एबीपी न्यूज़ के ‘महाकवि’ पर वेद उनियाल की समीक्षा

mahakavi on abp news
एबीपी न्यूज़ पर महाकवि

-वेद उनियाल, वरिष्ठ पत्रकार-

एबीपी न्यूज़ के 'महाकवि' पर वेद उनियाल की समीक्षा
एबीपी न्यूज़ के ‘महाकवि’ पर वेद उनियाल की समीक्षा

एबीपी की पहल रचनात्मक है। बहुत सी कविताएं मन में बसी हुई है। लेकिन लगता था कि क्या आगे इन कविताओं को कभी सुना जा सकेगा। इन कविताओं की जिस संवेदना को हमने चात्र जीवन में महसूस किया था उसे आगे आने वाली पीढी महसूस करेगी। क्योंकि ढर्रा पूरा बदल सा गया । कुछ परिस्थितियां और कुछ हिंदी को नई कविता के नाम पर लोक लुभावन शैली से दूर करना। बैशक नई कविता ने ऊंचे आयाम गढे हो लेकिन वह न जाने क्यों लोगों से बहुत दूर चली गई।

आखिर वह तोड़ती पत्थर, हिमाद्री तुंग श्रंगु से , खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी, हठ कर बोला चांद एक दिन, इस पार प्रिए तुम हो मधु है , मैं नीर भरी दुख की बदली, मुझे तोड़ देना वनमाली, सखी वह मुझसे कह कर तो जाते , जैसी कई कविताएं जो मन को झकझोकरती थी जो पढते ही याद हो जाती थी वो कहीं खोने लगी थी। पाठ्यपुस्तकों में अगर कहीं थी तो नीरसता के साथ। क्योंकि उसके लिए माहौल नहीं बना । ये कविताएं कहीं ओझळ सी हो रही थी।

वेद उनियाल,वरिष्ठ पत्रकार
वेद उनियाल,वरिष्ठ पत्रकार

लेकिन एबीपी अब ऐसे दस एपिसोड के साथ है जिसे महाकवि नाम दिया गया है। उनमें इन कविताओं को आधुनिक साजों में धुनों के साथ प्रस्तुत किया जा रहा है। शनिवार और रविवार को दस बजे रात से प्रारंभ इस कार्यक्रम में इसे जब कुमार विश्वास प्रस्तुत कर रहे हैं तो फिर इसमें एक आकर्षण तो रहेगा ही। पर अच्छा यही है कि इस बहाने में हम एक समय के बेहद रुचिकर साहित्य से टीवी के पर्दे पर रूबरू होंगे। यह महकवि सीरियल दस कडियों का है। अपेक्षा कर सकते हैं कि साहित्य के पुराने सुंदर पृष्ठ फिर खुलेंगे।

कुछ गीत तो वाकई बहुत सुंदर गाए गए हैं। महादेवी निराला पंत प्रसाद आदि कवियों के साथ न्याय हुआ है बच्चनजी की कविता उस पार प्रिए तुम हो में जरूर धुन कमजोर पड गई। इसे बहुत भावकुता से गाया जाना चाहिए था। लेकिन उसे ऐसे गाया गया मानों यह वीर रस की कविता हो। लेकिन नीर भरी दुख की बदली, वह तोड़ती पत्थर, और तमाम कविताएं जिस साज और धुन को चाहती थी वह उन्हें मिली। अपने साहित्य और साहित्य की सेवा करने वाले उन मनीषियों की कृतियों को फिर से दोहराने नई पीढी को बताने और फिर अपने सुंदर शुभ उज्जवल को महसूस करने का वक्त है। ऐसे क्षणों में हम दूर नहीं होना चाहिए। जानना चाहिए कि हमारे श्रेष्ठ लोग क्या श्रेष्ट सृजन कर गए। क्या बात थी कि बच्चे उन कविताओं को तुरंत याद कर लेते थे। और जिंदगी भर नहीं भूलते थे।

महाकवि
रात – 10 बजे
एबीपी चैनल
शुनिवार और रविवार

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