नोटबंदी को जनता के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक ही समझिए

मोदी सरकार तेजी से डिजिटल इकोनॉमी को बढ़ावा देना चाहती है। यह डिजिटल इकोनॉमी क्या है? सरकार अपने, आपके और बैंक के बीच एक चौथा दलाल घुसा रही है। अपने ही पैसे से आप कोई सामान खरीदते हैं या सेवा लेते हैं तो यह चौथा दलाल वहां मौजूद रहेगा जो सिर्फ इस बात के पैसे लेगा कि आप भुगतान उसके तरीके से कर रहे हैं। यह अर्थव्यवस्था का नया स्वरूप है जिसमें बैंकों से अलग निजी कंपनियों ने अपने लिए जगह तलाश लिया है।हो सकता हो कि सरकार को इस दलाल से कमाई हो और उसका खज़ाना भरे. लेकिन सरकार की कमाई का मतलब जनता की नहीं होता. पत्रकार ‘संजय तिवारी’ का विश्लेषण :




सरकार की कमाई का मतलब जनता की कमाई नहीं होता। मसलन सरकार अमीर हो सकती है लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं कि जनता भी अमीर है, इसी तरह अगर जनता अमीर हो तो भी जरूरी नहीं कि सरकार अमीर होगी। वर्तमान में देशों की अर्थव्यवस्थाओं का बड़ा गड़बड़झाला है। पश्चिम का जो अर्थशास्त्र अभी दुनिया पर हावी है उसके लिहाज से देखें तो यह आंकड़ों का अंकगणित है। भारत में जिस नॉन बैंकिंग मनी को काला धन बताकर जब्ती की जा रही है असल में वह जनता की अमीरी है। लेकिन जनता की इस अमीरी में क्योंकि सरकार का प्रत्यक्ष हिस्सा नहीं है इसलिए वह चाबुक चलाकर नोटजब्ती का अभियान चला दिया। हालांकि देश में प्रचलित मुद्रा का कोई ऐसा टुकड़ा नहीं होता जो बिना सरकार को कर दिये एक कदम भी आगे बढ़ सके लेकिन सरकार को तो पग पग पर कर चाहिए। एक तरह से वह जो पैसा छापकर जनता को देती है एक लंबे अंतराल में उसका पाई पाई वापस ले लेती है। उसकी नोट उसी का कर और उसी का कारोबार। घूम फिर कर सबै नोट सरकार की।

अब मोदी सरकार तेजी से डिजिटल इकोनॉमी को बढ़ावा देना चाहती है। यह डिजिटल इकोनॉमी क्या है? सरकार अपने, आपके और बैंक के बीच एक चौथा दलाल घुसा रही है। अपने ही पैसे से आप कोई सामान खरीदते हैं या सेवा लेते हैं तो यह चौथा दलाल वहां मौजूद रहेगा जो सिर्फ इस बात के पैसे लेगा कि आप भुगतान उसके तरीके से कर रहे हैं। यह अर्थव्यवस्था का नया स्वरूप है जिसमें बैंकों से अलग निजी कंपनियों ने अपने लिए जगह तलाश लिया है। स्वाभाविक तौर पर यह हो ही रहा था लेकिन डिजिटल कंपनियों का दबाव बहुत था। कुछ मोदी के मन की बात भी थी लिहाजा एक तीर से दो शिकार किये गये। पहला, नॉन बैंकिंग मनी को बैंक के हवाले करवाया गया और जो पैसा बैंकों के पास नहीं आयेगा उतने नये नोट सरकार फिर छाप लेगी। इससे बैंक और सरकार दोनों अमीर हो जाएंगे और ऊपरी तौर पर दुनिया में साबित हो जाएगा कि भारत की अर्थव्यवस्था में बूम आ गया है। समय से पहले वह दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। दूसरा पहलू यह है कि डिजिटल मनी को बढ़ावा मिलेगा जिससे एक बार फिर सरकार और कंपनियां बड़े मुनाफे में रहेंगी।



लेकिन इस पूरी कवायद में जनता कमजोर होगी। सरकार की, बैंकों की और कंपनियों की बैलेन्स शीट बढ़ेगी लेकिन जनता की अपने ऊपर आत्मनिर्भरता घटेगी। जन कमजोर होंगे जिन्हें बड़े आसानी से आंकड़ों के कालीन के नीचे दबा दिया जाएगा। कैसे? वैसे ही जैसे इस वक्त दबाया जाता है। सरकार का आंकड़ा है कि भारत में प्रति व्यक्ति आय करीब 3,50,000 सालाना है। लेकिन क्या हकीकत में ऐसा है क्या? वही सरकार जब गरीबी आंकड़ा देती है तो बताती है कि एक तिहाई आबादी तो साल का 35 हजार भी नहीं कमा पाती। लेकिन सरकार को जब आंकड़ा देना होता है तो अंबानी अडानी को उस आदमी के साथ खड़ा करके साढ़े तीन लाख का साझा आंकड़ा बना लेती है। इसलिए इस नोटबंदी को जनता के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक ही समझिए। मोदी सरकार ने आम आदमी के खिलाफ किया भी वही है।
#नोटबंदी

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