आशुतोष को नौकरी तब छोड़नी चाहिए थी जब नेटवर्क18 में पत्रकारों का कत्लेआम हुआ था!

दिलीप खान

संदर्भ : आम आदमी के साथ बेबाक-बेख़ौफ़ आशुतोष!

आशुतोष अवसर के मुताबिक़ चोंगा ओढ़ते हैं। इसके कई उदाहरण दे सकता हूं। फ़िलहाल तो यही कहना चाहूंगा कि अगर आशुतोष को नौकरी छोड़नी ही थी तो उस वक़्त छोड़नी चाहिए थी जब उनके समूह ने 300 से ज़्यादा पत्रकारों पर गड़ांसा चलाया। ‘व्यवस्था-परिवर्तन’ के लिए AAP की रस्सी थामने की बजाय वो उस समय बिल में दुबके रहे। आम आदमी पार्टी ने उस वक़्त उन्हें आकर्षित नहीं किया, क्योंकि सक्सेस रेट का उन्हें अंदाज़ा नहीं था। अब सक्सेस की एक नुमाइश वो दिल्ली में देख चुके हैं इसलिए नौकरी को लात मारी। हालांकि भीतरखाने ये ख़बर चल रही थी कि उनकी नौकरी वैसे भी जाने वाली थी, अब नौकरी छोड़कर ‘आंदोलनकारी’ भी बन गए। इसे कहते हैं नीम चढ़े न फ़िटकिरी, रंग चोखा होय।

पंकज प्रसून

दिग्गज पत्रकार आशुतोष ने आम आदमी पार्टी को ज्वाइन करने के लिए टीवी 18 ग्रुप से इस्तीफा दे दिया…आज भले आशुतोष ईमानदारी और भ्रष्टाचार के सबसे बड़े झंडाबड़दार हो गए हों लेकिन आशुतोष ने उस दिन क्यों नहीं इस्तीफा दिया जब टीवी 18 ग्रुप के करीब 300 कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया। अगर आशुतोष उस दिन इस्तीफा दे देते तो निश्चित रूप से वो एक मिसाल बन गए होते लेकिन सांसद बनने की लालसा में दिए गए इस इस्तीफे को मैं अवसरवादिता का नाम दूंगा। अरविंद केजरीवाल जी, आपसे भी एक सवाल कि क्या आम आदमी पार्टी में ऐसे अवसरवादी और बड़े नाम वाले लोगों के लिए ही जगह है….आम आदमी पार्टी में आम आदमी कम और खास लोगों की लिस्ट लंबी-चौड़ी होती जा रही.

 

अरविंद के सिंह

आशुतोष की राजनीतिक पारी : राजनीतिक गर्द-गुबार में बहुत मौकों पर पत्रकार भी राजनेता बनने को उतावले हो जाते हैं…चंदूलाल चंद्राकर से लेकर एमजे अकबर तक तमाम लोग इसके उदाहरण रहे हैं…लेकिन राजनीति में उनका क्या हश्र हुआ है शायद उनको करीब से देखने वाले जानते हैं…शायद पत्रकारिता में अपनी बातें कहने की जितनी गुंजाइश है वैसी राजनीति में नहीं है….फिर भी राजनीति का भूत जब सिर पर सवार होता है तो हो ही जाता है….लेकिन पत्रकारों के भीतर का इगो कभी उनको बेहतर राजनेता नहीं बना पाता….उसके लिए तो जोंक सा चरित्र होना चाहिए..आशुतोषजी नयी पारी शुरू कर रहे है राजनीति की..ऐसी पार्टी से जिसे अभी पार्टी बनना है..फिर भी मेरी शुभकामनाएं कि वे पत्रकारिता के अपने अतीत को भुला कर एक अच्छे राजनेता बनें.

राजीव रंजन झा

अगर आपको आशुतोष Ashutosh Ashu जैसे लोग राजनीति में नहीं चाहिए, तो फिर जो गुंडे-मवाली हैं उन्हीं से खुश रहिए। आशुतोष जिस दल में गये, उससे सहमत-असहमत होना आपकी इच्छा है। लेकिन उनके कदम रखने से राजनीति कुछ बेहतर ही होगी, खराब नहीं।

(स्रोत-एफबी)

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