वर्ल्ड मीडिया की मुस्लिम परस्ती पर ट्रम्प की जीत का तमाचा

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-विष्णुगुप्त-

विष्णुगुप्त,वरिष्ठ पत्रकार
विष्णुगुप्त,वरिष्ठ पत्रकार

राष्ट्र-चिंतन: वर्ल्ड मीडिया की मुस्लिम परस्त चेहरे को अमेरिकी वोटरों ने क्यों काला किया? वर्ल्ड मीडिया की मुस्लिम परस्ती की गाल पर अमेरिकी मतदाताओं ने क्यो मारा तमाचा? क्या ट्रम्प को लेकर वर्ल्ड मीडिया पर मुस्लिम परस्ती हावी नहीं थी? क्या वर्ल्ड मीडिया इस्लाम और मुसलमानों का रक्षा कवच बन कर नहीं खडा था? क्या वर्ल्ड मीडिया ने ऐसी झूठ की दीवार नहीं खडी की थी कि बिना मुस्लिम सपोर्ट के हिलेरी या ट्रम्प राष्ट्रपति का चुनाव जीत ही नहीं सकते हैं? क्या वर्ल्ड मीडिया अरब-अफ्रीकी अमेरिकी मुस्लिम संगठन की उस जेहाद की पोल खोलने से क्यों बचता रहा जो अमेरिका में मुस्लिम परस्त राष्टपति की जीत चाहता था? वर्ल्ड मीडिया मुसलमानों और इस्लाम की उस कट्टरता को क्यों नहीं वोटरों के सामने रखा जो मस्जिदों के लाउडस्पीकरों से हिलेरी की जीत का अजान दिया जा रहा है? क्या मीडिया का काम अपने पसंदीदा को चुनाव जीताने का है? क्या वर्ल्ड मीडिया का काम मनविरोधी प्रत्याशी की छवि खराब करने की है? क्या वर्ल्ड मीडिया ने ट्रम्प की छवि खराब करने वाली प्रदर्शनियों को प्रमुखता से जगह नहीं दी थी? क्या वर्ल्ड मीडिया ने ट्रम्प के तथाकथित अश्लीलता को परोसने मेंबढ-चढ कर हिस्सा नहीं लिया था? क्या वर्ल्ड मीडिया ने ट्रम्प को विखंडनकारी और विध्वंसक नहीं कहा था? क्या वर्ल्ड मीडिया ने ट्रम्प को अमेरिकी एकता के खिलाफ नहीं बताया था? क्या वर्ल्ड मीडिया ने मुस्लिम आतंकवादी संगठनों के ट्रम्प के खिलाफ फतवों को ढकने-तोपने का कार्य नहीं किया था?

मुस्लिमों के खिलाफ अमेरिका
मुस्लिमों के खिलाफ अमेरिका

क्या वर्ल्ड मीडिया ने ट्रम्प समर्थक राष्ट्रवादियों की हंसी नहीं उड़ायी थी? क्या वर्ल्ड मीडिया ने पूरी दुनिया के मुस्लिम देशों और मुस्लिम आतंकवादी संगठनों और स्वयं सेवी इस्लामिक संगठनों द्वारा ट्रम्प के खिलाफ रूपये झोकने और वोटरों को प्रभावित करने की करतूत को ढका-तोपा नहीं था? क्या वर्ल्ड मीडिया ने ट्रम्प की तरह हिलेरी क्लिंटन की अश्लीलता को उछाला था? क्या वर्ल्ड मीडिया ने हिलेरी क्लिंटन के विवाहेत्तर संबंध की धज्जियां उड़ायी थी? वर्ल्ड मीडिया ने ट्रम्प की तो विवाहेतर संबंधों की धज्जियां जरूर उडायी थी पर हिलेरी क्लिंटन की विवाहेत्तर संबंधों की धज्जियां उड़ाने में वर्ल्ड मीडिया के सामने कौन सी परेशानी या लक्ष्मण रेख खडी थी? वर्ल्ड मीडिया ने हिलेरी क्लिंटन के पति बिल क्लिंटन की मोनिका लेवंस्की के साथ सेक्ससुअल संबंध को क्यों नहीं एजेंडा बनाया था? वर्ल्ड मीडिया ने हिलेरी क्लिंटन के ईमेल प्रकरण की धज्जिया क्यों नहीं उडाया था? क्या यह सही नहीं है कि इन्हीं प्रश्नों ने मीडिया को झूठा साबित कर डोनाल्ड टम्प को राष्ट्रपति नहीं चुनवाया है? अमेरिका ही क्यों बल्कि भारत और अन्य देशों की मीडिया भी मुस्लिम परस्ती पर इतना अंधा हो गया कि उसे जनता के रूझान दिखता ही नहीं है?

