मीडिया संस्थान में काम करने वाले एक युवा पत्रकार का मर्म

अज्ञात कुमार

फाइनली! मैंने तीर मार ही दिया। यह दिखाने के बाद कि अच्छा काम कर सकता हूं या नहीं। 1 महीने अच्छे काम की तारीफें लुटने के बाद। एक बॉस की पैरवी पर दूसरे बॉस का 2 महीने तक काम करने बाद, तीसरे बॉस की रजामंदी के बाद, चौथे बॉस ने फोन किया कि आप अपना बायोडाटा लेकर अभी हाजिर हों।

आनन-फानन में पहुंचने का बाद, 2 घंटे बैठाया। फिर कहा मैम से मिल लो। मैम ने भी अपना बहुमुल्य समय आखिरकार निकाल ही लिया। फिर पुछना शुरू किया ‘काम कर लोगे न? टाइम कैसे मैनेज करोगे? तुम्हारे कोई रिलेटिव तो नहीं हैं यहां (जिसने तुम्हारे लिए पैरवी की)? खैर। तुम यहां एक स्टूडेंट की ही तरह काम करो। क्योंकि एक एम्पलोई की तरह टाइम तो नहीं दे सकते हो न। दो गैरेंटर बताने होंगे जो तुम्हें अच्छी तरह से जानते हों। पैन कार्ड बनवाना होगा।’ इतनी फार्मलिटी के बाद कहा ‘ठीक है आप काम करते रहिए आगे देखते हैं।’

एक महिने बाद फिर चौथे बॉस के पास पैन कार्ड का रिसीविंग लेकर गया। लगा इसी पैन कार्ड पर सैलेरी मिलेगी। उन्होंने कहा ‘अभी लेटर नहीं आया है।’ मेरी समझ में नहीं आया। मैम से पूछा कि मैं अभी तक क्लेयर नहीं हुं कि मैं यहां हुं या नहीं। मैम ने कहा ‘तुम काम करो। इन सब चिजों की चिंता क्यों कर रहे हो? यहां फॉर्म बिना मतलब के नहीं भरवाया गया है। निश्चींत रहो। ‘

इस दौरान बाहर क्या हुआ? दोस्तों ने बधाईयों की लाइन लगा दी। बधाई देने वालों से ज्यादा पार्टी मांगने वाले मिले (यहां पार्टी मांग कर ही बधाई दी जाती है)। तारीफों की हवा युनिवर्सिटी तक पहुंची। जॉब लगवाने के लिए सभी ने अपनी-अपनी भुमिका का क्रेडिट लिया। संस्थान के काम के दौरान साईकल चोरी हो गयी। जॉब की बात सुनकर घर वाले पैसे देने में आनाकानी करने लगे। लगभग 2 महिनों तक एक टाईम का खाना, 7-8 घंटे पढ़ाई-लिखाई का टाईम गंवाया। क्लास जाना छोड़ दिया। संस्थान से घर (किराए का) और घर से संस्थान के लिए गाड़ी वालों को दो हजार के करीब किराया चुकाया। कभी किराया चुकाए बिना ही भागा। और तब, आखिरकार मुझे नौकरी मिल ही गयी । पगार 5 हजार 5 सौ रुपए …….. अरे रुकिए। नकद नहीं। एक दो दिन सदमें में रहने के बाद कि मानव संधाधन की कीमत क्या रह गयी है? मुझे एक सहकर्मी ने बताया कि हाथ में 5 हजार रुपए ही आएंगे। पांच सौ रुपए टीडिएस में कट जाएंगे।

और अब ! क्लेयर हुआ कि महीने के तीसों दिन काम करो। बाहर बड़े- बड़े ऑफिसर से पंगा। दिन-भर की भाग-दौड़। ऑफिस में बॉस की डांट । और घर से नौकरी करने के लिए पैसे मांगकर (क्योंकि दूसरे शहर में सिर्फ रहने और खाने के पीछे पांच हजार खर्च हो जाना कोई बड़ी बात नहीं) नौकरी कर सकते हैं लेकिन तभी जबकी आपको सहकर्मियों को खुश रखने, ऑफिस की पॉलिटिक्स को झेलने और सबसे महत्वपूर्ण चापलुसी की हुनर आती हो।

