समस्तीपुर से ताल्लुक रखनेवाले महाकवि आरसी की पुण्यतिथि

विकास कुमार

महाकवि आरसी
महाकवि आरसी

छायावाद के तृतीय उत्थान के कवियों में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले, साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित आरसी प्रसाद सिंह की पुण्यतिथि पर आज उनके पैतृक गांव समस्तीपुर जिले के एरौत (आरसीगनर) में समारोह आयोजित कर उन्हें श्रद्धा निवेदित की जा रही है। बिहार के समस्तीपुर जिले से ताल्लुक रखनेवाले हिन्दी एवं संस्कृत साहित्य के मूर्धन्य विद्वान महाकवि आरसी प्रसाद सिंह को ‘जीवन और यौवन’ के कवि भी कहा जाता है जिन्होने अपनी काव्यात्मक कला से नवीन काव्यधारा का परिपोषण और संवर्द्धन कर हिन्दी साहित्य की मरते दम तक सेवा की। बेवाक और स्वाभिमानी होने के कारण उन्होने राजनीतिक चाटुकारिता से खुद को अलग रखा जिससे कि उन्हें केन्द्र एवं राज्य सरकार द्वारा वह सम्मान नहीं मिल सका जिसके वे हकदार थे। हिन्दी साहित्य के छायावाद काल के द्वितीय चरण में गोपाल सिंह नेपाली, हरिवंश राय बच्चन, जानकी बल्लभ शास्त्री के समकालीन थे महाकवि आरसी प्रसाद सिंह, उनके साथ किसी ने न्याय नहीं किया। साहित्यकारों, जनप्रतिनिधियों एवं सत्ता-शासन से जुड़े किसी भी व्यक्ति ने महाकवि को उचित सम्मान दिलाने के लिए कोई लड़ाई नहीं लड़ी।

आरसी प्रसाद सिंह का जन्म 19 अगस्त 1911 को समस्तीपुर के एरौत गांव में तथा देहावसान 15 नवम्बर 1996 को पटना में हुआ था।
तब कौन मौन हो रहता है? जब पानी सर से बहता है, चुप रहना नहीं सुहाता है, कुछ कहना ही पड़ जाता है… एवं किसी बुद्धिजीवी कलम का नियंत्रण सरीखा नहीं है पाप कोई, उदर के लिए स्वाभिमानी हृदय के दमन सा नहीं अन्य संताप कोई, न वनराज को पिंजड़ा है सुहाता, न गजराज को मंत्र अंकुश गंवारा….जैसे ओजस्वी कविता महाकवि के स्वाभिमानी स्वभाव के होने का परिचायक है। महाकवि से जुड़े एक संस्मरण के मुताबिक 1956 से 1958 के बीच उन्होंने आकाशवाणी लखनऊ एवं आकाशवाणी इलाहाबाद में हिंदी कार्यक्रम अधिकारी के रूप में अपनी सेवाएं दी। इस दौरान आकाशवाणी के एक अधिकारी उन पर हमेशा हावी रहते थे। एक दिन उन्होंने अमर चेतना का कलाकार, शिल्पी पराधीन होना नहीं चाहता, भुवन मोहिनी सृष्टि का विधाता कभी दीन होना नहीं चाहता… लिखकर अपना त्यागपत्र उसे सौंप दिया।

महाकवि आरसी ने हिंदी साहित्य में बालकाव्य, कथाकाव्य, महाकाव्य, गीतकाव्य, रेडियो रूपक एवं कहानियों समेत कई रचनाएं हिंदी एवं मैथिली साहित्य को समर्पित की। शिक्षा पूर्ण करने के बाद आरसी बाबू की साहित्यिक रुचि एवं लेखन शैली से प्रभावित होकर बेनीपुरी जी ने उन्हें ‘युवक’ में अवसर प्रदान किया. बेनीपुरी जी उन दिनों ‘युवक’ के संपादक थे। युवक में प्रकाशित रचनाओं में उन्होंने ऐसे क्रांतिकारी शब्दों का प्रयोग किया कि तत्कालीन अंग्रेजी हुकूमत ने उनके ख़िला़फ गिरफ्तारी का वारंट जारी कर दिया था। आरसी बाबू साहित्य से जुड़े रहने के अलावा राजनीतिक रूप से भी जागरूक एवं निर्भीक रहे। उन्होंने अपनी लेखनी से नेताओं पर कटाक्ष करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। नेताओं पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने लिखा है- बरसाती मेंढक से फूले, पीले-पीले गदराए, गांव-गांव से लाखों नेता खद्दरपोश निकल आए। पर्यावरण एवं हरियाली के प्रति सदा सजग रहने वाले महाकवि पेड़-पौधों की हो रही कटाई से मर्माहत होकर लिखते हैं- आज अरण्य स्वयं रूदन करता है और उसका रूदन कोई नहीं सुनता, अरण्य का रूदन कोई सुनता तो उस पर भला कुल्हाड़ी ही क्यों चलाता?

