ब्वायज हॉस्टल में सात-सात अखबार और गर्ल्स हॉस्टल के लिए सिर्फ तीन

newspaper-दोनों ब्वायज हास्टल में सात सात अखबार और गर्ल्स हास्टल के लिए सिर्फ तीन..जबकि उन्हें ज्यादा जरूरत है राजनीतिक बनाये जाने की..अपन के देश में तो अनपढ़ आदमी भी चाय के ढाबे में जाकर अखबारी खबर पढ़ सुन आता है..

फिर लड़के तो कालेज कैंटीनों में अखबारी मगजमारी करते ही हैं..इसीलिए कम से कम महिला छात्रावासों में एक रीडिंग रूम जरुर बनना चाहिए.सभी अखबार आने चाहिए. अच्छी पत्रिकाएं मिलनी चाहिए..क्या माने हैं फिर महिला सशक्तिकरण के…..माहौल ही नहीं देंगे तो वह वही करेंगी ना जो परिवार ने उन्हें विरासत में दिया है…

अगर वाकई महिलाओं को मुख्यधारा से जोड़ना है तो उनकी उच्च शिक्षा को बढ़ावा देना बहुत जरुरी है..क्यूँ एमफिल पीएचडी के इंटरव्यूज से उन्हें बाहर किया जा रहा. सभी को एडमिशन दीजिये..सीटें बढाईये महिलाओं की..क्या हमें इस बात का भान है की यहाँ से रिजेक्ट की गयी लड़कियों की जल्द शादी कर दी जाए और रिसर्च का उनका सपना अधुरा रह जाए…फिर जुत जाएँ वह गृहस्थी की चक्की में…

महिलायें भावों से बहुत सशक्त हैं.सामाजिक भी सबसे ज्यादा हैं…उन्हें सिर्फ बौद्धिक सशक्तिकरण की जरूरत है…आर्थिक सशक्तिकरण के नाम पर अचार पापड़ नहीं बनाना हमें..बौद्धिक चेतना से लैस होंगी तो आर्थिक सशक्त आप ही हो लेंगी..
(एक विश्वविद्यालय के हॉस्टल की कथा. सुनीता भास्कर के फेसबुक वॉल से)

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