न्यूज चैनलों के ओपिनियन और एग्जिट पोल पर मत जाइए, अपनी अक्ल लगाइए

नदीम एस अख्तर
नदीम एस अख्तर
एग्जिट पोल्स के सारे आंकड़े दिल्ली विधानसभा चुनाव में फेल हो सकते हैं. एक बड़े चैनल ने आम आदमी पार्टी को सिर्फ 6 सीटें दी हैं और दूसरों ने 20 के अंदर ही रखा है. 16 से लेकर 18 सीट तक. लेकिन मेरा मानना है कि कुछ भी हो सकता है.

जैसा मैंने वोटिंग से पहले भी लिखा था कि शीला दीक्षित खुद अपनी सीट से हार सकती हैं. अरविंद केजरीवाल उन्हें कड़ी टक्कर दे रहे हैं. कांग्रेस की हालत पतली है, ये सब जानते हैं लेकिन बीजेपी के विजय रथ पर आम आदमी पार्टी लगाम लगाती दिख रही है. अब योगेंद्र यादव वोट प्रतिशत में 2.5 प्रतिशत के error के (न्यूज चैनलों के बताए वोट प्रतिशत) आगे-पीछे होने पर आम आदमी पार्टी को बहुमत मिलने की बात भी कर रहे हैं.

सच कहूं तो इस बार के दिल्ली चुनाव ने सबका माथा चकरा दिया है. सारे राजनीतिक पंडित कुछ भी बता पाने में असमर्थ हैं. अगर -आप- के लिए लहर थी, तो उसे कैसे मापा जाए. वैसे कल वोटिंग खत्म होने के ऐन पहले यानी शाम 4:30-5:00 बजे के आसपास दिल्ली के अलग-अलग बूथ्स पर वोटिंग के लिए लोगों की भीड़ -अचानक- जमा हो गई. बताया जा रहा था कि ये आंकड़ा एक लाख के आसपास है और शायद भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में ये पहली बार था कि देर रात तक वोटिंग होती रही. चुनाव आयोग ने इसकी इजाजत दे दी.

तो ये लोग कौन थे, जो देर शाम तक वोटिंग के लिए जुटे रहे. इतनी जागरुकता, वो भी वोटिंग के लिए. ये शुभ संकेत है और लोग कह रहे हैं कि देर तक हुई इस वोटिंग का फायदा अरविंद केजरीवाल की पार्टी को होगा. कल टीवी स्टूडियोज में चर्चा के दौरान जिस तरह कांग्रेस और बीजेपी के नेताओं की बॉडी लैंग्वेज थी, वो बता रही थी कि फीडबैक उन्हें भी है. अरविंद केजरीवाल दिल्ली चुनाव में कोई बड़ा धमाका करने जा रहे हैं. लेकिन निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता. ये देखना दिलचस्प होगा कि भ्रष्टाचार और जमी-जमाई राजनीतिक पार्टियों के खिलाफ लोगों में जो गुस्सा था, वो वोट में बदला या नहीं? और अगर लोगों ने समझ-बूझ कर अपने गुस्से का इजहार किया है तो -आप- की अच्छी-खासी सीटें मिल रही हैं.

लेकिन पेंच तक अटकेगा, जब केजरीवाल की पार्टी को सीटें तो ज्यादा मिल जाएंगी (शायद कांग्रेस के बराबर) पर वह अकेले अपने दम पर सरकार नहीं बना पाएगी. और जैसा कि कल योगेंद्र यादव ने कहा कि हम ना तो सपोर्ट लेंगे और ना देंगे. और अगर हालत ये रही कि -आप- के सपोर्ट के बिना सरकार ना बन सके तो फिर दुबारा चुनाव में जाने के सिवा कोई चारा नहीं होगा…

फिलहाल तो ये सब hypothetical बातें हैं क्योंकि किसी को नहीं पता, क्या होने जा रहा है दिल्ली में. एग्जिट पोल के आंकड़ों पर व्यक्तिगत तौर पर मैं यकीन नहीं करता क्योंकि इसकी sampling और methodology को मैं पर्याप्त नहीं मानता, सही prediction के लिए. एक बात और है. वोट देने के बाद जब कोई व्यक्ति बूथ से बाहर निकलता है और आप उनसे पूछते हो कि किसे वोट दिया, तो इस बात की 50 फीसदी आशंका है कि सामने वाला सच नहीं बताएगा. इसके कई कारण हैं. ऐसे में आपका एग्जिट पोल यहीं पर टांय-टांय फिस्स हो जाता है.

जब मैं inext, (दैनिक जागरण) कानपुर में था तो चुनाव पूर्व यूपी के युवा क्या सोचते हैं, इस पर खुद एक सर्वे करवाया था. एडिटोरियल के सहयोग से. यूपी के अपने सभी एडिशन में 100-100 युवाओं से बात की थी. प्रश्नावली बनाने से लेकर data compilation and analysis, जो कुछ अखबार में छपा, सबकुछ मैंने खुद किया था. इसमें प्रश्नावली बनाने पर मैंने बहुत सावधानी बरती थी ताकि सवाल ऐसा ना पूछा जाए जिससे आप जवाब देने वाले का opinion प्रभावित कर रहे हों. साथ ही सवाल पूछने का क्रम भी ऐसा रखा था कि जवाब देने वाला व्यक्ति किसी सवाल या अन्य फैक्टर से प्रभावित हुए बिना वही बात बताए, जो वह वास्तव में सोच रहा है. कोशिश यही थी. और भी कई बातों का ख्याल रखा गया था. रिजल्ट चौंकाने वाले थे. हमने युवाओं को 18 से 35 आयु वर्ग में अलग-अलग बांटा था और महिला-पुरुष युवा मतदाता का भी अलग खांचा बनाया था. सर्वे के नतीजों को हमने inext में तीन दिनों तक छापा और दैनिक जागरण ने अपने यूपी के सभी एडिशन में इसे एक दिन compile करके छापा. मेरे लिए भी यह नया और रोमांचक अनुभव था. इसमें मुझे मेरे एडिटर इन चीफ आलोक सांवल जी की काफी मदद मिली, जिससे यह सर्वे संभव हो सका.