महाकवि आरसी की प्रमुख रचनाओं में आजकल (1937) कलापि (1938), संचियता (1942), आरसी (1942), जीवन और यौवन (1944), नई दिशा (1944), द्वंद्व समास (1961), आरण्यक (1985), कथामाला (1966), युद्ध अवश्यंभावी (1991), चाणक्य शिखा (1992), बदल रही है हवा (1992), आस्था का अग्निकुंड (1992) और भारत सावित्री (1996) आदि शामिल हैं. 1938 में कलापी के प्रकाशन पर आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा था, कलापी का कवि मस्त है, सौन्दर्य को देख लेने पर बिना कहे नहीं रुकता, भाषा पर सवारी करता है. आरसी के काव्य ग्रंथों में नंददास (1953), संजीवनी (1964), कुंवर सिंह (1989), रजनीगंधा (1980) और कथा संकलनों में पंचपल्लव (1942), खोटा सिक्का (1942), कालरात्रि (1944), एक प्याली चाय (1945), आंधी के पत्ते (1945), ठंडी छाया (1956), वे तुतलाते थे (1989) आदि प्रमुख हैं. बाल साहित्य में भी उनका योगदान अविस्मरणीय है. चंदा मामा (1944), चित्रों की लोरियां (1953), ओनामासी (1953), रामकथा (1954), जादू की वंशी (1954), सोने का झरना (1985), कागज की नाव (1966), बाल गोपाल (1966), जगमग (1967), कलम और बंदूक (1981), पंचमेल (1996) आदि शामिल हैं।

आरसी बाबू के सम्मान बड़े-बड़े राजनीतिज्ञ विभिन्न प्रकार की घोषणा करते रहे लेकिन उस पर अमल नहीं किये जाने से उनकी जन्मस्थली एरौत (अब आरसीनगर) के लोग मर्माहित हैं। पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं रोसड़ा के सांसद रह चुके लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान ने अपने रेल मंत्रित्वकाल में रूसेड़ाघाट रेलवे स्टेशन का नाम महाकवि के नाम पर करने की ईच्छाशक्त्ति दिखाई थी लेकिन उनके रेल मंत्री पद से हटते ही इस योजना पर विराम लग गया। इसी प्रकार समस्तीपुर के वत्र्तमान सांसद महेश्वर हजारी ने भी महाकवि के गांव में उनकी प्रतिमा स्थापित करवाने के नाम पर 10 लाख रूपये देने की घोषणा की थी लेकिन उस पर अमल आज तक नहीं करने से आरसीनगर के लोगों का विश्वास राजनीतिक आश्वासनों पर से उठ चुका है। मैथिली साहित्य से जुड़े लोगों ने आरसी बाबू की स्मृति में उनकी प्रतिमा उनके ग्रामीणों को उपलब्ध कराया लेकिन राजनीतिक उपेक्षा के कारणवह प्रतिमा पिछले तीन वर्षों से गांव के उच्च विद्यालय के एक कमरे में बंद होकर धूल फांक रहा है।

विकास कुमार
विकास कुमार
परिचय : बिहार के समस्तीपुर जिले से ताल्लुक रखने वाले ‘विकास कुमार’ प्रतिभाशाली युवा पत्रकार हैं. कलम के धनी हैं और विविध विषयों में त्वरित लेखन में इन्हें महारत हासिल हैं. लेकिन राजनीति, मीडिया और विकास से जुडे मुद्दे इनका पसंदीदा विषय है. इनसे repro_media@rediffmail.com के जरिए संपर्क किया जा सकता है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.