यूपी में परिवार का एक नया समाजवाद जन्म ले रहा है

​’जादू की झप्पी ‘ वाला बैग…!!

तारकेश कुमार ओझा

बदहाल हिंदी पट्टी में दूसरे मोर्चो पर चाहे जितनी विसंगतिया नजर आए लेकिन उत्तर भारत के गांवों में होने वाली शादियों में मुझे विचित्र किस्म का समाजवाद नजर आता है। ‘ अच्छी शादी ‘ हो या ‘जैसे – तैसे ‘ हुई। परिदृश्य में गजब की समानता देखने को मिलती है। वही खेतों में डेरा डाले बाराती और उनकी मेजबानी में जुटे घराती। एेसे हर मामले में नवपरिणिता कन्या के परिजनों की हालत बेहद खराब रहती है। दुल्हन के भाई अत्यंत लाचार स्थिति में नजर आते हैं। वह बेचारा कभी भाग कर हलवाई को थोड़ी और जलेबी बनाने को कहता है तो कभी दौड़ कर यह पता करने की कोशिश करता है कि जनरेटर अचानक बंद कैसे हो गया। इसके बाद भी बाबूजी से लेकर चाचा – मामा तक उनसे नाराज रहते हैं। अरे पुत्तन … सामने पानी – सानी देखो यार… या फिर… कितनी बार बोला पंडितजी को चाय दे जाओ… । और पांव – पूजने बैठे वधू के पिता का तो कहना ही क्या। एक दिन के लिए वे मानो दुनिया के सबसे बेबस प्राणी बन जाते हैं। क्योंकि दुल्हे से लेकर समधी और उनके नाते – रिश्तेदार जब – तब ‘ रिसिया ‘ (गुस्सा होकर) कर बैठ जाते हैं। नाराज दुल्हे को किसी तरह मनाया तब तक समधीजी मुंह फुला कर बैठ गए। उनसे निपटे तो पता चला कि दुल्हे के चाचा – फूफा व मामा वगैरह भी बारी – बारी से नाराज हो रहे हैं। रुठने – मनाने का यह सिलसिला बारात की विदाई तक लगातार चलता ही रहता है। यह दिलचस्प नजारा उच्च वर्ग से लेकर निम्न मध्य वर्गीय परिवारों में समान रूप से देखने को मिलता है। लेकिन बारातियों की सामूहिक नाराजगी की काट के तौर पर अमूमन हर वधू के पिता के हाथ में एक बैग रहता है। यह बैग समय और परिस्थितयों के हिसाब से खुलता और बंद होता रहता है। यही नहीं कन्या पक्ष के लिए यह बैग ‘ नाराजगी प्रूफ ‘ या ​’ शाक आब्जर्वर ‘ का काम भी करता है। जैसे ही पता चला कि दुल्हा नाराज हुआ , झट बैग खुला और कुछ नोट हवा में लहराए । बस नाराजगी दूर। इसी जादू से दुल्हे के पिता से लेकर चाचा – मामा व फूफा तक को साधा जाता है।

उत्तर प्रदेश के धुर समाजवादी मुलायम सिंह यादव और उनके मुख्यमंत्री पुत्र अखिलेश यादव की स्थिति भी कुछ एैसी ही है। बेचारे अखिलेश से उनके पिता तो सदैव नाराज रहते ही हैं, चाचा मंडली भी जब – तब मुंह फूला कर बैठ जाती है। कभी चाचा अमर सिंह को ज्यादा भाव देने के चलते उनके एक और चाचा आजम खान नाराज हो कर पार्टी छोड़ कर चले गए थे। वे लौटे तभी जब अमर सिंह का समाजवादी पार्टी से हूुक्का – पानी बंद हुआ। हाल में फिर अमर सिंह को साधने की कोशिश की तो चचा आजम फिर नाराज होने लगे। हालांकि उत्तर भारत के ग्रामांचलों की शादियों की तरह पता नहीं क्यों मुझे लगता है मानो मुलायम सिंह यादव के हाथों में भी अदृश्य रूप में कोई एेसा ही जादू की झप्पी वाला बैग मौजूद है। जिसमें नोटों की जगह लोकसभा , राज्यसभा और विभिन्न सदनों के टिकट मौजूद है। जैसे ही कोई नाराज हुआ , झट बैग खुला और कोई न कोई टिकट पकड़ा कर रिसियाए को मना लिया। अपने जीते – जी तीन पीढ़ियों को संसद भेज चुके मुलायम सिंह यादव जादू की झप्पी वाले इस बैग के जरिए यूपी में गजब का साम्यवाद प्रदर्शित कर रहे हैं। कभी नंबर दो की हैसियत वाले अमर सिंह से बोलचाल बंद थी। सोचा उन्हें राज्यसभा का टिकट थमा कर मना लें, लेकिन इससे आजम खान नाराज हो गए। उन्हें मनाने के लिए उनकी पत्नी को राज्यसभा भेजने का फैसला किया तो कुछ दूसरे रिसिया गए। आलोचक इस रुठने – मनाने के खेल की चाहे जिस रूप में व्याख्या करें लेकिन इसके जरिए यूपी में परिवार का जो एक नया समाजवाद जन्म ले रहा है, उसकी ओर किसी का ध्यान नहीं है।

(लेखक दैनिक जागरण से जुड़े हैं।)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.