यशवंत सिन्हा की बगावत और बीजेपी की फिर आफत

बीजेपी में नाराजगी का दौर खत्म नहीं हो रहा है। राजस्थान में घनश्याम तिवाड़ी नाराज हैं, तो दिल्ली में यशवंत सिन्हा एक बार फिर से नाराज हो गए हैं। घनश्याम तिवाड़ी की बात कभी और करेंगे। फिलहाल बात सिर्फ यशवंत सिन्हा की। पिछली बार वे नितिन गडकरी को दोबारा बीजेपी अध्यक्ष बनाने के फैसले के खिलाफ बगावत पर उतरे थे। अब झारखंड के नए बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर नाराज हैं। सिन्हा ने धमकी दी है कि कार्यकारिणी की सदस्यता ही नहीं, लोकसभा की सदस्यता भी छोड़ देंगे। वैसे देखा जाए तो, राजनीति में एक बात को कई कई नजरियों से देखा जाता है। राजनीति में यह ज्यादा सटीक लगती है। लेकिन सिन्हा की राजनीति में बिल्कुल फिट बैठनेवाली कहावत है – कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना।

यशवंत सिन्हा की धमकी भी कुछ कुछ इसी तर्ज पर है। सीधे सीधे भले ही यह लग रहा हो कि वे राज्य की राजनीति से जुड़े फैसले से नाराज हैं। असल बात यह है कि मामला राष्ट्रीय स्तर पर चल रही गुटबाजी से जुड़ा हुआ हैं। पार्टी में कई नेता इसे समझ भी रहे हैं। सिन्हा ने सोमवार को सुबह हुई पार्टी के सीनियर नेताओं की बैठक में अपना गुस्सा जाहिर किया था। दिल खोलकर बात की। वे पुराने नेता है। नेता होने से पहले 1960 से लेकर लगातार 24 साल तक आईएएस ऑफिसर थे। समझदार आदमी हैं। हालात की कमजोरी और ताकत दोनों जानते हैं। कहां, कितना, किसके सामने क्या कहना है, और क्या करते हुए कैसे कहना है, यह भी समझते हैं। सो जहां जिस तरह से बोलना था, बोल दिया। मगर मीडिया के सामने सिन्हा ने कुछ नहीं कहा। जहां बैठक थी, वहां सिन्हा ने पार्टी नेताओं को धमकी दी कि वे कार्यकारिणी छोड़ सकते हैं और लोकसभा की सदस्यता भी। फिर निकलने से पहले लालकृष्ण आडवाणी के पांव भी छुए। सिन्हा को आडवाणी का करीबी माना जाता है। नितिन गडकरी को बीजेपी में जब अध्यक्ष के रूप में दूसरा टर्म देने का फैसला किया जा रहा था, तब भी सिन्हा ने ही बगावत का ऐलान कर दिया था। कहा था कि अगर गड़करी को फिर बनाया तो वे भी अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ेंगे। यह ऐलान करके सिन्हा ने पार्टी को मुसीबत में डालने के साफ संकेत दे दिए थे। उस वक्त भी पार्टी में यही माना जा रहा था कि वह सिन्हा आडवाणी की लाइन पर ही चल रहे हैं। इस बार भी सिन्हा ने जब गड़करी के पांव छूकर निकलने के लिए कदम बढ़ाए, तो सभी जान रहे थे कि राजनीति में इस तरह से नाराजगी जाहिर करने के बाद किसी के प्रति सम्मान व्यक्त करने के मायने भी क्या हुआ करते हैं।

वैसे, झारखंड के प्रदेशाध्यक्ष पद पर नियुक्त रविंद्र राय को अर्जुन मुंडा का नजदीकी माना जाता है। सिन्हा ने इसी को बहाना बनाकर कहा कि प्रदेश अध्यक्ष का फैसला करते वक्त उनकी नहीं सुनी गई। शाहनवाज हुसैन ने भले ही यह कहा कि उन्हें यशवंत सिन्हा की नाराजगी की कोई सूचना नहीं है। लेकिन कौन मानेगा। जब सबको पता चल गया, तो भी शाहनवाज को पता नहीं। इसका मतलब, वे कोई ढक्कन आदमी तो है नहीं कि उन्हें पार्टी के अंदर के मामलों की खबर नहीं हो। हालांकि यह साफ है कि सिन्हा की नाराजगी केंद्रीय नेतृत्व पर निशाना हैं। ऐसे में पार्टी के कई सारे नेता सिन्हा की इस नाराजगी को आडवाणी के हाल के उस बयान से भी जोड़कर देख रहे हैं, तो गलत क्या है जिसमें आडवाणी ने कहा था कि बीजेपी से भी देश का मोह भंग हो चुका है। जानने वाले जान रहे हैं कि बीजेपी में जंग सिर्फ अध्यक्ष पद या फिर पीएम पद की ही नहीं, हर लेवल पर वर्चस्व की है। पर, वर्चस्व की जंग जब स्व से निकलकर स्वाहा की दिशा में बढ़ रही हो तो मामला बहुत खतरनाक हो जाता है। बीजेपी को यह क्यूं समझ में नहीं आता। 

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.