नाटक देखने की चीज है, आलोचना की नहीं- नामवर सिंह,‘चतुष्कोण एवं अन्य नाटक’ का लोकार्पण

प्रेस विज्ञप्ति

rajkamalनई दिल्ली, 27 जून। नाटक देखने की चीज है, आलोचना की नहीं। नाटक को देखकर ही उसके महत्व को रेखांकित किया जा सकता है, नाटक की पुस्तक का मूल्यांकन किसी वक्तव्य के जरिए करना कठिन है। इसलिए ही, नाटक की आलोचना की परंपरा कम है और नाटक की आलोचना की पुस्तकें भी कम ही उपलब्ध हैं। नाटक और कहानी में यही अंतर है। ये बातें सुप्रसिद्ध आलोचक नामवर सिंह ने शुक्रवार को इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में नाटककार, निर्देशक और अभिनेता व्रात्य बसु की राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित पुस्तक ‘चतुष्कोण एवं अन्य नाटक’ के लोकार्पण समारोह के अवसर पर अपने अध्यक्षीय संभाषण में कहीं। बांग्ला से हिन्दी में अनूदित इस पुस्तक में ‘चतुष्कोण’ सहित कुल चार नाटक— ‘विंकल टुइंकल’, ‘मृत्यु ईश्वर यौनता’ और ‘बबली’- शामिल हैं। सोमा बंद्योपाध्याय इस पुस्तक की अनुवादक हैं।

लोकार्पण समारोह में अपने विचार रखते हुए मूर्धन्य कवि और हाल ही में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित केदारनाथ सिंह ने कहा कि वे एक लेखक, निर्देशक, अभिनेता और राजनेता के रूप में व्रात्य बसु के गंभीर और ऊर्जावान व्यक्तित्व से बेहद प्रभावित हैं। उन्होंने कहा कि वे कई मौकों पर बसु की लोकप्रियता के गवाह रहे हैं। केदारनाथ सिंह ने बसु के नाटकों में आत्मालोचना और गहरी दृष्टिसम्पन्नता को रेखांकित किया। अनुवादक सोमा बंद्योपाध्याय के अनुवाद-कर्म की सराहना करते हुए कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सिंह ने कहा कि अनुवादक ने बांग्ला से हिन्दी में प्रवेश करते हुए गहन श्रमशीलता का परिचय दिया है।

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता वरिष्ठ रंगकर्मी देवेन्द्र राज अंकुर ने व्रात्य के नाट्य-लेखन को ‘एंग्री यंग मैन’ की छवि से जोड़ते हुए कहा कि संकलन के सभी नाटक लेखक के प्रतिनिधि नाटक हैं। उन्होंने आधुनिक राजनीति को खुलेपन के साथ नाटक जैसी गंभीर विधा का विषय बनाने के लिए व्रात्य बसु के साहस की सराहना की। अंकुर के मुताबिक व्रात्य के नाटक वर्तमान समय में रचनात्मकता का ताजा अहसास कराते हैं।
अनुवादक सोमा बंद्योपाध्याय ने कहा कि बांग्ला एवं हिन्दी के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान की लंबी परंपरा रही है। सोमा के मुताबिक संकलन में शामिल सभी नाटक बेहतर हैं, लेकिन व्रात्य बसु के श्रेष्ठ नाटकों का अनुवाद होना अभी बाकी है। उन्होंने व्रात्य को निर्भीक और चुनौती स्वीकार करने वाला लेखक करार दिया। लेखक व्रात्य बसु ने कहा कि यूं तो उन्हें लेखक, निर्देशक और अभिनेता कहा जाता है, लेकिन ये तीनों कर्म सृजन की गहराई में एकाकार हो जाते हैं।

लोकार्पण समारोह के मौके पर राजकमल प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी भी मौजूद रहे। कार्यक्रम का संचालन राजकमल प्रकाशन के सत्यानंद निरूपम ने किया।

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