प्रभात खबर के पूर्व संपादकों की दुर्दशा

क्यूँ  अच्छी नौकरी नहीं मिलती प्रभात खबर के संपादकों को?

प्रभात खबर बिहार और झारखण्ड में एक जाना – पहचाना नाम है। इसका अपना एक बड़ा पाठक वर्ग है। लेकिन प्रभात खबर में पत्रकारों की भी टीम बेहद सुस्त है क्योंकि प्रभात खबर अच्छे पैसे नहीं देता। इसलिए इसमें लोग बहुत ही कम समय टिक पाते हैं। मौका मिलते ही पत्रकार दूसरी जगह तलाश लेते हैं। लेकिन यहाँ से गए पूर्व संपादकों को फिर अच्छी नौकरी नहीं मिलती या फिर उनके करियर में स्थायित्व नहीं होता.


शुरुआत करते है धनबाद के पूर्व संपादक राघवेन्द्र झा से। पंडित जी धनबाद प्रभात खबर के नामी संपादक रहे है, इसी दौरान धनबाद से उन्होंने एक पत्रिका निकली माइंड। पत्रकारिता का जोश था, एक महिला एसपी को डायन तक करार दिया। बहुत खूब बिकी वह पत्रिका। चूँकि राघवेन्द्र जी पर प्रभात खबर का नाम था, सो उनपर दवाब आना शुरू हो गया। पहले तो माफियाओं ने खुद उन्हें टटोला लेकिन फिर प्रभात खबर प्रबंधन पर दवाब बनाया ताकि वो वहां काम छोड़ दे, आखिर दवाब काम आया, पंडित जी की विदाई हो गयी, माइंड मैं पैसा जिसने लगाया था, वो भी गायब हो गए, फिर पांच – छह साल तक राघवेन्द्र जी मुफ्सिली मैं इधर उधर घूमे, पटना में भी काम किया, परन्तु किसी अखबार ने उन्हें संपादक नहीं बनाया। थक – हार कर फिर प्रभात खबर को ही इन्हें भागलपुर मैं नयी यूनिट के संपादक के रूप मैं शामिल किया। जब इन्हें भागलपुर में काम मिला तब जाकर इनकी किस्मत चमकी और फिर पत्रकारिता – राजनीति के माफिया ऒम गौड़ ने इन्हें झारखण्ड मैं शुरुआत हो रहे भास्कर का दामन थामने का ऑफर दिया। फिलहाल पंडित जी यही है और भास्कर की चाकरी कर रहे है।

अब दूसरा नाम। यह भी कोई छोटा नाम नहीं है। प्रभात खबर के सेकंड मेन, बंगाल टाइगर, कोयला माफियाओं के प्रिय, हरिवंश जी के एक समय खासमखास, हिन्दुस्तान अखबार से अभी तुरंत निकाले गए या फिर ये कहिये को खुद वह काम छोड़ने वाले, हिन्दुस्तान धनबाद में काम करने के दौरान एक कनिष्ठ और कुछ छोटे ब्यूरो चीफों की राजनीति के शिकार, श्री मान ओम प्रकश अश्क जी। यह नाम एक समय काफी ऊँचा था, परन्तु हरिवंश जी के समान इन्होने अपना नाम बेदाग नही रखा।

आज भी हरिवंश का नाम बेदाग है, लेकिन अश्क का दामन दागदार हो गया. प्रभात खबर के संपादक हरिवंश भी उनसे परेशान थे. कई संपादक तो उनको पूछते भी नहीं थे जिनमें देवघर के उस समय के संपादक रवि प्रकाश शामिल थे. खैर रांची मैं बैठकर अश्क जी उन जिलों के प्रभारियों से खुद संपर्क मैं रहते थे जहा कोयला, बालू, स्टील आदि का कारोबार होता था. हरिवंश जी ने उन्हें किनारा लगाने की ठानी और एक दिन अचानक रांची से उनको हटाकर कोलकाता भेज दिया गया. ख़ैर काफी सेटिंग के बाद तो वो कोलकाता से झारखण्ड आये थे. कुछ दिनों के बाद ही उन्हें हिन्दुस्तान धनबाद में संपादक का काम मिल गया, कैसे मिला यह सब जानते है, जो हरी कृपा जानते है, लेकिन वहां भी अपना धंधा इन्होने बंद नहीं किया और फिर एक दिन शशि शेखर जी ने इन्हें वहां से बाहर का रास्ता दिखा दिया. अब बेचारे अश्क साहब कोलकाता फिर पहुँच गए और वह एक छोटे अखबार, जिन्हें हिंदी वाले जानते भी नहीं होंगे, को निकाल रहे हैं. एक कहावत है ,,,,,,,पुर्न मूषको भावः,,,मतलब अश्क जी को भी अब कोई बड़ा अखबार नौकरी देने को तैयार नहीं है। कोलकाता से चले थे वही फिर पहुँच गए।

अब कोलकाता बात पहुँच गयी है तो फिर वही की ही बात करते है, वह अश्क जी के रांची आने के बाद एक युवा एडिटर राजेश सिसोदिया को प्रभात खबर कोलकाता का संपादक बनाया गया। कुछ दिनों तक तो उन होने काम किया, लेकिन जैसे ही प्रभात खबर छोड़ा, की उन्हें अब कोई अख़बार एडिटर बनाने के लिए तैयार नहीं है, एक बंगाली न्यूज़ चैनल में कुछ दिनों तक काम किया, लेकिन बात नहीं बनी। फ़िलहाल बंगाल की पत्रकारिता के आसमान से संपादक जी गायब है, देखना है की अब वो फिर कब उदय होते हैं। ………….. जारी .

( अज्ञात कुमार की रिपोर्ट. यदि कोई तथ्यागत त्रुटियाँ हो या किसी तरह की शिकायत हो तो mediakhabaronline@gmail.com पर या नीचे टिप्पणी लिखें. )

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