एनडीटीवी की बहस में जब नहीं गए दिलीप मंडल

dana majhiदीना मांझी वाले मसले पर जब बहस के लिए एनडीटीवी ने वरिष्ठ पत्रकार ‘दिलीप मंडल’ को बुलाया तो उन्होंने जाने से इंकार कर दिया.उनका मानना है एनडीटीवी समेत तमाम भारतीय न्यूज़ चैनल सर्कस की तरह हैं और सर्कस के रिंग में तमाशा दिखाना उन्हें पसंद नहीं.पढ़िए न्यूज़ चैनलों के संदर्भ में उनका स्टेटस –

दिलीप मंडल

दिलीप मंडल
दिलीप मंडल

इस तस्वीर पर बहस करने के लिए NDTV का मेरे पास फोन आया. मैंने विनम्रता से मना कर दिया कि मैं प्राइवेट चैनलों की बहस में नहीं जाता… मैं कभी कभार सिर्फ राज्यसभा टीवी के कार्यक्रमों में जाता हूं. लोकसभा टीवी पर जाता रहा हूं. बस. और कहीं नहीं. फॉरेन नेटवर्क को मैं इंटरव्यू देता हूं. कल अमेरिकी नेटवर्क- वाइस को इंटरव्यू दिया.

मैं कई बार सार्वजनिक तौर पर कह चुका हूं कि भारतीय प्राइवेट न्यूज चैनल इस लायक नहीं बन पाए हैं कि वहां कोई संजीदा बातचीत की जाए.

वे सर्कस हैं और मुझे सर्कस के रिंग में तमाशा दिखाना अच्छा नहीं लगता.

न्यूज चैनल देखना भी मुझे पसंद नहीं हैं. बावजूद इसके कि मैंने चार न्यूज चैनलों में काम किया है और तीन में तो निर्णय लेने वाले पदों पर रहा हूं. मेरे बनाए कई शो को अवार्ड भी मिले हैं. लेकिन मुझे न्यूज चैनल ठीक नहीं लगते.

इसके बावजूद चैनलों से ऐसे कॉल आते रहते हैं, इसलिए यह बात दोहरानी जरूरी है.




हमारे पास सोशल मीडिया का पावरफुल हथियार है और हम सब मिलकर जब उचित लगे, किसी मुद्दे को राष्ट्रीय बनाने या संसद में उठवाने की हैसियत हासिल कर चुके हैं.

दर्जनों मामलों में सोशल मीडिया में मुद्दा उठा, राष्ट्रीय बना और फिर टीवी ने फॉलोअप किया. टीवी पीछे पीछे चलता है. सोशल मीडिया आगे आगे.

सोशल मीडिया पर हम लाखों ओपिनियन मेकर्स के बीच हैं, जो लिखते – सोचते हैं. टीवी के दर्शकों के बारे में मैं भरोसे से यही बात नहीं कह सकता.

मुझे नहीं लगता कि मुझे टीवी पर जाकर अपनी विश्वसनीयता पर उन्हें सवारी करने का मौका देना चाहिए.
क्या इस बारे में आपकी कोई राय है? @fb

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.