सुभाष चंद्रा और एनडीटीवी इंडिया को देखने के बाद अर्णब और इंडिया टीवी देखने की हिम्मत नहीं बची

सुभाष चंद्रा का शो
सुभाष चंद्रा का शो

सुशांत झा

1.टीवी, रेडियो अखबार और इंटरनेट की बात करें तो घटते क्रम में सबसे अच्छा इंटरनेट ही है। यह इंटरएक्टिव है, आप तत्काल आपत्ति जता सकते हैं। स्पेस भी ज्यादा है।

2.टीवी और अखबारों ने विचारों का सर्वाधिक घोटाला किया है। अभी मन-बहलाव के लिए टीवी देखने लगा तो जी न्यूज पर सुभाष चंद्र(…भाजपा वाले !) शो आ रहा था और NDTV India पर त्रिलोकपुरी दंगे पर पूर्वाग्रह भरी रिपोर्ट। एक में टीवी का मालिक अपना ज्ञान दे रहा था तो दूसरे में रिपोर्ट-रानी जबरन हिंदुओं को दोषी ठहरा रही थी। उसके बाद इंडिया टीवी और अर्नब को देखने की मेरी हिम्मत नहीं बची।

3.टीवी और रेडियो के साथ दिक्कत क्या है कि इसे देखने-सुनने के लिए आपका सिर्फ होमोसेपियंस होना जरूरी है-समझदारी न हो तो अति उत्तम। कम पढे लिखे हैं या अनपढ हैं तो आप बेहतरीन श्रोता हैं। सिर्फ आपके आंख और कानों में प्रोडक्ट डाला जाता रहेगा। आप आन्ंद से उपभोग करते रहिए।

4. खासकर सरकारें इसीलिए रेडियो को न्यूज के लिए नहीं खोलना चाहती, उसे एक अज्ञात भय है कि कहीं कोई खेल न कर दे।

5. रेडियो की अपनी ताकत है। रेडियो स्टेशन स्थापित करने के लिए टीवी की तरह ज्यादा पूंजी नहीं लगती और चलते-फिरते लोगों को बरगलाया जा सकता है-एक जगह बैठने की जरूरत नहीं है। इसीलिए सरकारें उससे नियंत्रण नहीं छोड़ना चाहतीं।

6. ऐसे में हमारे जैसे लोगों के लिए लाख कमजोरियों के बाद भी फेसबुक(या इंटरनेट) ज्यादा बेहतर माध्यम है।

स्रोत@एफबी

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