वर्ल्ड मीडिया जान बुझकर इस्लाम और मुसलमानों के खिलाफ जनमत को नकार रहा है, ढक-तोप रहा है, उसे हाशिये पर रखने के लिए वैचारिक और तथ्यहीन बईमानी कर रहा है? क्या ऐसा रूझान भारत में नहीं दिखा था? क्या नरेन्द्र मोदी की जीत मुस्लिम परस्ती और मुस्लिम कट्टरता के खिलाफ नहीं थी? क्या नरेन्द्र मोदी मुसलमानो को हिंसक और मुसलमानों को हम पांच और हमारे पच्चीस का प्रतीक नहीं बताते थे? क्या भारत की मीडिया ने नरेन्द्र मोदी की हार की घोषणा नहीं की थी? क्या भारत की मीडिया ने नरेन्द्र मोदी को मुस्लिम विरोधी और संहारक नहीं कहा था? क्या भारतीय मीडिया ने मुस्लिम वोटरों को जीत का आधार नहीं घोषित कर रखा था। यूरोप के एक महत्वपूर्ण देश फ्रांस के चुनाव नतीजे क्या थे? फ्र्रांस में मुस्लिम कट्टरपंथ के खिलाफ होलांद को जीत मिली थीं। फ्रास की मीडिया भी होलांद को नकार दिया था। ब्रिटेन में मुस्लिम विरोध की विसात पर थरेसा प्रधानमंत्री बनी है। थरेसा दावे के साथ कहती है कि ब्रिटेन को मुस्लिम कट्टरपंथियों से खतरा है। यूरोप में जहां भी शासक का चुनाव हो रहा है वहां मुस्लिम कट्टरता का जरूर एक बडा प्रश्न खडा रहता है। रूस में मुस्लिम कट्टरता के खिलाफ ब्लादमिर पुतिन डट कर खड़ा है और पुतिन सरेआम-खुलेआम कहता है कि मुस्लिम कट्टरपथियों और इस्लाम की अंधेरगर्दी समाप्त हुए बिना दुनिया में शांति आ ही नहीं सकती है, मुस्लिम आतंकवाद समाप्ह हो नहीं सकता है।

अब तो अमेरिकी वोटरों ने भी वैश्विक मुस्लिम विरोध पर मुहर लगा दिया है। ट्रम्प अगर मुस्लिम पक्षधर होता, टम्प पर अगर अनावश्यक मुस्लिम परस्ती हावी होती, अगर टम्प मुस्लिम आतंकवादी संगठनों का पक्षधर होता तो निश्चित मानिये कि वर्ल्ड मीडिया ट्रम्प को पसंद करता, वर्ल्ड मीडिया हिलेरी क्लिंटन की जगह ट्रम्प पर दांव लगाता, वर्ल्ड मीडिया ट्रम्प की जगह हिलेरी क्लिंटन को अश्लीलता के प्रतीक बताता। ट्रम्प तो मीडिया की कोई परवाह ही नहीं की थी। ट्रम्प ने यह देखने और समझने की भूल नहीं की थी कि उनकी प्रतिक्रया पर मीडिया भी जेहादी हो सकता है। ट्रम्प ने खुलेआम और डंके की चोट पर कहा था कि मुस्लिम आबादी धरती के कलंक हैं, मुस्लिम आबादी शांति के दुश्मन है, ये देशभक्त हो ही नहीं सकती है, मुस्लिम आबादी को हर देश में एक अलग देश चाहिए और इस्लाम चाहिए, संविधान और कानून इस्लाम की कसौटी पर मांगती हैं? अगर मीडिया स्वतंत्र होता, अगर मीडिया निष्पक्ष होता, अगर मीडिया पर मुस्लिम परस्ती हावी नहीं होती तो मीडिया यह कहता कि जो प्रश्न ट ट्रम्प ने उठाये हैं वह प्रश्न सामयिक हैं और इस प्रश्न में अमेरिका का भविष्य छिपा है मुस्लिम आबादी को इस पर आत्ममंथन करना चाहिए। दरअसल ट्रम्प अनुभवी नेता साबित हुए। ट्रम्प को मालूम था कि मीडिया उनकी बात सुन ही नहीं सकता है। अमेरिकी मतदाता मीडिया के खिलाफ जनादेश देंगे। यह समझ उनकी चाकचौबंद थी।

