पुण्य प्रसून बाजपेयी किन कारणों से आप और केजरीवाल का समर्थन कर रहे हैं?

अवधेश कुमार

पुण्य प्रसून की क्रांतिकारिता
पुण्य प्रसून की क्रांतिकारिता

पुण्य प्रसून वाजपेयी और केजरीवाल का वीडियो आजकल एक वीडियो चल रहा है जिसमंे आज तक के श्री Punya Prasoon Vajpayee और श्री Arvind kejarival की इंटरव्यू के बाद या बीच की अनौपचारिक बातचीत है। इससे यह साबित किया जा रहा है कि पत्रकार मिलीभगत से काम कर रहे हैं। मेरे वाल पर भी ब्रेकिंग न्यूज के नाम से इसे लगाया गया है। इसी तरह एक तस्वीर पुण्य प्रसून वाजपेयी जी की आम आदमी पार्टी के नेताओं के साथ चल रही है। उसमें यह नहीं बताया जाता कि कहां कि तस्वीर है, किस समय की है, प्रसंग क्या है?

कोई नेता यदि कह रहा है कि इसे चलाइए और हम कहंे कि हां इसे खूब चलाएंगे तो इसे कई नजर से देखा जा सकता है। नेता अपने इंटरव्यू के बारे में ऐसा अनुरोध करते हैं और उनका जवाब गोलमटोल दिया जाता है। कई बार चलाने का अनुरोध बाद में भी आता है। इससे यह साबित होता है कि केजरीवाल में प्रचार भूख है और वे अन्य नेताओं और पार्टियों से अलग नहीं हैं।

कोई पत्रकार अपने काम में पक्षकार न बने यह आदर्श स्थिति है। लेकिन अगर बन गया तो वह धोखेबाज हो गया ऐसा मैं नहीं मानता। अगर वह उस विचार को देशहित में मानता है और इस कारण समर्थन करता है तो इसमें बुराई नहीं है। निजी हित, या संकुचित स्वार्थ से ऐसा करना निंदनीय है। इसलिए यह विचार करना होगा कि पुण्य प्रसून वाजपेयी किन कारणो से आप और केजरीवाल का समर्थन कर रहे हैं।

लेकिन ऐसा नहीं होता कि हम किसी नेता या पार्टी की किसी मुद्दे या प्रसंग पर आलोचना करते हैं तो उससे निजी दुश्मनी या विरोध हो जाता है। इसी तरह हम किसी मुद्दे या प्रसंग पर किसी नेता या पार्टी का समर्थन करते हैं तो इसका अर्थ यह नहीं कि वे हमारे दोस्त ही हो गए। व्यक्तिगत जान पहचान और संबंध मनुष्य का स्वभाव है। यह पत्रकारों के साथ भी होता है। कई बार ब्रेक में या कार्यक्रम के बाद नेता पूछते हैं कि मैंने अमुक बात बोली वो ठीक था या नहीं और हम लोग उसका उत्तर देते हैं। कई बार सुझाव भी देते हैं कि आपको यह बोलना चाहिए। इसका यह अर्थ नहीं कि हम बिक गए या बेईमान हो गए। यह एक स्वाभाविक स्थिति है।

पत्रकार यदि हर समय पत्रकार ही हो जाए तो फिर वह मनुष्य नहीं रहेगा। वह अपने प्रति, अपने परिवार दोस्तों के प्रति भी संवेदनहीन हो जाएगा। पत्रकार को तो संवेदनशील होना ही चाहिए। उसे स्पंदनशील भी होना चाहिए। उसे अपने पेशेवर काम और व्यक्तिगत संबंधों में अंतर करने की कला आनी चाहिए। हम किसी पर लेख, टिप्पणी या बहस में हमला करते हैं, लेकिन उसके बाद सहज वातावरण में बातचीत होती है, हम साथ में नाश्ता करते हैं…समीक्षा भी करते हैं। कई बार किसी पार्टी के कार्यालय में या नेता के घर जाते है तो उनके साथ बैठते हैं और किसी बात पर राय भी दे देते हैं। देश के मुद्दों पर चर्चा करते हैं। यह जीवन की स्वाभाविक स्थिति है।

हमारे देश में आजादी के संघर्ष से लेकर आधुनिक समय तक अनेक बड़े नेता हुए हैं जो पत्रकार भी रहे हैं। पत्रकार के राजनीतिक रुप से सक्रिय होने या राजनीति में आ जाने या किसी राजनीतिक विचार का पक्षधर होना किसी भी दृष्टि से अनैतिक या गलत नहीं है। हां, उसे यह अवश्य ध्यान रखना होगा कि जब वह समाचार दे रहा हो तो उस पर हावी न हो जाए। उस समय वह निरपेक्ष हो।

(स्रोत- एफबी)

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