बिहार पुलिस की करनी, रंगकर्मी को पहले पीटा फिर झूठा मुकदमा दर्ज किया

अमितेश कुमार

बिहार पुलिस फिर चर्चा में है. लेकिन किसी उपलब्धि के लिए नहीं बल्कि अपनी काली करतूतों के लिए. बिहार पुलिस ने पुलिसगिरी में पहले रंगकर्मी प्रवीण कुमार गुंजन को बिना किसी अपराध के पीटा और फिर झूठा मुकदमा कायम कर दिया. अमितेश कुमार की जुबानी पूरी कहानी :

1.ऐसा क्या बिहार में ही होना था और वह भी बेगूसराय में! राज्य सरकार, केंद्र सरकार द्वारा सम्मानित और देश के उभरते हुए रंग निर्देशक प्रवीण कुमार गुंजन को बिहार पुलिस के एक निर्मम दारोगा और उसके साथियों ने इसलिये बेरहमी से पीटा क्योंकि उनकी दाढ़ी बढ़ी हुई थी, क्योंकि उन्होंने यह बताने की कोशिश की वे एक रंगकर्मी है. क्योंकि उन्होंने पुलिस अधिकारी को कहा की आप इसकी ताइद अपने आला आधिकारियों से कर सकते हैं. बहरी पुलिस ने तब तक पीटा जब तक वे अस्पताल जाने लायक नहीं हो गये, बिना किसी आपराधिक रिकार्ड के हाजत में रखा..सोचिये बिहार सरकार जिसको सम्मानित करती है उसके अधिकारी उसे अपमानित करते हैं, सोचिये कि आम नागरिक किस दहशत में रहते हैं, सोचिये कि बिहार के पुलिस अधिकारी के लिये एक रंगकर्मी की हैसियत नचनिये बजनिये से अधिक नही हैं. यह लिखते हुए अपने आप को संयत रखना कठीन है. यह सिर्फ़ उस पुलिस अधिकारी की बर्खास्तगी या निलंबन का मामला नहीं है. यह आम जनता के प्रति पुलिस के आपराधिक रवैये का मामला है. अपराधियों को पकड़ने में विफल निकम्मी पुलिस अपनी कुंठा इस तरह निकालती है. हस्पताल में पड़े गुंजन के साथ खड़े होइये न होइये पुलिस के इस रवैये के खिलाफ़ जरूर खड़े होईये.

2.जैसा कि रात में ही पता चल गया था कि गुंजन पर पुलिस केस दर्ज करने का दबाव बना रही है. अब सूचना मिली है कि पुलिस ने गुंजन पर केस दर्ज कर लिया है. और पूरी निर्लज्जता से अपने को बचाने का प्रयास कर रही है. चूंकि थाना उनका है इसलिये केस भी पुलिस के केस दर्ज करने का समय वही है जो गुंजन द्वारा केस दर्ज करने का समय है. सवाल यह है कि पुलिस ने पीटने की बजाए रात में पहले केस ही दर्ज क्यों नहीं किया? पुलिस द्वारा दर्ज केस में है कि गुंजन ने आठ-नौ आरक्षियों के सामने ही थाना प्रभारी को मारा और फरार हो गया. हकीकत यह है कि उस रात गुंजन कहता रहा कि उसे सांस की बिमारी है, वह रंगकर्मी है लेकिन शक्ति के नशे में चूर थाना प्रभारी मारते रहे. पुलिस यह भी कह रही है कि मोटरसाइकिल लेकर भागने के चक्कर में वह मोटरसाइकिल से गिरा और उसे चोट लगी. इसका मतलब यह है कि पीठ पर लाठियों के के निशान तो युं ही बन गये. पुलिस गुंजन को हाजत में रखने और बांड भरवाने के मामले को भी गोल कर रही है. पुलिस की अकर्मण्यता है कि वह झुठा केस भी ढंग से नहीं बनाती. गुंजन जिस हस्पताल में भरती हुआ वह थाने के सामने ही है. दिन भर उससे प्रशासन के अधिकारी मिलने आते रहे. प्रशासनिक अधिकारियों ने गुंजन की स्थिति को लेकर मीडिया में बयान दिया. सहारा समय बिहार की फूटेज आप देख सकते हैं जो हस्पताल में ली गई है. क्या कोई ऐसे फरार होता है कि थाने के सामने ही रहे?

