अब फिल्मों का बिज़नेस एक हफ्ते का हो गया है : तिग्मांशु धूलिया

दिनेश शाक्य

चंबल घाटी बन सकती है अमरीका की ग्रांड कैनीयर: तिग्मांशु धूलिया

TIGMANSHUतिग्मांशु धूलिया ! बॉलीवुड का एक ऐसा नाम है  जो किसी भी परिचय का मोहताज नही . बालीवुड के ज्यादातर डायरेक्टर विदेशी लोकेशन को पंसद करते है वही धूलिया का लगाव अपने देश की कुख्यात चंबल घाटी से है। चंबल घाटी के प्रति उनकी दीवानगी का आलम यह देखा जा रहा है कि चंबल घाटी की तुलना वे अमरीका के ग्रांड कैनीयर से करने से भी पीछे नही है लेकिन चंबल के बदलते मिजाज से परेशान धूलिया यह कहने से भी नही चूकते कि अगर समय रहते चंबल के लिये कुछ किया नही गया तो देश के बेहतरीन पर्यटन केंद्र को हम लोग खो देगे। मशहूर महिला डकैत फूलन देवी की जिंदगी पर बनी ख्यातिलब्ध फिल्म बैंडिट क्वीन की शूटिंग के दौरान चंबल से शुरू हुआ प्यार पानसिंह तोमर से होता हुआ बुलेट राजा के बाद रिवाल्वर रानी तक लगातार जारी है। तिग्मांशु की माने चंबल का प्रेम यही बताता है कि वो पिछले जन्म में यहाँ पर पैदा हुए हो लेकिन उसका असर इस जन्म मे भी नजर आता है। इटावा हिंदी सेवा निधि के सालाना 21 वे समारोह मे भाग लेने आने आये मशहूर फिल्मकार तिग्मांशु धूलिया से मौजूदा सिनेमाई परिवेश के अलावा कई अन्य मुददो पर वरिष्ठ पत्रकार दिनेश शाक्य से लंबी बातचीत हुई, उसी बातचीत के खास अंश।

 

 

