ज़ी न्यूज़ पर फाँसी के बहाने चेहरा चमकाते सुधीर चौधरी, अभिसार शर्मा की गलतबयानी

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जी न्यूज के कैमरामैन विक्रम बिष्ट की मौत के बहाने सुधीर चौधरी और उसका जी न्यूज एक बार फिर घिनौने तमाशे करने पर उतर आया है. संसद पर आतंकवादी हमले में एक गोली छिटककर विक्रम को लगी थी और कुछ साल बाद उनकी मौत हो गई. आज अफजल गुरु की फांसी के बाद चैनल ने उनके बच्चे नवीन बिष्ट और प्रिया बिष्ट को स्क्रीन पर लाकर उनकी मदद के लिए दर्शकों से गुहार लगा रहा है.

अफसोस होता है कि अभिसार शर्मा जैसे एंकर ने बहुत ही गलत ढंग से एंकरिंग की और कहा लोग इन बच्चों का पिता न होने पर मजाक उड़ाते हैं.

सुधीर चौधरी बार-बार दोहरा रहा है- प्लीज आपलोग इनदोनों बच्चों की मदद कीजिए..सवाल है कि क्या चैनल और सुधीर चौधरी इन बच्चों की सुध लेने के लिए अफजल गुरु की फांसी तक का इंतजार कर रहे थे, इसके पहले चैनल ने कितनी बार इनकी स्थिति जानने की कोशिश की और दूसरा कि जिस विक्रम बिष्ट ने चैनल के लिए काम करते हुए जान दे दी, चैनल को नहीं चाहिए था कि दर्शकों से मदद की अपील के बजाय अपने स्तर पर उसकी मदद करता.

इस कैमरामैन के बहाने सुधीर चौधरी अपनी इमेज चमकाने में जिस तरह से लगे हैं, उससे चैनल का तंग नजरिया अपने आफ बेपर्द हो जा रहा है.

मीडिया विश्लेषक विनीत कुमार की एक टिप्पणी. इसी मुद्दे पर विनीत कुमार की कुछ और टिप्पणियाँ :

आज लुटियन जोन पत्रकारिता दिवस है, रवीश कुमार(Ravish Kumar) की भाषा में लाल पत्थर पत्रकारिता. हर दस में से आठ फुटेज उसी इलाके की है..टीवी स्क्रीन से गायब हो चुके कई मीडियाकर्मी कॉलेज की अल्युमिनी मीट की तरह नजर आ रहे हैं. संसद हमले के समय जो आजतक में था, अब आइबीएन7 पर, सहारा का बंदा आजतक पर, जी न्यूज का बंद न्यूज24 पर..इस पर कभी अलग से स्टोरी करे मीडिया वेबसाइट कि जो अभी जिस स्क्रीन पर दिख रहे हैं वो अब कहां हैं ?

जिस तरह क्लीन शेव्ड अफजल गुरु आजतक पर दिख रहा है, शम्स को इंटरव्यू दे रहा है,आपको देखकर लगेगा नहीं कि ये तेरह साल पहले दिए गए इंटरव्यू का हिस्सा है..आजतक ने इसे दिखाकर अच्छा किया, थोड़े वक्त के लिए वो पल्प फिक्शन बनने से बचा रहा.

अफजल गुरु की फांसी की खबर का ये दूसरा चरण है. चैनलों पर ग्राफिक्स आने शुरु हो गए हैं ताकि बच्चे डोरेमॉन,पोकेमॉन छोड़कर इस गंभीर खबर का मजा ले सकें.,ये टीवी है भाई,सबकी बराबर से चिंता करता है..कुछ ऐसे रिपोर्टर अतीत को ऐसे दोहरा रहे हैं जैसे अखिल भारतीय रिपोर्ताज लेखन प्रतियोगिता में हिस्सा लेने जा रहे हों.एक अतिगंभीर खबर कैसे वीकएंड चिल्लाउट मिजाज की बनायी जाती है,देखते रहिए.

