आजतक के दो साल का सफर इतना हसीन न होता, अगर इसमें मैनेजिंग एडिटर सुप्रिय प्रसाद का साथ न मिलता

विकास मिश्र, पत्रकार, आजतक

विकास मिश्र : आजतक में दो साल पूरे

2 जनवरी है। दो साल पहले आज ही के दिन मैंने आजतक ज्वाइन किया था। इन दो सालों में बहुत कुछ मिला। वरिष्ठों का स्नेह, साथियों का सहयोग और कनिष्ठ साथियों का भरपूर प्यार और साथ में जमकर काम करने का हौसला। मैंने यहां नीलेंदु सर की टीम में ज्वाइन किया था। वे यहां प्रोग्रामिंग हेड थे। वही मुझे आजतक लाए थे। जब उनसे पहली मुलाकात हुई, बात हुई, जांच-परख के बाद उन्होंने कहा-विकास मैं टीम को एक परिवार की तरह रखता हूं। अभी मेरे बाद रेहान अब्बास देखते हैं। तुम आओगे तो तुम्हारी पोजीशन उनके ऊपर होगी और मेरे बाद। हो सकता है कि टीम तुम्हें अपेक्षित सहयोग न करे। ये भी हो सकता है कि तुम्हारे आने से टीम में कुछ असंतोष हो, मैं चाहता हूं कि टीम में परिवार वाली भावना बनी रहे। मैंने उनसे कहा-सर मैं दूध से भरे गिलास में चीनी की तरह आऊंगा। दूध छलकेगा भी नहीं और मीठा हो जाएगा। ये वादा था मेरा नीलेंदु सर से और मुझे सुकून है कि वो वादा बड़ी खूबसूरती के साथ निभ गया। नीलेंदु सर का खूब आशीर्वाद और प्यार मिला। टीम पूरी ताकत के साथ एकजुट होकर काम करने लगी और कुछ ही दिनों में सबकी अलग पहचान बनी। नीलेंदु सर आजतक से चले गए। मुझे उनका प्यार और परिवार दोनों मिला था। और मैं गर्व के साथ कह सकता हूं कि मेरी टीम में दर्जन भर से ज्यादा लोग हैं, लेकिन इतनी एकजुटता, इतना प्यार, एक दूसरे का इतना सहयोग करने की भावना की दूसरी मिसाल आपको नहीं मिलेगी। काम को मिशन की तरह पूरा करते हैं, तो आनंद भी भरपूर उठाते हैं। और हां… दो साल का ये सफर शायद इतना हसीन नहीं होता अगर इसमें हमारे मैनेजिंग एडिटर सुप्रिय प्रसाद का साथ न मिलता।

(स्रोत- एफबी)

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