सवाल: हिन्दी सेवानिधि की ओर से हिन्दी सेवी के तौर पर आपको सम्मानित किये जाने पर कैसा महसूस कर रहे है ?
जबाब: देखिये जाहिर सी बात है खुशी तो होगी किसी को होगी सम्मान मिलता है तो खुशी होती ही है और हम जैसे लोगो को जो पर्दे के पीछे रहते है उनको जब जनता के सामने आने का मौका मिलता है तो हम लोग मौके को छोडते नही है क्योंकि हम लोग एक्टर है नहीं. एक्टर को तो सब लोग देखते है हम को तो कोई देखता नहीं इसलिये हम कोई भी मौका छोडते नही है और बडा अच्छा लगता है . अपने ही प्रदेश उत्तर प्रदेश आने का जब भी मौका लगता है तो जरूर आता हू। 1986 मे मैने इलाहबाद छोड दिया था उसके बाद फिर मुंबई या दिल्ली ही रहा लेकिन जब भी मौका मिलता है तो मै वो मौका नही छोडता हू जब भी यहा आता हू अपनी भाषा सुनने को मिलती है और अपने लोगो से मिलने का मौका मिलता है अपना खाना खाने को मिलता है नया एक्सपीरियंस होता है।
सवाल: आज आपको हिन्दी सेवा निधि की ओर से सम्मानित किया है हिन्दी की जो दशा इस वक्त देखी जा रही है इस पर आप क्या कह सकते है ?
जबाब: मेरा तो देखिये यही मानना है कि हिन्दी को जो लोग लिखते है खास आप पत्रकार लोग,आप तो विजुयल मीडिया से है,जो लोग लिखते है हिन्दी वो या तो रचनात्मक हिन्दी,कविता,कहानिया,नावेल उन्होने इतनी जटिल बना दिया है भाषा को कि मै तो मेरी पैदाइश पढाई लिखाई सब कुछ इलाहबाद की है मेरी मां संस्कृत की प्रोफेसर है,हिन्दी मे ही बोलते थे सब कुछ,पर मुझे भी कभी कभी काफी दिक्कत आ जाती है वो पढकर हिन्दी,जब मुझे आ रही है दिक्कत तो बाकी लोगो को तो जरूरी आती होगी। जितना हिन्दी को सरल बनाया जायेगा उतना ही बेहतर रहेगा,प्रेमचंद्र जी,अमत लाल नागर या दुष्यंत कुमार जिन्होने (साये मे घूप खिली) इतनी पापूलर क्यो है इनको सब पढते है क्यो कि वो पठनीय है आप पढते है तो मजा आता है,समझ आता है बाकी हिन्दी को जो लोग लिखते है ऐसा लगता है कि पुलिस का सम्मन है। डर लगता है कि उसको पढते ही जो जब तक उसको सरल नही बनाया जायेगा हिन्दी को,हिन्दी जन जन तक पहुचेगी नही। रही बात हिन्दी सिनेमा की तो जितना हिन्दी सिनेमा हिन्दी को बढाने और लोकप्रिय बनाने मे सहयोग कर रही है उनका तो किसी का भी नही है सौ सालो से हिन्दी की फिल्मे बन रही है और साउथ मे भी रिलीज हो रही है नार्थ ईस्ट मे भी रिलीज होती है जहा पर लोग हिन्दी नही बोलते लेकिन कम से कम वो लोग हिन्दी बोल नही पाते हिन्दी को समझ पाते है।
tigmansu-2सवाल: अमूमन इस तरह की बाते उठती रहती है कि चंबल का जो ग्लैमर है वो केवल डाकुओ तक ही सीमित रहता है इसी वजह से फिल्मकार चंबल आते है,इसके अलावा चंबल मे किस तरह की संभावनाए आपको लगती है ?
जबाब: देखिये सरकार को कुछ करना चाहिए,जो चंबल घाटी है,मुझे लगता है,मैने बहुत पिक्चरे बनाई है चंबल मे,तीन पिक्चरो मे है चंबल की हालिया तस्वीर,मेरा सहायक उसने बनाई है फिल्म धौलपुर मे शूटिंग की है। मेरा दोस्त है जिसकी पिक्चर मे प्रोडयूस कर रहा हू रिवाल्वर रानी वो तो ग्वालियर का ही है उसने तो मुरैना और भिंड मे ही शूटिंग की है कुछ है चंबल मे,चंबल मुझे अपनी ओर खींचता है लेकिन अगले पांच सालो मे चंबल हो जायेगा खत्म,जो चंबल की घाटिंया है जिनको हम लोग रिवाइन्स बोलते है वो खत्म हो जायेगी अगर यही चीज किसी विदेश मे होता ना तो बहुत बडा टूरिस्ट स्पाट बन जाता अमेरिका मे जैसे ग्रांड कैनीयर है जहा पर दुनिया भर के लोग जाते है ग्रांड कैनीयर को देखने के लिये। चंबल भी किसी ग्रांड कैनीयर से कम नही है और चंबल नदी हिन्दुस्तान की सबसे अच्छी सबसे साफ नदी है इतनी प्यारी इतनी खूबसूरत नदी चंबल । इसकी कोई दूसरी मिसाल नही है। क्यो कि इसमे घडियाल है उसमे मगर है घडियाल और मगर जो पानी क्लीन होगा उसमे ही सरवाइव कर पायेगे। नही तो नही कर सकते। हम तो पीते थे चंबल का पानी। बिसलरी थी पूरी यूनिट भी थी हमको जब गांव वाले मठठा बना कर ,लस्सी बना कर चंबल नदी का पानी पीते थे आज तक कोई दिक्कत नही आई है ना ही कोई बीमार पडा इतनी सुंदर नदी जो है चंबल,इतनी खूबसूरत जगह है, चंबल सरकार जो भी तीन राज्य मिलते है मध्यप्रदेश,उत्तर प्रदेश और राजस्थान का बार्डर ऐरिया सभी राज्यो की सरकारो को कुछ करना चाहिए उसी घाटी पापुलरायिज करने के लिए टूरिस्ट स्पाट बनाने के लिए। बहुत सुंदर जगह है चंबल तो।

 

