दिल्ली की जनता ने अपना काम कर दिया अब आम आदमी पार्टी की बारी

आलोक कुमार

जनादेश बड़ा होता है तो जनाकांक्षाएँ भी बड़ी होती हैं

आजतक पर पुण्य प्रसून की क्रांतिकारिता
आजतक पर पुण्य प्रसून की क्रांतिकारिता

दिल्ली में आम आदमी पार्टी की इस ‘सुपर लैंड-स्लाईड विक्ट्री’ से ये स्पष्ट है कि जनता के मिजाज और नब्ज को केजरीवाल और उनकी टीम ने बाकी ‘सबों’ से बेहतर भाँपा . इस ‘सब’ में केजरीवाल विरोधी पार्टियाँ भी हैं , मीडिया का वो तबका भी है जो आम आदमी पार्टी की जीत का आंकलन तो कर रहा था लेकिन उसे भी ‘ऐसी’ जीत की उम्मीद नहीं थी , मीडिया का वो तबका भी है जिसे आम आदमी पार्टी की जीत का संशय था और संशय की वाजिब वजहें भी थीं ,इसमें मैं भी शामिल था . सच कहूँ तो किसी को ऐसी उम्मीद नहीं थी , यहाँ तक की केजरीवाल को भी नहीं और इसे केजरीवाल ने स्वीकारा भी .

बेशक दिल्ली के नतीजों ने ‘सबों’ का चौंका दिया , आज फिर से ये साबित हो गया कि लोकतन्त्र में जनता हतप्रभ करने वाले परिणाम देती है , भले ही आगे चल कर ‘वो (जनता)’ खुद ही ठगी क्यूँ ना जाए !! चुनावों की यही अनिश्चितता ही लोकतन्त्र के लिए ‘ संतलक (leveler)’ का काम करती है . दिल्ली में आज जैसे नतीजे आए हैं ऐसे नतीजे देश की चुनावी –संग्राम में पहले भी आए हैं और गौरतलब है कि जनता ने अपने नतीजे खुद बदले भी हैं .अप्रत्याशित नतीजों (अपार बहुमत) के अपने “प्रतिक्षेप –प्रतिघात (repercussions)’ भी होते हैं और ऐसे नतीजे ज्यादा‘आघात योग्य- सुभेद्य (vulnerable)’ होते हैं , ऐसा खुद दिल्ली की जनता ने मात्र नौ महीने के अल्पकाल में ही साबित कर दिया और इस को ध्यान में रखकर आम आदमी पार्टी को कुछ ज्यादा ही सजग व सचेत रहने की जरूरत है.

arvind-kejriwil-winजब जनादेश बड़ा होता है तो जनाकांक्षाएँ भी बड़ी होती हैं , समीक्षा- संवीक्षा (scrutiny) भी ज्यादा होती है और ‘एक छोटी सी भूल’ भी ग्राफ को तेजी से नीचे गिरा देने का काम करती है . राजनीति भी एक ‘खेल’ है और जैसा की खेलों में होता है कि “अगर एक मैच में आपने दोहरा –तिहरा शतक लगाया तो अगले मैच में भी जनता –प्रशंसक –समर्थक को कम से कम शतक से नीचे कुछ और नहीं मंजूर होता है .”

अपार बहुमत अपार जिम्मेवारियों और आकांक्षाओं के भारी बोझ के साथ आता है और इसी बोझ के दबाब में विश्वास के टूटने का डर ज्यादा भी होता और विश्वास टूटता भी जल्द है जैसा कि भाजपा के साथ दिल्ली में हुआ . अब ये देखना दिलचस्प होगा कि आम आदमी पार्टी इस ‘भारी बोझ’ के साथ कैसे आगे बढ़ती है ! उम्मीद है आम आदमी पार्टी अपनी पिछली गलतियाँ नहीं दुहराएगी और दिल्ली और सिर्फ दिल्ली ही उसकी प्राथमिकता होगी !!

मेरे विचारों में ये जनादेश दिल्ली का दिल्ली के द्वारा दिल्ली के लिए है ना की ये देश का जनादेश है . कहीं ऐसा ना हो कि पिछली बार की तरह जनादेश को देखकर आम आदमी पार्टी अति-उत्साह और अतिशय महत्वाकांक्षा में फिर से पूरे देश में अपने पाँव पसारने की भूल कर बैठे !! आम आदमी पार्टी और उनके सलाहकारों , रणनीतिकारों और शुभ-चिंतकों को चुनावी –राजनीति का ये फलसफा ध्यान में अवश्य में रखना होगा कि विधानसभा चुनावों में स्थानीय मुद्दे अहम भूमिका निभाते हैं , राजनीति के राष्ट्रीय पटल पर छाने की मुहिम से पहले अपने आप को देश – क्षेत्र के पटल पर साबित करना होता है और अपने साबित-सत्यापित प्रत्यायककों ( credentials) के साथ ही आप ‘देश’ के सामने जा सकते हैं या खुद का व्यापक आधार व पहुँच बनाने की कवायद की शुरुआत कर सकते हैं .

जनता ने तो अपना काम कर दिया अब आम आदमी पार्टी पर दिल्ली के संदर्भ में अपने द्वारा किए बड़े-बड़े वादों पर खरा उतरने का समय है . अब तो ये वक्त ही बताएगा कि दिल्ली की जनता को इस अपार समर्थन के एवज में आम आदमी पार्टी से क्या मिलता है ! जनता के पास ‘जो’ था उसने आम आदमी पार्टी को दे दिया . विपक्ष नाम की चीज आम आदमी पार्टी की राह में रोड़ा नहीं बनने जा रही है क्यूँकि जनता ने विपक्ष रहने ही नहीं दिया है और ये तय है कि अब अपनी नाकामियों का ठीकरा विपक्ष पर ना तो फोड़ा जा सकता है और अगर फोड़ने की कोशिशें हुईं भी तो जनता उसे स्वीकार नहीं करने वाली . जैसा जनादेश मिला है उसे देखते हुए भाजपा नीत केंद्र की सरकार भी केजरीवाल नीत दिल्ली की सरकार के साथ नकारात्मक रवैया रखने के पहले सौ बार जरूर सोचेगी क्यूँकि पाँच साल बाद ही सही भाजपा दिल्ली में जरूर वापसी करना चाहेगी और बिहार , बंगाल और उत्तर प्रदेश की आगामी चुनावों को ध्यान में रखकर दिल्ली की सरकार के साथ सहयोग ना कर जनता के बीच कोई नकारात्मक संदेश नहीं देना चाहेगी . इसमें कोई शक नहीं कि दिल्ली सरकार के साथ केंद्र की सरकार के रवैये पर पूरे देश की नजर रहेगी और ये केजरीवाल के लिए एक बड़ा एडवांटेज (advantage) होगा केंद्र पर दबाब बनाने में .

आलोक कुमार ,
(वरिष्ठ पत्रकार व विश्लेषक ),
पटना ।

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