खैर, तो मैं बात दिल्ली चुनाव और एग्जिट पोल पर कर रहा था. अगर सर्वे की data entry, sampling, compilation and analysis में चूक हो जाए तो रिज्ल्ट किस हद तक प्रभावित हो सकते हैं, इसका मैं एक real example देता हूं. दिल्ली में वोटिंग से पहले -इंडिया टीवी- और -आज तक- ने जो opinion poll दिखाया, उसके नतीजों में जमीन-आसमान का अंतर था. जहां तक मुझे याद है आज तक चैनल आम आदमी पार्टी को महज 8 सीट मिलने का दावा कर रहा था और इंडिया टीवी 18 सीट मिलने का. दोनों चैनलों ने अपने ढंग से सही सर्वे किया होगा लेकिन क्या कारण था कि दोनों के नतीजों में इतना बड़ा अंतर था???!!! 10 सीटों का अंतर काफी बड़ा होता है जिसे ignore नहीं किया जा सकता. कल भी एग्जिट पोल के नतीजों में यही हुआ. आज तक चैनल जहां आम आदमी पार्टी को महज 6 सीटें मिलने की बात कह रहा था वहीं एबीपी न्यूज और दूसरे चैनल AAP के 16-18 सीट मिलने की बात कह रहे थे. अब किसकी बात पर, किसके सर्वे पर यकीन किया जाए. वोटर वही हैं, विधानसभा क्षेत्र वही हैं, मूड या लहर वही है (यानी ये सब constant हैं) लेकिन नतीजे अलग-अलग हैं (variable हैं). अगर हम इसे किसी समीकरण में दिखाना चाहें तो मान लीजिए कि अगर R रिजल्ट है और V वोटर है व उसने किसे वोट दिया, इसे इंगित करता है तो मैथ्स में इसे इस रूप में लिख सकते हैं.

R= V into x. ये समझने के लिए सबसे आसान समीकरण मैंने बताया है. तो R & V स्थिर हैं लेकिन x यानी वोटर की राय बदल रही है, जिससे एग्जिट पोल के नतीजे बदल रहे हैं. और यही x को सही से ना मापने की हालत में सीटों में अंतर 8 से 18 तक का हो जाता है, जैसा हुआ. इसमें एक अहम चीज sampling का चुनाव और उसका साइज भी है, जो आपके रिजल्ट में बहुत बड़ा अंतर ला सकता है क्योंकि यह सीधे-सीधे फैक्टर ‘X’ को प्रभावित कर रहा है. ये एक मोटी-मोटी बात है जो मैंने बताई लेकिन सर्वे एजेंसियां और भी वृहद पैमाने व मापदंड अपनाती हैं, सो अलग-अलग एजेंसियों के सर्वे नतीजों में इतना भारी अंतर देखकर यही लगता है कि कहीं कुछ कमी रह गई है.

इतना ही नहीं, चाणक्य नामकी एक एजेंसी ने तो कल आम आदमी पार्टी को बहुमत मिलने की बात कह दी. तो अब लीजिए. अलग-अलग सर्वे एजेंसियों की मानें तो -आप- को 6 सीट से लेकर 18 सीट या फिर बहुमत मिल सकता है. यानी चित भी आपकी और पट भी आपकी. फिर काहे का आंकलन और काहे का सर्वे. भइया सबकुछ तो आपने ही कह दिया. कम सीटों से लेकर बहुमत मिलने की बात तक. और उस पर तुर्रा ये कि कल टीवी न्यूज चैनलों पर बड़े-बड़े एंकर-सम्पादक टाई-शाई पहने, कोर्ट की पॉकेट में रंग-बिरंगा रुमाल ठूंसे ये बताने-समझाने में लगे थे कि कौन हार रहा है और कौन जीत रहा है. वो ये भी बता रहे थे कि किस चैनल का सर्वे किसे-कितनी सीटें दे रहा है. और हम दर्शक थे कि बस बुड़बक की तरह उन्हें निहारे जा रहे थे और मन ही मन ये बुदबुदा रहे थे कि काश, अगर इतना ज्ञान हमें भी होता तो हम बड़े पत्रकार-सम्पादक बन जाते. हाय….खैर. टीवी का तमाशा रिजल्ट आने तक अभी चलता रहेगा (टीवी की भाषा में कई कारणों से ये जरूरी है) और अभी कई तरह के और ज्ञान मिलते रहेंगे. बतौर एक दर्शक मैं तो बस यही कहूंगा कि Opinion & Exit polls के आंकड़ों पर मत जाइए, अपनी अक्ल लगाइए. रिजल्ट आने दीजिए, दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा.. जय हो.

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