‘राष्ट्रवाद’ हमारे लिए एक ऐसी अफीम है जिसके आगे हम सरकार की क्रूरता, मीडिया का भ्रष्टाचार और देश की जर्जर हालत को चुपचाप न सिर्फ पचा जाते हैं बल्कि एक समय बाद वही जुबान बोलने लग जाते हैं जो सत्ता की भाषा रही है, मीडिया की चमकीली जुबान रही है. मीडिया विचारों और सोचने की प्रक्रिया का सफारी सूट इसी तरह बनाता है.

अफजल गुरु की फांसी का सीधा असर कल रिलीज होनेवाली फिल्मों पर भी पड़ेगा. कारण कि जब घर में ही न्यूज चैनलो पर अंतहीन राष्ट्रभक्ति की फीचर फिल्में जारी हो तो कौन इस गुलाबी ठंड में पीवीआर और सिंगल स्क्रीन के धक्के खाए.

आज इस देश का सबसे खुश मीडियाकर्मी- अर्णव गोस्वामी

डियर चैनल, इस तरह उदक-उदककर फांसी की सजा पर सरकार की पीठ इतनी भी मत ठोकिए कि उसकी इतनी मजबूत छवि बने कि 2014 के चुनावी विज्ञापन की आक्रमक ढंग से जरुरत ही न पड़े और आपकी रिवन्यू का बड़ा हिस्सा गोल हो जाए.

चलिए, आज सिर्फ टाइम्स नाउ ही नहीं है. आज चैनल जातिवाचक संज्ञा में राष्ट्रभक्त हो गए हैं. देखिए तो सही कि एक आतंकवादी और उसकी फांसी कैसे हमारे मीडिया को राष्ट्रभक्त बना देता है, शुक्रिया कांग्रेस की सरकार.आप ऐसे ही फांसी देती रहो, जहां आपकी सत्ता का विरोध हो डगमगाए, एक फांसी. आपको तो अंतहीन खजाना मिल गया.

प्रो.जगदीश्वर चतुर्वेदी के फेसबुक वॉल से –

खबर में अनुमान की महत्ता होती है लेकिन बेबकूफी की भी होती है यह देखना हो तो आज सुबह की अफजलगुरू को फांसी दिए जाने वाली खबर का टीवी कवरेज देखें और पाएंगे कि राजदीप सरदेसाई से लेकर अन्य चैनलों के संपादक फांसी दिए जाने के समय को लेकर किस तरह आंय-बांय-सांय बोल रहे थे।

NDTV इंडिया में चैनल के ज्ञानी राजनीतिक संपादक ज्ञान बघार रहे हैं कि अफजल गुरु की फांसी का फैसला राजनीतिक फैसला है ,और कल एक मीटिंग हुई जिसमें सोनिया भी थीं। सवाल यह है कि संवाददाता को क्या मालूम था कि अफजल गुरु कोकलफांसी दी जाएगी,यदि पता था तो खबर क्यों नहीं बनायी,असल में राजनीतिक संपादक बेसिर-पैर की हांक रहे हैं।

2 COMMENTS

  1. सुधीर चौधरी और अभिसार शर्मा जैसे पत्रकार उस नस्ल से ताल्लुक रखते हैं जो हिन्दुस्तान को जाने बिना , ज्ञान बखारने में माहिर माने जाते हैं ! ये पत्रकारों की वो नस्ल है, जो भारतवर्ष की किसी छोटे से शहर से पत्रकारिता कर नहीं उठे हैं बल्कि इन्हें दिल्ली में ही बैठे आकाओं ने बनाया है ! ना कि खुद की काबिलियत और दम पर ये आगे बढे है ! ये राज्यसभा के सांसदों की तरह हैं , जो ज़मीन सूंघे बिना सांसद बन जाते हैं ! पैसा फेंको और इन जैसे पत्रकारों को खरीद लो , यही सच है सुधीर चौधरी और अभिसार शर्मा जैसों का !

    • Aap ko bada pata hai kaun kiski kaabiliyat se agey bada hai? Comment karne se pehle soch Lena chahiye ki aapko kitna pata hai jiske upar aap tipani Kar rahe hai.

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