सक्सेस का ‘बिग बॉस’ सिंड्रोम!

मनवीर के रिसेप्शन की तस्वीर

टाइम्स ग्रुप जैसे अख़बार की सीनियर पद पर रहने वाली इनटेरटेनमेंट एडिटर Namita Joshi ने बिग बॉस 10 में भाग लेने वाली एक पार्टिसिपेंट को फ़ोन किया। अमूमन बड़े-बड़े स्टार से सीधे बात करने वाली नमिता जी को कहा कि मेरा मैनेजर आपसे बात करेगा। उनके लिए यह हैरानी भरा पल था।

मैंने इस सिंड्रोम को करीब से देखा है। सक्सेस के 20-20 फारमेट के दोनों शेड में। “औकात” से अधिक जीने की तमन्ना इन्हें 15 मिनट का फेम दे देती है। अब वह पार्टिसिपेंट किस हैसियत से अभी मैनेजर रखी है यह समझ पाना कठिन है। यह आम से खास बनने की खतरनाक चाहत ही तो है। आज जब बिग बॉस विजेता मनवीर नॉएडा आए तो लोगों का पागलपन ठीक ऐसा ही था जैसा नरेन्द्र मोदी,सलमान,शाहरुख जैसों के लिए होता है। सैकड़ों गाड़ियां का काफिला। लोगों का का हुजूम-जुनून ऐसा कि बड़े-बड़े स्टॉर को जलन हो जाए। “लार्जर दैन लाइफ” जिंदगी बस यूँ 15 मिनट के फेम में मिल गयी।

लेकिन कुदरत का कानून है इस जिस तेजी से इनकी शोहरत आती है उतनी तेजी से ही जाती भी है। अगर अंदर नेचुरल वास्तव में शोहरत को एबजार्ब करने की कूबत रहे। वरना कुछ दिन ऐसा चल भी जाता है।फिर शुरू होता है कुंठा का दौर।

दस साल पहले देखा था क्रिकेट खिलाड़ी प्रवीण कुमार को मेरठ में। एक कामयाबी और उसके बाद बदला अंदाज था प्रवीण कुमार कका। शराब-शबाब- गाली-गलौज उनकी जिंदगी हो गयी। फिर उनकी जिंदगी में आया डिप्रेशन का दौर। इलाज हुअा। देश में सबसे बेहतरीन स्विंग करने वाले प्रवीण कुमार अपने शोहरत को काबू में नहीं रख सके।
कुछ साल पहले एक और रियलिटी शो के स्टॉर को नजदीक से देखा है। उसे जिताने में उसके पिता ने लाखों रुपये गंवा दिये। तीन साइबर कैफे बुक कर दिये गये थे। बेटा जीत भी गया। ऐसा अकड़ा कि बाप को भूल गया। तुरंत एक गर्ल फ्रेंड मिल गयी। लिव-इन रहने लगे। 1 साल में उसका भूत उतरा। पैसे समाप्त हो गये। अब काम नहीं मिल रहा। अब एक कंपनी में काम कर रहे हैं। डिप्रेशन के दौर से गुजरे।

मतलब सफतला पाना कठिन है। लेकिन उससे बहुत कठिन है उस सफलता को बनाए रखना। इन उदाहरण का मतलब नहीं कि सभी ऐसे होते हैं। जेनेरलाइज नहीं कर रहा। यह एक वर्ग है। दूसरा वर्ग भी है जो सफलता के मायने समझता है। संजीदा होता है। पिछले दिनों कपिल शर्मा शो के डॉक्टर गुलाटी सुनील ग्रोवर से मिला। उसने सफलता पर कहा था-हम जब हवा में उड़ते हें तो अक्सर झटके खाते रहने चाहिए ताकि पांच जमीन पर रहे। पांच मिनट में पांच बार सर के संबोधन के साथ बात करते गये। उनका सर संबोधन उनकी विनम्रता को दर्शाता है न कि सामने वाले का वजन। ऐसे कई और हैं। इंसान के लिए बुरे वक्त में घबराना नहीं,अच्छे वक्त में पगलाने का मंत्र जो निभा पात है,सक्सेस उसके घर ही अधिक दिनों तक रहती है।

“नरेंद्र नाथ,पत्रकार”-@fb

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