क्यों ख़त्म होते चले गए ‘#आप’ और ‘#केजरीवाल’..?

केजरीवाल ,आम आदमी पार्टी और मीडिया
केजरीवाल ,आम आदमी पार्टी और मीडिया

केजरीवाल बोलते अच्छा है लेकिन काम ?
केजरीवाल बोलते अच्छा है लेकिन काम ?
2013-14 दिल्ली चुनावों में जोश-खरोश से लवरेज आप आने वाले दिल्ली चुनावों में लड़खड़ाते कदमों से संघर्ष करती दिखाई दे रही है.. क्यों..?

इसके जिम्मेदार हैं #केजरीवाल.?

2013 के विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी ने इतिहास रचा इस अप्रत्याशित जीत से केजरीवाल के साथ-साथ उनके साथी भी बोखला गए.. और कल तक सच्चाई और ईमानदारी कइ बात करने वाले लोग अब राजनीतिक फायदे के गुणा-भाग में लग गए..। और बोखलाए सिर्फ आपिये ही नही.. मीडिया के कुछ लोग भी बोखला गए थे…

आम आदमी पार्टी ने पहले तो विपक्ष में बैठने का कदम उठाने की बात की, लेकिन उसके बाद कांग्रेस के समर्थन से दिल्ली में सरकार बना ली। यानि जिसके खिलाफ लड़े उसी के साथ गठजोड़.. जनता से धोखा…

पार्टी ने दिल्ली की जनता के हितों को ध्यान मे रखकर सरकार बनायी तो इस गलती को पचाया जा सकता था, लेकिन पुलिस वालों के इस्तीफे की मांग को लेकर धरने पर बैठे केजरीवाल ने 49 दिन की सरकार चला कर छोड़ दी.. फिर जनता से धोखा..

#केजरीवाल ने स्टेडियम में शपथ ली, सड़क पर रात गुजारी, आम आदमी को परेशानी में डालकर सड़क पर धरना दिया और जब काम करने का मौका आया तो मैदान छोड़कर भाग खड़े हुए।

#आप पर लगातार आरोप लगते रहे, लेकिन विवादों से घिरे #केजरीवाल ना खुद का और ना ही पार्टी का बचाव करने में सफल हो पाए… उन पर कभी थप्पड़ पड़े तो कभी अंडे-टमाटर का भी शिकार पार्टी को होना पड़ा। इसी विरोध के चलते पार्टी के एक नेता का मुंह भी काला कर दिया गया। इन सब बातों से पार्टी मजाक बन गया।

#प्रधानमंत्री बनने का सपना

जब ‘आप’ ने भ्रष्टाचार के खिलाफ एक बड़ा अभियान छेड़ा तो सोशल मीडिया से लेकर आम आदमी के दिलों तक सभी जगह केजरीवाल छा गए। उन्हें लगने लगा कि वे प्रधानमंत्री पद के दावेदार हो सकते हैं और यहीं से उनकी हवा निकालनी शुरू हो गई।

#भ्रष्टाचार की जगह केजरी जुबान पर #मोदी विरोधी स्वर चढ़ गए। पानी-पी पीकर मोदी को कोसा गया।
केजरीवाल ने 400 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने की ठान ली। और गुजरात पहुंच गए मोदी के विकास कार्यों की समीक्षा करने.. केजरीवाल यहां सिर्फ मोदी के खिलाफ बोलते नजर आए।

#केजरी का #बड़बोलापन

‘आप’ को सबसे ज्यादा भारी केजरीवाल के बिना वजह दिये गये बयान ही भारी पड़े। आम चुनाव में इसी बड़बोलेपन के कारण केजरीवाल और कुमार विश्वास दोनों ने ही गलत सीटों का चुनाव किया, जिसका उन्हें खामियाजा भुगतना पड़ा। केजरीवाल का मोदी के खिलाफ लोकसभा चुनाव में उतरना और कुमार विश्वास का राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ना पार्टी के लिए नुकसानदायक साबित हुआ, कहीं मुह दिखाने लायक नही रहे..।

#तानाशाह केजरीवाल..

केजरीवाल खुद को पार्टी का सर्वेसर्वा समझने लगे, उन्हें लगा जो वो कहेंगे वो ही होगा.. बस इसी बात से पार्टी में गुटबाज़ी हुई.. पार्टी के लोग ही केजरी पर सवाल उठाने लगे

#मीडिया से पंगा

आप’ को मीडिया से दो- दो हाथ करना मंहगा पड़ गया। पार्टी जिस तरह से गलतियां कर रही थी मीडिया ने उन गलतियों को सबके सामने रखा। आप के मुखिया केजरीवाल और अन्य आप नेता मीडिया से बदतमीजी पर उतर आए.. जब मीडिया ने मोदी से जुड़ी खबरें ज्यादा दिखाई तो वे उस पर ही नाराज हो गए। आरोप लगाया गया कि मीडिया बिका हुआ है। मगर मीडिया अपना काम करता रहा..।

अब सवाल ये है कि क्या केजरी अपनी खोई हुई जमीन वापस पा पाएंगे या फिर ‘आप’ और केजरीवाल का राजनीतिक अंत हो जाएगा…? अगर कुछ करना है तो केजरीवाल को खुद को बदलना होगा.. अपने तरीकों को बदलना होगा.. राजनीति करनी होगी न कि बेवकूफी..
देखना होगा केजरी क्या खुद को और अपनी पार्टी को बदल पाएंगे.. या फिर हिंदुस्तान की राजनीति के इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाएंगे..?

@नकुल चतुर्वेदी,एंकर/रिपोर्टर

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