सवाल: आजकल तमाम फिल्म आ रही है उनमे हम इस तरह का देख रहे है कि एक केवल आइटम डांस के जरिये फिल्म चलाना चाहते है कितना सही मानते है आप ?
जबाब: नही,सिर्फ आइटम डांस से पिक्चर नही चलती है,देखिये क्या हो गया है जो व्यवसाय है फिल्म मेकिंग का वो बहुत ही अजीब सा हो गया है अच्छा भी है बुरा भी है पहले पिक्चरे 25,25 हफते चला करती थी 50,50 हफते चला करती थी अब पूरा बिजनस फिल्म का एक हफते का हो गया वो पहले तीन दिन,पहले तीन दिन मे आप दर्शको को जितना भी आकर्षित करके थियेटर मे ले आये तो उसमे आयटम डांस भी एक तरह का धी का इस्तेमाल करता है तो तीन दिन मे जितना कलेक्शन हो गया,हो गया एक हफते मे रिकवरी हो गया,पैसा बना लिया,तो सब चीजे है लेकिन फिल्म बनाने हम लोग तो छोटे शहर से गये हुए है बोम्बे मे,हम लोग पैसा कमाने के लिए नही आये है फिल्मो मे,हम लोग नाम कमाने के लिए फिल्मो मे आए है ताकि हमारे जाने के बाद हमारी फिल्मे जो यंग जैनरेशन बाद की जैनरेशन देखे,हम लोग इतिहास मे दर्ज होना चाहते है इस तरह की इसलिए ऐसी पिक्चरे बनाते है पैसा कमाने की फिल्मे तो नही तो कुछ और ही धंधा करता,मै तौ वकालत किये हुआ हूँ  मेरा पूरा परिवार ही वकालत किए है फिल्मो मे आने का ग्लैमर भी नही था सिर्फ यही था कि किसी भी तरह से इतिहास मे दर्ज होना चाहते है, इतिहास मे अगर आपको दर्ज होना है तो अच्छा काम करना पडेगा आइटम सांग से नही होगा।
सवाल: आप कभी कभी पर्दे पर भी आते है गैंग्स आफ वासेपुर मे देखा गया ,बहुत अच्छी आपने एक्टिंग की है जिसमे काफी अहम किरदार आपने अदा किया,मूल आधार से जुडी हुई फिल्मो का चलन बढा है ऐसी फिल्मो का लोग बखूवी देख रहे है ऐसी फिल्मो की जरूरत कितनी सही लग रही है ?
जबाब: फिल्मे जरूरत क्यो कि देखिये सिनेमा बदल रहा है वो लोग आकर फिल्मे बना रहे है मुंबई मे जो कि बोम्बे के नही है। अभी तक वो थर्ड जेनरेशन वाली,कुछ लोग बंगाल से आये,लाहौर से आये वहा भी फिल्म इंडस्टी थी सब लोग मुंबई आये बहुत अच्छी फिल्मे बनी उस समय पूरे राइटर हमारे यूपी से ही चाहे हजरत जयपुरी,मजरूह सुल्तानपुरी हो कैफी आमजी,सलीम जावेद हो सब के रूट मध्यप्रदेश यूपी सब यही के है अब उनके बच्चे बच्चो के बच्चे हो गये जो कि उन्होने सिर्फ मुंबई देखा है तो फिल्मो मे एक घटियापन आ गया है एक स्टैलमेंट आ गया है अब जाकर वो फिल्म मेकर वहा फिल्म बना रहे है जो मुंबई के नही है बाहर से आये है कोई दिल्ली से आया है कोई मुजफफरनगर से आया है मै खुद इलाहबाद से हू,कोई बनारस से आया है तो हम लोगो के पास अपना एक्सपीरियंस है लाइफ का,अपनी भाषा है,जो हमने एक्सपीरियंस किया है वो बहुत ही अलग है,छोटे शहरो मे जो एक्सपीरियंस होता है वो तो मुंबई मे थोडे ही है यहा तो जाति से लेकर मेरा सरनेम है क्या वो भी एक पहचान बन जाता है कि तुम ब्राहम्ण हो,ठाकुर हो कि क्या हो प्यार करने मे पचास दिक्कते आ रही है हमारे पास वो एक्सपीरियंस है चाहे एक लव स्टोरी का एक्सपीरियंस हो ,चाहे अपनी जाति को लेकर प्राउड फील करे या फिर दिक्कत हो सारी दिक्कतो से जूझ करके वो लडका आया है मुंबई तो हमारे पास एक्सपीरियंस ज्यादा है उस लडके के जो वनस्पति मुंबई मे पढा लिखा है।