एक साधारण रंगकर्मी को पुलिस ने इसलिये पीटा क्योंकि उसने अधिकारी से बराबरी के स्तर पर बात की. और अब पुलिस प्रशासन दोषी अधिकारी को दंडित करने की बजाय उसका अश्लील बचाव कर रही है और गुंजन पर झूठा मुकदमा दर्ज कर रही है. क्या बेगुसराय की एस.पी. महोदया का कल का आश्वासन, आश्वासन भर था? क्या बिहार पुलिस आम आदमी से अपने सलूक में बदलाव करने की बजाय गुंडागर्दी पर बनी रहेगी? मैं फिर कह रहा हूं सवाल केवल गुंजन का नहीं है पुलिस के रवैये का है. (स्रोत – एफबी)

इस मसले पर फेसबुक पर आक्रोश फूट पड़ा है और चारो तरफ बिहार पुलिस की थू – थू हो रही है. जनसत्ता के संपादक ओम थानवी लिखते हैं :

ओम थानवी, संपादक, जनसत्ता : हमारे यहाँ आंदोलन करने वालों की भी अपनी राजनीति होती है। कँवल भारती के हक में लेखक संगठन खड़े हुए। फिर बिखर गए। देश भर में आंदोलन छेड़ने की हुंकार भरी। फिर भूल गए। कोई आंदोलन नहीं हुआ। बल्कि भारती के साथ खड़े होने वाले वीरेंद्र यादव तो अखिलेश यादव के हाथों दो लाख रुपए का चेक भी ले आए।

अब बिहार में रंगकर्मी प्रवीण कुमार गुंजन के साथ सत्ता का शर्मनाक हिंसक बरताव हुआ है। तसवीरें छपी हैं डंडों से उधड़ी पीठ की। एक तसवीर में रंगकर्मी गिड़गिड़ा रहा है और नीतीश कुमार के वर्दीधारी उसे निहार रहे हैं, जैसे सामने कलाकार नहीं कोई भगोड़ा गुंडा हो जो अचानक उनके हाथ लग गया हो। दिल्ली में प्रेस क्लब या जंतर-मंतर पर अब क्यों नहीं जमा होते हुंकार भरने वाले संगठन?

ज्यादा हैरानी बिहार सरकार के आचरण पर होती है। पुलिस वाले को लाइन हाजिर कर दिया और सारे ऊलजलूल मुकदमे भी चलते रहेंगे? कहाँ हो नीतीश? अगर एक नागरिक पर सरेआम डंडे बरसाने वाले पुलिसकर्मी को उसकी औकात नहीं बता सकते तो धिक्कार है। लोग क्या गलत कहते हैं कि बिहार की पुलिस फिर निरंकुश हो चली?

अविनाश दास लिखते हैं :
वैसे तो कुछ भी नहीं होता, मगर कभी कभी हो भी जाता है। इस बार भी कोशिश करें। रंगकर्मी [Pravin Kumar Gunjan] पर पुलिसिया दमन के खिलाफ बेगूसराय (बिहार) के एसपी, कलक्‍टर और सूबे के डीजीपी को इतना एसएमएस करें, इतना एसएमएस करें कि उनके इनबॉक्‍स की सेटिंग क्रैश कर जाए। नंबर हम दिये दे रहे हैं, ये लीजिए… एसपी 09431800011, डीएम 09473191412, डीजीपी 09431602303 (अपना और अपने शहर का नाम लिखना न भूलें!)

गुस्‍सा फिर भी कम न हो, तो सीधे सीएम नीतीश कुमार को फोन लगाएं। उनका मोबाइल नंबर तो नहीं है, लेकिन लैंडलाइन ढेर है। ये लीजिए… दफ्तर का है (0612)-2215784, 2215886 और घर का है (0612)-2217741, 2223393, 2217741, 2222079, 2221567, 2221568 (प्रतिरोध के पक्ष में और क्‍या क्‍या खिदमत की जाए, आदेश करें।)

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