीली पड़ गई है।

 

बेदी ने कहा कि राडिया टेप के समय हुए एक सर्वे में 97फीसदी लोग का मानना था कि वे पत्रकारों पर भरोसा नहीं करते हैं। यह बड़ा गंभीर प्रश्न है। मीडिया भी समाज का ही हिस्सा है। जब से देश के लोकतांत्रिक मूल्यों में गिरावट आई है तो उसका प्रभाव पत्रकारिता पर भी पड़ा है।मीडिया की विश्वसनीयता को पुन: स्थापित करने के लिए आत्म नियमन की आवश्कता पर बल देना होगा। उन्होंने कहा कि प्रेसपाल या मीडियापाल बनाने की दिशा में प्रयास होने चाहिए। बेदी ने कहा कि मीडिया वाच डॉग है और इस वाच डॉग के ऊपर भी कोई होना चाहिए जो इसे नियंत्रित कर सके।

बीईए के महासचिव और वरिष्ठ पत्रकार एन के सिंह ने मीडिया में फैली गंध पर विस्तार से बात की। उन्होंने भारतीय मीडिया के संदर्भ में पेड न्यूज की व्यापकता को समझाया। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि जब नैतिकता की बात होती है तो सबसे अधिक निशाने पर टीवी ही रहता है। मीडिया में हमने सबसे पहले आत्म नियमन की व्यवस्था की है। आप हमें क्रिटीसाइज कीजिए लेकिन एक हद तक क्योंकि हमारी भी कुछ सीमाएं हैं। उन्होंने कहा कि आज भारत में प्रतिमान बनाने कि परंपरा खत्म हो गई है। मॉर्केट प्रेशर ने सेंस ऑफ प्राइड को समाप्त कर दिया है। यह संकट सिर्फ मीडिया की वजह से नहीं है। इस संकट का कारण नेता, कॉरपोरेट और संपादक के बीच चल रहा नेक्सस है। मीडिया घरानों की बढ़ती व्यावसायिक आकांक्षाओं के चलते भी मीडिया का अपभ्रंश हुआ है। टीआरपी कोई गंदी चीज नही है- हमारा काम है जनता के पास जाना और हम जा रहे हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि थोडा समय लगेगा लेकिन अगले पांच साल में यूरोप हमें फॉलो करेगा। सुचिता को पुन: स्थापित करने के लिए ग्रास रूट लेवल पर काम करना होगा और बीईए इसी दिशा में काम कर रहा है जिसका असर अब दिखाई पड़ रहा है।

प्रख्यात पत्रकार और वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक राम बहादुर राय ने परिचर्चा को संबोधित करते हए कहा कि बाजारवाद के दबाव ने आत्मनियमन की अहमियत को समाप्त कर दिया है। आज मीडिया घराने व्यावसायिक हितों के चलते नैतिकता से समझौता कर रहे हैं। मीडिया का हो रहा विस्तार संपादकीय परिघटना नहीं है बल्कि यह एक बाजारी परिघटना है। नैतिकता पर बड़ी चिंता की ओर इशारा करते हए उन्होंने कहा कि संपादक की भूमिका का सीमित होना आज की बड़ी समस्या है। राम बहादुर राय बहस को नए आयाम के साथ वैश्विक फलक पर लाए और अपनी बात रखते हुए कहा कि जब मीडिया में विदेशी पूंजी आती है तो मुनाफे के लिए आती है। ऐसे हालात में मीडिया की वस्तुस्थिति को जानने के लिए तीसरा प्रेस आयोग के गठन की आवश्यकता है। दरअसल, प्रेस आयोग ही वह मंच है जो मीडिया की वस्तुस्थिति से हमें अवगत करा सकता है और यह हमारा अधिकार भी है।

विख्यात चिंतक एवं भाजपा के पूव राष्ट्रीय महामंत्री गोविंदाचार्य ने कहा कि आज बड़े-बड़े ठेकेदार, उद्योगपति अपने संरक्षण के लिए अखबार और चैनल चला रहे हैं। ऐसी परिस्थिति में मीडिया चौकीदार कैसे बनेगा? उन्होंने अपनी जनादेश यात्रा (आदिवासियों को उनकी जमीन दिलाने के लिए) को एक टीवी चैनल पर चलाने के लिए कहा तो टीवी चैनल ने इस खबर को चलाने से इसलिए मना कर दिया क्योंकि उस जनादेश यात्रा से कोई बड़ा चेहरा नहीं जुड़ा था। एक और वाक्या बताते हुए उन्होंने कहा कि दो साल पहले हम लोग लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जन्मतिथि मना रहे थे और मैंने अपने एक मित्र से इस खबर को टीवी चैनल पर चलाने के लिए कहा तो उन्होंने मना कर दिया लेकिन मैंने जब टीवी देखा तो पाया कि उस चैनल पर तीन विंडो बनाई गई थी बीच में एंकर एक तरफ लोकनायक और दूसरी तरफ महानायक अमिताभ बच्चन थे। ब्रेकिंग न्यूज के नाम पर आज क्या हो रहा है? आज जब नौकरशाह, नेताओं और मीडिया तीनों पूंजीपतियों की जबरदस्त पकड़ है तो हमें नेतृत्व, नीति और नैतिक मूल्यों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। नए तरह की राजनीति, नए तरह के मीडिया और नए तरह के आंदोलन से ही नए तरह का नेतृत्व पैदा होगा। व्यक्ति से बड़ा संगठन और संगठन से बड़ा समाज होता है। मूल्य और मुद्दों की राजनीति जनांदोलन के मार्फत ही संभव है। एक साथ बौद्धिक, रचनात्मक, आध्यात्मिक और आर्थिक आंदोलन का सूत्रपात करना होगा। जनसमस्याओं के लिए संवेदना और नेतृत्व पर अंकुश के साथ-साथ सामाजिक बदलाव हेतु यथार्थ के आधार को भी समझना पड़ेगा। इसके लिए जमीन के मुद्दे जमीन पर, जमीनी कायकार्ताओं द्दारा जमीन पर लड़ेंगे। उपभोग का संकल्प निर्णायक होता है और इसी को बिंदु बनाकर आंदोलन की रूपरेखा तय होगी। लोकतंत्र, न्यापालिका और पत्रकारिता तीनों चाहती हैं कि अवैधानिकता बनी रहे और हमारी जेब गर्म होती रहे। परिचर्चा की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ पत्रकार अच्युतानंद मिश्र ने अपनी बात रखते हए कहा कि मीडिया में नैतिकता की बात समग्रता से होनी चाहिए, समाज के साथ राजनीति में भी नैतिकता का सवाल मौजूं है इसके बिना मीडिया में नैतिकता की बात बेमानी है। पाठकों और दर्शकों का भरोसा मीडिया से कम होता जा रहा है, इस भरोसे को बनाने का प्रयास हमें करना होगा। पाठकों और दर्शकों की सक्रिय भागीदारी से मीडिया में नैतिकता को पुनः स्थापित किया जा सकता है। परिचर्चा के अंत में गांधी शांति प्रतिष्ठान के महासचिव सुरेंद्र कुमार ने सभी का धन्यवाद किया और सभा समाप्ति की घोषणा की।

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