 

सवाल: फिल्मो मे जो गाने आते है वो अल्पकाल के लिए सामने आते है लेकिन पुराने गाने लंबे समय तक काबिज रहते है ऐसा क्यो ?
जबाब: राइटिंग (हाथ से लिख कर बताते हुए) वो गाने लिखे बहुत अच्छे और सरल है जुबान पर चढते है आजकल गाने क्या वर्ल्डस है बता पायेगे गाने के नाम पर ढक चिक ढक चिक सुनाई देती है बस,शब्द कहा पर सुनाई देती है बस,शब्द कहा पर सुनाई देत है इसलिए।
सवाल: नया क्या आप देने वाले है अभी हाल मे ?
जबाब: अभी इसी महीने 29 नंबवर को मेरी फिल्म आ रही है बुलेट राजा वो देखिये आप।
सवाल: उसमे बुलेट राजा मे चंबल को लेकर नया क्या रखा हुआ आपने ?
जबाब: चंबल सेकेंड हाफ मे आता है बुलेट राजा मे,सैफ अली खान,जिमी शेर गिल,सोनाक्षी सिन्हा,विधुत जामवाल है तो विधुत जामवाल एक पुलिस आफीसर है जो इटावा मे तैनात है और बहुत तेज तर्रार और बहुत ही साहसी है तो उनका इंड्रोडक्शन मैने चंबल मे किया है,जो कुछ डाकुओ के सरेंडर कराने के लिए आते है वहा पर कुछ हो जाता है तो मैने बहुत लंबा चौडा स्वीकिंस रखा गया है जो इटावा मे शूट किया है।
सवाल: बुलेट राजा क्या 200 करोड के क्लब मे शामिल हो पायेगी ?
जबाब: अब मै यह कैसे कह सकता हू कि शामिल हो पायेगी या फिर नही या तो मै नही कह सकता हू,अभी फिल्म कंपलीट करके ही मै आया हू,फिल्म की मिक्सिंग पूरी कर चुका हूँ , मै तो बहुत भरोसे से हू, मुझे लगता है कि जैसी कि मै हमेशा बोलता हू कि मुझे गाली नही पडेगी।
सवाल: कुछ बल्गर फिल्मे आ रही है जो समाज की दिशा मोड रही है ऐसी फिल्मों  पर क्या आपकी राय है ?
जबाब: अब आप कह रहे है कि बल्गैरिटी आ गई है आइम श्योर आप ग्रैंड मस्ती फिल्म की बात कर रहे होगे अगर यह दिक्कत है आप लोगो को देखने ही नही जाना चाहिए ऐसी फिल्मे,आप लोगो की ही बदौलत उसने सौ करोड का बिजनेस किया है फिर आप लोग बोलते भी है कि बल्गर है और फिर देखते भी हो उसी बल्गर को जाकर उसमे दिक्कत क्या है जो बना रहा है वो सिर्फ पैसे के लिए बना रहा है उसने तो इतनी सस्ती पिक्चर बनाई आज सौ करोड का बिजनेस कर लिया है इसमे उनकी कोई गलती नही है गलती आप की है जो आपने ऐसी फिल्म देखी है।
सवाल: केरल के राज्यपाल निखिल कुमार ने आप से हिन्दी उपन्यास गुनाह का देवता पर फिल्म बनाने का मसविरा आपको दिया गया है क्या राज्यपाल की पहल पर अमल करेगे ?
जबाब: राज्यपाल महोदय के मसविरे को ना केवल सार्वजनिक तौर पर सुना गया है बल्कि व्यक्तिगत तौर पर भी उनसे अलग बात चीत हुई है जाहिर है राज्यपाल महोदय की ओर से रखी गई पहल पर अमल करने की कोशिश जरूरी ही करूंगा।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.