सबसे बडा प्रश्न यह है कि आखिर मीडिया का मुस्लिम शोर कमजोर साबित क्यों हुआ? मीडिया का मुस्लिम शोर मतदाताओं को प्रभावित क्यों नहीं कर पाया? वास्तव में आज अमेरिकी दो भागो में बंटे हुए है। एक मुस्लिम और दूसरा गैर मुस्लिम। अमेरिकी वर्ल्ड टेड सेंटर पर हुए इस्लामिक हमले के बाद अमेरिका में यह विभाजन तेजी के साथ बढा है। मुस्लिम कट्टरपंथी अपने को शुद्ध रूप से अमेरिकी नागरिक मानने से इनकार करते हैं, अपने को अमेरिकी संविधान और अमेरिकी कानून से उपर मानते हैं। मुस्लिम कट्टरपंथी इस्लामिक आबादी को संविधान और कानून इस्लाम की कसौटी पर चाहिए। इसके लिए ही ये हिंसक होते हैं, इसके लिए ये आतंकवादी होते हैं। सबसे बडी बात तो ये हैं कि ये अपने आप को अरब, पाकिस्तानी और अफ्रीकी मुसलमान कहते हैं। सबसे बडी समस्या अजान को लेकर है। दिन में कमसे कम पांच बार लॉडिस्पीकरों से होने वाले अजान ने ध्वनि हिंसा की असहनीय सक्रियता जारी है। इस कारण अमेरिकी समाज में चिंता पसरी हुई है। अमेरिकी राष्ट्रवादियों ने यह देखा कि अगर हिलेरी को समर्थन हासिल हुआ तो फिर आक्रामक इस्लाम को नियंत्रित करना मुश्किल होगा, अमेरिका भी पाकिस्तान, अफगानिस्तान, सीरिया और इराक के संस्करण में तब्दील हो सकता है। मुस्लिम आबादी के खिलाफ अमेरिका के सिख, हिन्दू और अन्य आबादी भी ट्रम्प के साथ खडी रही थी।

सबसे बडी बात यह है कि भारत में जिस प्रकार नरेन्द्र मोदी की जीत को मीडिया ने अनावश्यक माना था, भारतीय मीडिया ने जिस प्रकार से आज तक नरेन्द्र मोदी की जीत को स्वीकार नहीं की है उसी प्रकार से अमेरिकी और वर्ल्ड मीडिया भी डोनाल्ड ट्रम्प की जीत को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। जेनएयू संस्कृति के मुट्ठी भर लोग जिस तरह से नरेन्द्र मोदी को खारिज करते हैं और मीडिया ऐसे तत्वों के साथ सहचर हो जाता है उसी तरह की स्थिति अमेरिका में बनी है। अमेरिका में कुछ जगहों पर ट्रम्प की जीत के खिलाफ प्रदर्शन हुए हैं और मीडिया यह कह रहा है कि ट्रम्प की जीत से अमेरिकी नागरिक नाराज है। भारत में रविश कुमार जैसे मुस्लिम परस्त पत्रकार एनडीटीवी के कार्यक्रम में कह रहा है कि ट्रम्प की जीत से अमेरिकी नागरिक नाराज हैं। यह कैसा तर्क है? बहुमत से जीताने वाले अमेरिकी नागरिक की खुशी को गोन कर मुट्ठी भर विरोधी लोगों के गुस्से को हवा दिया जा रहा है। मीडिया की यह करतूत जनादेश विरोधी है। फिर भी रविश कुमार जैसे मुस्लिम पक्षधर पत्रकार अपने आप को स्वतंत्र और निष्पक्ष कहने की करतूत से बाज नहीं आते हैं।

अमेरिका ही नहीं बल्कि भारत और अन्य वर्ल्ड की मीडिया को अब यह सच्चाई स्वीकार कर लेनी चाहिए कि दुनिया भर में जहां भी शासक का चुनाव होगा वहां पर मुस्लिम परस्ती के खिलाफ हवा चलेगी और मुस्लिम परस्ती पर सवार नेता की हार होनी तय है। दुनिया तेजी के साथ मुस्लिम और गैर मुस्लिम प्रश्न पर विभाजित हो रही है।अमेरिका, यूरोप और भारत में इसकी सच्चाई साफतौर पर देखी जा रही है। मीडिया को मुस्लिम परस्त कदापि नहीं होना चाहिए। इस्लाम और मुसलमानों की हिंसा, आतंकवाद और घृणा को कसौटी पर लेना ही होगा। अगर नहीं हो फिर मीडिया की विश्वसनीयता और गिरेगी। अमरिकी मतदाताओ ने जिस तरह से मुस्लिम परस्त मीडिया को तमाचा मारा है उसी तरह अन्य देशों में भी मीडिया को जनादेश के चाटा का दंश झेलना पड सकता है।

लेखक परिचय : लेखक मूल रूप से समाजवादी और झारखंड आंदोलन के सेनानी रहे हैं। अखबारों में संवाददाता से लेकर संपादक तक की यात्रा तय की है। फिलहाल ये मुस्लिम परस्त राजनीति और मुस्लिम परस्त पत्रकारिता के खिलाफ संघर्षरत-अभियानी हैं। इनसे संपर्क इस मोबाइल नंबर 09968997060 पर किया जा सकता है।

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