और सुनिएगा? चलिए आगे बढ़ते हैं। बिग बॉस ने जॉब के लिए लेटर दे ही दी। जॉब के लिए लेटर देते वक्त उन्होंने भी बधाई दी। और कहा इसी तरह काम करते रहिए। मुझे इस समय पता नहीं चला कि एक नए लड़के के सामने मेरी तारीफ क्यों की। जबकी उन्होंने तो मेरा काम आजतक देखा ही नहीं। जहां तक मेरा अल्पज्ञान कहता है यहां भी मेरा उपयोग किया गया था। उस नए लड़के को यह दिखाने के लिए कि यहां के एम्प्लॉई कितने कर्मठ हैं। आपको भी इसी लगने से काम करना होगा। उन्होनें जो लेटर मुझे दिया था उसमें कुछ शर्तें (बेरोजगारों के लिए गाली) भी थीं। शर्तें कुछ ऐसी थीं –

आप इसी तरह संस्थान के लिए वैसे काम जारी रखेंगे जो संस्थान को शुट करतीं हों।

आप के काम के लिए संस्थान सेलेरी के अलावा और कोई अन्य संसाधन उपलब्ध नहीं कराएगी।

संस्थान छोड़ने के एक महीने पहले आपको सुचित करना होगा। यह करार एक वर्ष का है। इस दौरान संस्थान किसी भी समय बिना सूचित किए आपको काम से हटाने के लिए स्वतंत्र है।

और आगे।

मेरी तबीयत अभी खराब है यह सोचते-सोचते कि मुझे यह काम करना चाहिए कि नहीं। हां इसलिए क्योकिे एक्सपीरिएंस चाहिए। आम लोंगों से, बड़े-बड़े अफसरों से जान-पहचान बढ़ेगी। घर वालों से इसी काम में अपने करियरके सपने दिखाकर हजारों रुपए ले लिए। अब इसी काम की शिकायत कैसे करुं गांव वापस जाने पर लोग कहेंगे कि गांव में बड़ा तेज बनता था। मैट्रिक फस्र्ट, इंटर फस्र्ट, बीए फस्ट्र्र, और अब एम ए फस्र्ट करने के बाद भी जब घर की ही रोटी तोड़ेनी थी तो इससे अच्छा गांव की फैक्ट्री में ही लड़कों के साथ पांच हजार की गार्ड की नौकरी कर लेता। कम से कम पढ़ने के लिए पटना और बम्बई का हवाला देकर परिवार वालों का लाखों का चूना तो नहीं लगाता। पुराने दोस्त कहेंगे कि तुम्हें तो अच्छी कम्पनी में काम मिला था अब यहां क्यों आ गए।

ना इसलिए क्योंकी आगे की पढ़ाई डिस्टर्ब होगी। इस पगार पर यहां काम करने, खाने, रहने, पढ़ने और आने-जाने के का इंतजाम करना बहुत मुश्किल। घर वालों से पैसे मांग नहीं सकता। वे कहेंगे पढ़ाई के लिए तो अबतक पैसे देते आ रहे थे। अब क्या नौकरी करने के लिए भी पैसे दें। इसी पगार के लिए छोटे-बड़े अधिकारियों, ‘दो नंबर’ लोगों से टेंशन मुफ्त में मिलेगी। दलालों साठगांठ से करो | ना को भी हां कहो। चुंकि एक प्रतिष्ठत कंपनी में काम करने वाला इम्लॉई हुं, अच्छी पर्सनालिटी मेंटेन रखनी होगी।

अभी तक मुझे एक फूटी कौड़ी नहीं मिली है। पता नहीं सैलेरी ले भी पाउंगा कि नहीं। निश्चिंत रहिए। मैं इतनी जल्दी सुसाइड नहीं करने वाला।

(एक युवा पत्रकार की व्यथा)

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